यूपी की पंचायतो में आरक्षण फार्मूले पर सवाल- सामाजिक अन्याय का अंदेशा!

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panchayatग्राम पंचायतों के आरक्षण का जो नया फॉर्मूला सरकार ने बनाया है, उसके लागू रहने तक सूबे की बहुत सारी ग्राम पंचायतें कभी भी आरक्षित नहीं हो सकेंगी। नतीजतन इन ग्राम पंचायतों के पिछड़ों, दलितों या अनुसूचित जनजाति के लोगों को आरक्षण का अवसर नहीं मिल पाएगा।

पंचायतों के आरक्षण के नए शासनादेश में कहा गया है कि जब भी नया परिसीमन होगा, पंचायतों के पुराने चक्रानुक्रम के आरक्षण को बिना संज्ञान में लिए हुए नए सिरे से आरक्षण किया जाएगा। प्रदेश में हर दस साल पर जनगणना होती है।

इसके बाद नए सिरे से पंचायतों का परिसीमन होना चाहिए। पिछली जनगणना 2011 में हुई और उसके बाद हो रहे 2015 के चुनाव में पिछले चक्रानुक्रम आरक्षण को शून्य किया गया है। इसी तरह 2021 की जनगणना के बाद 2025 के चुनाव के समय 2015 व 2020 के चक्रानुक्रम आरक्षण को शून्य कर दिया जाएगा।
इस फॉर्मूले से एससी, एसटी व ओबीसी के जो ग्राम प्रधान पद 2015 में आरक्षित हुए होंगे, वे ही फिर से आरक्षित होने शुरू हो जाएंगे। जिन ग्राम पंचायतों को दो बार के चुनाव में आरक्षित होने का मौका नहीं मिला, वे इस नियम के लागू रहते कभी भी आरक्षित नहीं हो पाएंगी। यही स्थिति वार्डों के आरक्षण में होगी।
मान लीजिए किसी विकास खंड में 100 ग्राम पंचायतें हैं। वहां इस चुनाव में 27 ग्राम प्रधान पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित हो जाएंगे। जब 2020 का पंचायत चुनाव आएगा तब इन 27 के आगे वाली ग्राम पंचायतों के प्रधान पद आरक्षित होंगे।

इस तरह इन दो चुनावों में कुल 54 ग्राम पंचायतें ही आरक्षित हो पाएंगी। इसके बाद 2021 में नई जनगणना होगी और 2025 के चुनाव के पहले पंचायतों का पुनर्गठन व परिसीमन कराना होगा। तब 2015 व 2020 के चक्रानुक्रम आरक्षण को शून्य कर नए सिरे से पंचायतों का आरक्षण किया जाएगा।
इससे 54 ग्राम पंचायतों के बाद की 46 ग्राम पंचायतों में प्रधान का पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित नहीं हो पाएगा। 2025 में फिर वही ग्राम पंचायतें आरक्षित होनी शुरू हो जाएंगी जो 2015 में आरक्षित हो रही हैं।
यानी, इस ब्लॉक की 46 प्रतिशत ग्राम पंचायतें कभी ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं होंगी। इसी तरह एससी वर्ग में अधिकतम 21-21 ग्राम पंचायतों के प्रधान पद आरक्षित होंगे और 2025 के चुनाव में 2015 वाली 21 ग्राम पंचायतों को फिर से मौका मिल जाएगा। बाकी 58 ग्राम पंचायतों के प्रधान पद पर एससी को कभी भी आरक्षण का अवसर नहीं मिलेगा। ऐसी ही स्थिति अनुसूचित जनजाति के लिए भी होगी।

प्रदेश की 7 हजार से ज्यादा नई ग्राम पंचायतों व जिनसे ये ग्राम पंचायतें अलग हुईं हैं, उन्हें मिलाकर करीब 19 हजार ग्राम पंचायतों को छोड़ दें तो सूबे की बाकी लगभग सभी ग्राम पंचायतें 1995 के आरक्षण की स्थिति में आ जाएंगी।

•क्या आरक्षण के इस फॉर्मूले से सभी ग्राम पंचायतों में सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व का अवसर मिल पाएगा?
•हर दो बार के चुनाव के बाद आरक्षण शून्य होने से क्या चक्रानुक्रम कभी पूरा होगा?
•जब चक्र ही नहीं पूरा होगा तो फिर संविधान की धारा 243-डी के अंतर्गत चक्रानुक्रम में आरक्षण की व्यवस्था का क्या होगा?
•इससे प्रत्येक ग्राम पंचायत के निर्वाचन में सभी वर्गों को अवसर प्रदान करने की समानता बनाए रखने की संविधान की मंशा लागू रह पाएगी?
जब कभी ग्राम पंचायत के सदस्यों के सामान्य निर्वाचन के पूर्व राज्य में पंचायत क्षेत्रों के क्षेत्रों में परिवर्तन के आधार पर या अन्यथा राज्य में ग्राम पंचायतों के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में सामान्य परिसीमन हो तब स्थानों की संख्या का विभिन्न प्रादेशिक क्षेत्रों में आवंटन, पूर्ववर्ती निर्वाचनों में उनके आवंटन की स्थिति को संज्ञान में लिए बिना नए सिरे से किया जाएगा।

जब कभी ग्राम प्रधानों के पदों के सामान्य निर्वाचन के पूर्व पंचायत क्षेत्र की जनसंख्या में परिवर्तन के आधार पर या अन्यथा राज्य में ग्राम पंचायतों के पंचायत क्षेत्रों के क्षेत्रों में सामान्य परिसीमन हो, तब अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों व पिछड़े वर्गों के लिए प्रधानों के पदों की संख्या का विकास खंड की भिन्न-भिन्न ग्राम पंचायतों में आवंटन, पूर्ववर्ती निर्वाचनों में उनके आवंटन की स्थिति को संज्ञान में लिए बिना नए सिरे से किया जाएगा।