पंचायत चुनाव 2015 : मासूमो की भीड़ से कुर्सी के सपने….पंचायत लूटने को आ रहे नए शिकारी

FARRUKHABAD NEWS PANCHAYAT ELECTION

Pratibha Ansariफर्रुखाबाद: उत्तर प्रदेश में हो रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनावो में नेताओ पर से जनता का विश्वास खोता नजर आ रहा है| गली गली नेता वोट मांग रहे है| अक्टूबर का गुलाबी मौसम जनसम्पर्क के लिए माकूल होते हुए भी जनता में रुझान की कमी है| बड़ी वजह ये है कि नेता चुनाव क्यों लड़ रहा है इस बात को पहुचाने की जगह उसकी बरादरी का है ये बताने में लगा है|

पंचायत चुनाव में सबसे निचले स्तर पर खड़ी संसद अपनी जनता को संतुष्ट करने में कम से कम उत्तर प्रदेश में तो नाकाम ही रही है| यूपी पंचायत का नुमांइदा होने का मतलब सिर्फ और सिर्फ ये है कि जीता हुआ नेता अपनी इकाई के विकास के लिए आने वाले सरकारी धन को कैसे लूट ले| इस लूट में उसके सहयोगी भूमिका निभाने वाले पंचायत सचिव, ब्लाक और जिला स्तर के अफसर इस वक़्त खामोश है| हालाँकि उन्होंने पंचायत चुनावो में भी खूब माल पैदा किया है| नो डुएज से लेकर अन्य चुनाव लड़ने के लिए जरूरती कागजो को बनबाने में जमकर सरकारी तय फीस से कई गुना वसूली की है| अब चुनाव लड़ने वाला मैदान में अपने खर्चो को लेकर संजीदा हो चला है| यूपी के पंचायत चुनाव लागत बनाम इनकम के अखाड़े में तब्दील हो चला है|

फर्रुखाबाद से जिला पंचायत अध्यक्ष का पद अनुसूचित महिला के लिए आरक्षित होने के बाद हालात और भी जुदा हो चले है| जिला पंचायत सदस्यी के लिए चुनाव लड़ने वाले खासे निराश है| अध्यक्ष पद के लिए अब बड़े दाव लगाने वाले मैदान में होंगे नहीं लिहाजा अध्यक्ष पद पर वोट देने के लिए घूस का रेट भी मामूली हो जायेगा| जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए अब तक जो नाम सामने आ रहे है उनमे से भाजपा से सांसद पोषित एक दलित महिला, कायमगंज के विधायक अजीत कठेरिया की पत्नी, बसपा जिलाध्यक्ष सुभाष गौतम की पत्नी और थोड़ा बहुत दम लिए ओम प्रकाश कठेरिया की पत्नी चंद्रमुखी कठेरिया|

इनमे से अजीत कठेरिया को छोड़ कोई भी अपनी दम पर सदस्य खरीदने की हैसियत में नहीं होगा| भाजपा सांसद पोषित प्रत्याशी सांसद के ड्राइवर की पत्नी है| इसे जिला पंचायत सदस्य बनाने से लेकर अध्यक्ष बनाने तक मुकेश राजपूत को खर्च करना है| हालाँकि मुकेश दो बार जिला पंचायत अध्यक्ष पर परोक्ष रूप से बैठ चुके है उन्हें इस संस्था से होने वाली अवैध और वैध कमाई का ज्ञान सबसे ज्यादा है| ओमप्रकाश कठेरिया के बारे में आम रुझान है कि वे आर्थिक रूप से कमजोर हो चुके है| उनके व्यापारिक संस्थान बैंक के हवाले हो चले है| गाहे बगाहे स्कूल कॉलेज की वैध और अवैध कमाई के सहारे पंचायत चुनाव की बोली की दौड़ में उनका दौड़ना काफी मुश्किल हो सकता है| ले देकर संभावित बसपा प्रत्याशी भी आर्थिक मोर्चे पर जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी खरीदने की दौड़ में पीछे ही होंगे| जी हाँ दुर्भाग्य से हालात यही कि उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष की सवैधानिक कुर्सी बिकती ही है| खरीददार कोई भी हो सकता है| कुल मिलाकर अंत में स्थित ये होगी कि भाजपा और सपा समर्थित प्रत्याशी आमने सामने होंगे|

सविधान के 73 वे संशोधन से बना पंचायत राज कम से काम उत्तर प्रदेश में धतराष्ट्र की सभा में कौरवो से अपना चीर हरण करवा रहा है और युधिष्ठिर (सरकारी अफसर जिन पर भ्रष्टाचार रोकने की जिम्मेदारी है) अपना हिस्सा लेकर पंचायत का नाड़ा अपने हाथो से खोल रहा है| यही कारण है इन चुनावो में अब गंभीर चिंतक जनता को कोई रूचि नहीं है| भीड़ बच्चे बढ़ा रहे है और नेता जी उसी भीड़ की फोटो अपनी फेसबुक पर लगाकर अपनी जीत का सपना बुन रहे है| काश इन मासूमो को भी मालूम होता कि जिस नेता के लिए इतना हल्ला मचा रहे हो वही एक दिन तुम्हारे हिस्से का निबाला गटकने वाला है|