अंग्रेजों ने सबसे पहले 11 दिसंबर 1911 को दिल्ली को पहली बार अपनी राजधानी बनाया था. इन 99 वर्षों में दिल्ली ने बेशुमार तरक्की की है.
पहली बार अंग्रेज शासन खुद सर-ए-हिंद की सर जमीं पर हिंदुस्तानियों के वजूद का जायजा लेने पहुंचा. दुनिया भर में गोरे शासन की अगुवाई करने किंग जॉर्ज पंचम क्वीन मैरी के साथ आए. उस समय जब पूरी दुनिया आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रही थी तब अंग्रेज शासक अपने सिर पर एक ऐसा ताज सजाए थे, जिसमें छह हजार से ज्यादा हीरे-जवाहरात जड़े थे. इसके साथ दिल्ली के ताज में एक नया मुकाम जुड़ा और अंग्रेजों की नई राजधानी मिली.
राजधानी नई थी लेकिन शहर पुराना था. इसके बाद दिल्ली में बदलाव की बयार बहने लगी. अंग्रेज एक ऐसे सेफ हाउस की तलाश में थे जो दिल्ली की चारदीवारी के भीतर हो और जहां से सरकार चलाई जा सके. इसके लिए उस जगह को चुना गया जो आज दिल्ली की विधानसभा के रूप में जाना जाता है. यहीं पर इंपीरियल काउंसिल की पहली मीटिंग हुई.
राजधानी बनने के बाद देश के हर हिस्से से यहां लोगों की आवाजाही बढ़ गई. कुछ समय बाद अंग्रेज हुक्मरानों को अपने बच्चों के लिए अच्छी तालीम की जरूरत महसूस होने लगी और इसके बाद दिल्ली यूनीवर्सिटी वजूद में आई. यहां से जो पढ़ लिखकर निकले उन्हें बड़ा अफसर बनाने के लिए यूपीएससी का जन्म हुआ. पद मिला तो पैसा आने लगा. अंग्रेजों के ठाठ बाट और अच्छा पहनने के शौक के कारण कनाट प्लेस बना.
ब्रितानिया सरकार ने देश पर शासन करने के लिए एक व्यवस्था की जरूरत महसूस की. इसके लिए सरकार 1857 के आंदोलन के बाद एक ऐसे सेफ हाउस की तलाश में थे जो पूरी तरह अंग्रेजों की जरूरत के लायक हो और जहां अंग्रेज हुक्मरान बैठकर देश के आवाम पर लगाम कस सकें. इस सपने को अंग्रेजी वास्तुकार एडविन लयूटिन्स ने साकार किया.
लयूटिन्स की सोच पर 1931 में राष्ट्रपति भवन बनकर तैयार हुआ. दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की जड़ें कमजोर हो गईं तो वह दिल्ली को बसाने की बजाए अपने को बचाने में लगे रहे. आखिरी बार अंग्रेजों ने राजपथ पर 1947 में आखिरी बार सलामी ली.
अंग्रेज चले गए और भारत ने दो सौ साल बाद आजादी का सूरज देखा.
1911 से 2010 इन 99 वर्षों में दिल्ली का चेहरा पूरी तरह बदल गया है. कभी वाल सिटी के नाम से जानी जाने वाली दिल्ली आज दुनिया के बड़े और अहम शहरों में शुमार है.
1965 के बाद 1984 में हुए एशियाई खेलों के बाद दिल्ली के विकास में तेजी आई. दिल्ली ने देश के साथ दुनिया के नक्शे पर भी अपनी मौजूदगी बड़े शहर के रूप में दर्ज कराई.
दिल्ली में कांग्रेस सरकार के आने के बाद राजधानी की शानोशौकत में चार-चांद लग गए. दिल्ली के कोने-कोने तक फैली मेट्रो ट्रेनें और बढ़ते फ्लाईओवर शहर की पहचान बन गए. घनी हरियाली और लंबी चौड़ी सड़कों के साथ-साथ दिल्ली की लाइफ स्टाइल में तेजी से बदलाव आया. कॉमनवेल्थ गेम्स की सफल मेजबानी ने तो दिल्ली को लंदन और पेरिस जैसे शहरों की बराबरी में खड़ा कर दिया.
शहर का विकास तेजा से हुआ लेकिन इसके साथ दिल्ली की अपनी तहजीब जैसे कहीं खो सी गई है, लेकिन पुरानी दिल्ली अब भी उस पुरानी दिल्ली के अंदाज को कुछ हद तक जिंदा रखे हुए है.