फर्रुखाबाद: आय, जाति व मूल निवास प्रमाण पत्र बनवाने में लेखपालों की मनमानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। हद तो यह है कि कन्याविद्या धन पाने के लिये एक विधवा की बेटी को अपने कुंडल गिरवी रखने पड़े। वह तो भला हो मोहल्ले के लोगों का जिन्होंने उसका प्रमाणपत्र जनसुविधा केंद्र के माध्यम से आनलाइन बनवा दिया। जैसे तैसे गरीब लुटने से बच गयी।
शासन द्वारा आय, जाति व मूल निवास प्रमाण पत्र बनवाने में लेखपालों की मनमानी से निबटने के लिये ही आनलाइन आवेदन की व्यवस्था लागू की थी। परंतु मोटी आमदनी का जरिया हाथ से निकलते देख प्रभावित व्यवस्था ने इसमें समय समय पर रोड़े अटकाने का भरपूर प्रयास किया। आनलाइन आवेदनों के निस्तारण में अनावश्यक विलंब कर एक तो लंबित आवेदनों की संख्या बढ़ा कर अधिकारियों पर दबाव बनाना शुरू किया वहीं दूसरी तरफ लेखपालों ने क्षेत्र में अपने दलाला छोड़ दिये। यह दलाल जांच के नाम पर घर घर जाकर लेखपाल से मिलने या घूंस का पैसा सीधे उन्हें देने की पेशकरश करने लगे। कन्या विद्याधन व बेरोजगारी भत्ते की अंतिम तिथियों की आड़ में लेखपलों ने प्रमाणपत्रों में घूंस की रकम पांच हजार तक बढ़ा दी।
लेखपालों व उनके दलालों के एक ऐसे ही दुष्चक्र में फंसी मोहल्ला इस्माइलगंज सानी निवासी एक विधवा की बेटी को अपने कान के कुंडल तक गिरवीं रखने पड़े। गरीब विधवा राजरानी ने सिलाई कर कर के किसी प्रकार अपनी पुत्री उमा को जैसे तैसे इंटर तक पढाया है। बाप का साया उठने के बाद उमा ने भी जहां अपनी विधवा मां का हाथ बंटाया वहीं उसने अपनी पढाई पर भी ध्यान दिया। मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने कन्या विद्याधन योजना की घोषणा की तो उसकी आंखों में चमक आगयी। उमा ने कन्या विद्या धन के आवेदन के साथ लगाने के लिये आय प्रमाण पत्र के लिये आवेदन किया तो लेखपाल ने उसे चक्कर पर चक्कर कटवाने शुरू किये। दर्जनों चक्कर लगाने के बाद उमा से पांच हजार के बजाय रियायतन तीन हजार रुपये की रिश्वत तय हुई। मरती क्या न करती। गरीब विधवा मां राजरानी से कहने की हिम्मत नहीं हुई तो उसने अपने कान के कुंडल ही गिरवीं रख दिये। परंतु इसी बीच मोहल्ले कुछ जागरूक लोगों ने उसको लेखपाल के चक्कर काटने के बजाय उसका आवेदन जनसेवाकेंद्रों के माध्यम से आनलाइन आवेदन करा दिया। आखिर रिपोर्ट तो लेखपाल को ही लगानी थी। परंतु इसी बीच दलाल सक्रिय हो गये। उमा के पहुंचने से पहले ही जनसुविधा केंद्र से खुद को उमा का भाई बता कर प्रमाणपत्र ले आये। एक बार फिर उमा दलालों के चक्कर में पड़ गयी। परंतु जब मोहल्ले के लोगों को मालूम हुआ तो उस दलाल से उमा को प्रमाणपत्र दिलवाया। कुछ इस प्रकार बेचारी उमा लुटने से बच गयी। परंतु हर उमा इतनी भाग्यशाली नहीं होती। लेखपालों व उनके दलालों की फौज के चंगुल में फंसे आवेदक मकड़जाल में कसमसा रहे हैं। जानकारी के बावजूद अधिकारी कुछ करपाने में असमर्थ हैं, या यह सब उनकी मौन स्वीकृति से हो रहा है।