एक सिपाही ने किया अधिकारियों के घोटाले का पर्दाफाश!

Uncategorized

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता… बस एक पत्थर तबीयत से तो उछालो यारों…  ये शायरी की पंक्तियां उन लोगों पर लागू होती है जो किसी भी नामुमकिन चीज को मुमकिन करने का जज्बा दिल में रखे होते हैं। ऐसा ही कुछ गाजीपुर जनपद के एक सिपाही के जज्बे को देख कर लगता है। जिन्‍होंने देश की कानून व्‍यवस्‍था चलाने वाले आईपीएस लोगों द्वारा प्रतिवर्ष किए जाने वाले करोड़ों के घोटाले को हाईकोर्ट व सूचना के अधिकार का प्रयोग करके सबके सामने ला दिया है।

मामला है सन 1961 में आईपीएस लोगों द्वारा कान्सटेबल और इंस्‍पेक्‍टरों के वेतन से प्रति माह 25 रूपये की कटौती का। जो लोग उनके संगठन के मेम्बर भी नहीं होते, उनके वेतन से भी जबरन पैसा काट लिया जाता है, और इससे आईपीएस और उनकी पत्नियां मजे करती हैं। इसी के मद्देनजर हाईकोर्ट ने आईपीएस संगठन के अध्यक्ष को इनके रिट के आधार पर नोटिस जारी कर दिया है।

रिट दायर करने वाले कांस्‍टेबल हैं बृजेंद्र यादव। जो अभी जनपद गाजीपुर के जमानिया थाने में तैनात हैं। इन्होंने अपने साथियों और इनके पैसे पर देश के आईपीएस और उनकी बीबीयो के द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ों रूपया हड़प कर मजा उठाने की बात को बताया। इन्‍होंने बताया कि जिस संस्था के नाम पर ये कटौती अब भी बदस्‍तूर जारी है, उसका पूर्व मे ही रजिस्ट्रेशन खत्म होने के बाद रीनीवल तक नही कराया गया है। सन 1961 में द केटी फोर द वेलफेयर आफ द फेमलीज आफ द मेम्बर्स आफ द पुलिस फोर्स इन यूपी नाम की संस्था रजिस्टर्ड कराई गयी थी। जिसमें आफिसर्स और उनकी पत्नियां मेम्बर्स हैं, जिसमें पुलिस मैन का भी वेलफेयर दर्शाया गया है, लेकिन उस संस्था में सिपाही से इंस्‍पेक्‍टर तक मेम्बर नहीं हैं। और अवैधानिक तौर पर 1961 से आज तक बदस्‍तूर कटौती जारी है।

वर्तमान मे 3.5 लाख कर्मचारी हैं, जिनसे प्रतिमाह 87 लाख रूपया वसूला जाता हैं। एक वर्ष में दस करोड़ पचास लाख रूपये की कटौती होती है। इसी प्रकार बीमा के नाम पर प्रतिवर्ष 340 रूपये की कटौती की जाती है, जो साल में 11 करोड़ 20 लाख रुपये होते हैं। जिसका कोई हिसाब किताब नहीं है, इसी का घोटाला किया जा रहा है। यह पैसा कहां जाता है इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है। इस सम्बन्ध मे जब बृजेन्‍द्र ने जानकारी चाही तो उसे निलम्बित कर दिया गया और जालौन से गाजीपुर भेजा गया, लेकिन उसके बाद भी अपने निश्चय पर अटल रहने वाले बृजेन्द्र ने हाईकोर्ट इलाहाबाद में रिट याचिका स. 6820/2009 दाखिल किया। जिसमें इनके निलम्बन का आदेश रद्द कर दिया गया। साथ ही अराजपत्रित पुलिसकर्मियों ने भी अपनी संस्था कल्याण संस्थान उप्र के नाम से रजिस्टर्ड करवा लिया, जो 2014 तक वैध है। उसके बाद घोटाले के पैसे के पर्दाफाश के लिए हाईकोर्ट में रिट दाखिल किया, जो बृजेन्द्र सिंह बनाम भारत सरकार व अन्य के विरूद्ध है। इसे माननीय न्यायालय ने गम्भीरता से लिया और पीआईएल में तब्दील कर मुख्य न्यायाधीश महोदय को अग्रसारीत कर दिया। जिसमें 12 जनवरी 2011 की तारीख नियुक्त कर जबाब-तलब किया गया है।

बृजेन्द्र ने जब इस तरह का कदम उठाया तो 1999 में उनकी हत्या का प्रयास भी किया गया। साथ ही एनएसए तक की कारवाई की गई। उनके मामले में आईपीएस शैलेन्द्र सागर, जो सन 2008 मे आईपीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष थे, 3 अगस्त 2008 को अपने लेटर में सभी पुलिस अधीक्षकों को निर्देशित किया था कि आरक्षी समन्वय समिति बनाकर इनके कार्यों का विरोध कर शासन को विश्वास में लेना हमारी जीत है। क्योंकि समस्त आईपीएस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

बृजेन्‍द्र ने बताया कि इनके द्वारा पुलिसकर्मियों के लिए उठाई गई आवाज को दबाने के लिए मुख्यमंत्री तक इनवाल्ब हो गये थे। मुलायम सिंह सरकार में खुद मुलायम सिंह ने उक्त सिपाही को अपने कार्यालय में बुला इस लड़ाई को समाप्त कर इसके बदले मे एमएलसी बनाने तक का दांव फेंका गया, लेकिन अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बूते बृजेन्द्र ने उक्त प्रस्ताव को ठुकरा दिया और आज कोर्ट से नोटिस जारी करा अब तक वेलफेयर के नाम पर अरबों रूपयों के घोटाले का पर्दाफाश किया।