नई दिल्ली: शहरों में रहने वाले ईसाई, जैन या स्वर्ण हिंदू समुदायों की शिक्षित और आर्थिक रूप से स्थिर परिवार की लड़कियों की शादी 18 साल के बाद यानी वयस्क होने के बाद की जाती है। एक सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है।किशोरियों के गर्भवती होने के मामले अल्पशिक्षित या निरक्षर किशोरियों में ज्यादा देखे जाते हैं, जो पढ़ी लिखी और कम से कम स्कूली शिक्षा पूरी कर चुकी लड़कियों के मुकाबले नौ गुणा ज्यादा है।हिंदू, मुसलमान लड़कियों की होती है जल्दी शादी!शहरों में रहने वाले ईसाई, जैन या स्वर्ण हिंदू समुदायों की शिक्षित और आर्थिक रूप से स्थिर परिवार की लड़कियों की शादी 18 साल के बाद यानी वयस्क होने के बाद की जाती है। एक सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है।
ग्रामीण क्षेत्र की युवतियों और शहरी क्षेत्रों की युवतियों के शादी में दो साल का अंतर देखा गया है, जबकि अमीर घरों की युवतियों और निर्धन परिवारों की युवतियों के विवाह में चार साल का अंतर होता है। असम के जनजातीय समुदाय की युवतियां देर से विवाह करती हैं और वहां युवतियों को एक्सट्रा मेरिटल अफेयर रखने की स्वतंत्रता प्राप्त है।दिल्ली की एक संस्था ‘निरंतर’ द्वारा देश के सात राज्यों में कराए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि कम उम्र में लड़कियों का विवाह वैसे तो निचली जातियों में देखा जाता है, लेकिन सर्वणों में भी ऐसे कुछ मामले देखने को मिलते हैं।
जैन समुदाय की युवतियों के विवाह की औसत उम्र 20.8 है, ईसाई समुदाय में यह उम्र सीमा 20.6 है, सिख समुदाय में युवतियों के विवाह की उम्र सीमा 19.9 है, जबकि हिंदू और मुसलमानों में शादी की औसतन उम्र 16.7 है।यह भी देखा गया है कि शिक्षा और आय की भी विवाह की उम्र तय करने में विशेष भूमिका रहती है। निरंतर की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च आय वाले परिवारों में लड़कियों की शादी कम आय वाले परिवारों की लड़कियों की तुलना में चार साल बाद होती है।रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शहरों में रहने वाली लड़कियां ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों की तुलना में दो साल देर से शादी करती हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि केरल और असम में बाल विवाह की दर बेहद निम्न है, जिसका कारण इन स्थानों में मातृसत्तात्मक समाज और महिलाओं का शिक्षित होना है।