फर्रुखाबाद: वातानुकूलित कमरो में बैठ चिलचिलाती गर्मी के लिए सपने बुनना काफी कठिन काम है| आमतौर पर इस प्रकार की योजनाये अपने अंजाम तक नहीं पहुचती है| सरकार को खुश रखने और लेखा जोखा की चूल से चूल मिलाने में कवायद तो करनी ही पड़ती है| जेएनआई ने सोमवार 25 जून 2015 को ही लेख प्रकाशित किया था- “छुट्टियों में मिड डे मील- सरकार से लेकर मैट्रो तक की अपनी अपनी मजबूरिया” और उसी दिन शाम ढलते ढलते उत्तर प्रदेश सरकार के हवाले से आदेश हो गया कि अब सूखाग्रस्त घोषित जिलो में मिड डे मील बनबाने अनिवार्य नहीं है| जिलाधिकारी जरुरत समझे तो बनबाये|
मगर सबसे बड़ी बात ये है कि इस आदेश के लागू होने के 5 दिन बाद आदेश को संशोधित कर दिया| मगर इन 5 दिनों में करोडो रुपये के खाद्यान और कन्वर्जन कॉस्ट की दावेदारी हो चुकी है| स्कूल बंद थे बच्चे आये नहीं और अधिकांश मास्टरों में घर बैठे ही मोबाइल पर मिड डे मील की रिपोर्टिंग कर रहे थे| अकेले फर्रुखाबाद में ही 1000 के लगभग बंद स्कूलों में मिड डे मील बन चुका था| पांच दिन बाद चेते तब तक करोडो का इधर से उधर हो गया| जे एन आई ने आशंका जाहिर की थी कि केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए खाद्य के उपभोग की चूल से चूल मिलाने के लिए छुट्टियों में मिड डे मील का ढिंढोरा पीटा जाता है| मगर प्रदेश सरकार के नए आदेश में लिखा गया है उन्हें सूचना मिली की बच्चे स्कूल में नहीं आ रहे है| शायदा पहले नहीं मिल रही थी| प्रदेश के सरकारी परिषदीय स्कूलों में जब स्कूल खुलते है तब कौन से बच्चे जाते है| आधे मास्टर स्कूल जाते है| बचे हुए आधो में से आधे मास्टर बिना जाए हाजिरी लगाते है| उसके बाद जो बचते है उनमे से आधे स्कूल टाइम में व्यक्तिगत काम निपटाते है| और उनमे से जो आधे बचते है वे जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के साथ साथ चमचागिरी करके उनके लिए ओवर इनकम में सहयोग की भूमिका निभाते है| बाकी के मास्टर स्कूल में बच्चो को पढ़ाते है| हिसाब लगाइये यू पी में मास्टर बच्चो को पढ़ाते है|
फिलहाल आदेश जारी हो चुका है| मध्याह भोजन प्राधिकरण उत्तर प्रदेश की निदेशक श्रद्धा मिश्रा में चिट्ठी जारी कर दी है| डीएम चाहे तो मिड डे मील बनबाये| दो साल पहले भी यही हुआ था| काश छुट्टियों में मिड डे मील बनबाने के आदेश जारी करने से पहले शर्द्धा मिश्रा में पिछले वर्षो के रिकॉर्ड खंगाल अध्ययन कर लिया होता…..