नई दिल्ली:नमस्ते, युवा दोस्तों। आज तो पूरा दिन भर शायद आपका मन क्रिकेट मैच में लगा होगा, एक तरफ परीक्षा की चिंता और दूसरी तरफ वर्ल्ड कप। हो सकता है आप छोटी बहन को कहते होंगे कि बीच – बीच में आकर स्कोर बता दे। कभी आपको ये भी लगता होगा, चलो यार छोड़ो, कुछ दिन के बाद होली आ रही है और फिर सर पर हाथ पटककर बैठे होंगे कि देखिए होली भी बेकार गई, क्यों? एग्जाम आ गए। होता है न! बिलकुल होता होगा, मैं जानता हूं। खैर दोस्तों, आपकी मुसीबत के समय मैं आपके साथ आया हूं। आपके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। उस समय मैं आया हूं। और मैं आपको कोई उपदेश देने नहीं आया हूं। ऐसे ही हलकी – फुलकी बातें करने आया हूं।
बहुत पढ़ लिया न, बहुत थक गए न! और मां डांटती है, पापा डांटते है, टीचर डांटते हैं, पता नहीं क्या क्या सुनना पड़ता है। टेलीफोन रख दो, टीवी बंद कर दो, कंप्यूटर पर बैठे रहते हो, छोड़ो सबकुछ, चलो पढ़ो यही चलता है न घर में? साल भर यही सुना होगा, दसवीं में हो या बारहवीं में। और आप भी सोचते होंगे कि जल्द एग्जाम खत्म हो जाए तो अच्छा होगा, यही सोचते हो न? मैं जानता हूं आपके मन की स्थिति को और इसीलिए मैं आपसे आज ‘मन की बात’ करने आया हूं। वैसे ये विषय थोड़ा कठिन है।
आज के विषय पर मां बाप चाहते होंगे कि मैं उन बातों को करूं, जो अपने बेटे को या बेटी को कह नहीं पाते हैं। आपके टीचर चाहते होंगे कि मैं वो बातें करूं, ताकि उनके विद्यार्थी को वो सही बात पहुंच जाए और विद्यार्थी चाहता होगा कि मैं कुछ ऐसी बातें करूं कि मेरे घर में जो प्रेशर है, वो प्रेशर कम हो जाए। मैं नहीं जानता हूं, मेरी बातें किसको कितनी काम आएंगी, लेकिन मुझे संतोष होगा कि चलिए मेरे युवा दोस्तों के जीवन के महत्वपूर्ण पल पर मैं उनके बीच था। अपने मन की बातें उनके साथ गुनगुना रहा था। बस इतना सा ही मेरा इरादा है और वैसे भी मुझे ये तो अधिकार नहीं है कि मैं आपको अच्छे एग्जाम कैसे जाएं, पेपर कैसे लिखें, पेपर लिखने का तरीका क्या हो? ज्यादा से ज्यादा मार्क्स पाने की लिए कौन-कौन सी तरकीबें होती हैं? क्योंकि मैं इसमें एक प्रकार से बहुत ही सामान्य स्तर का विद्यार्थी हूं।
क्योंकि मैंने मेरे जीवन में किसी भी एग्जाम में अच्छे परिणाम प्राप्त नहीं किए थे। ऐसे ही मामूली जैसे लोग पढ़ते हैं वैसे ही मैं था और ऊपर से मेरी तो हैंडराइटिंग भी बहुत ख़राब थी। तो शायद कभी-कभी तो मैं इसलिए भी पास हो जाता था, क्योंकि मेरे टीचर्स मेरा पेपर पढ़ ही नहीं पाते होंगे। खैर वो तो अलग बातें हो गई, हलकी-फुलकी बातें हैं।
लेकिन मैं आज एक बात जरूर आपसे कहना चाहूंगा कि आप परीक्षा को कैसे लेते हैं, इस पर आपकी परीक्षा कैसी जाएगी, ये निर्भर करती है। अधिकतम लोगों को मैंने देखा है कि वो इसे अपने जीवन की एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण घटना मानते हैं और उनको लगता है कि नहीं, ये गया तो सारी दुनिया डूब जाएगी। दोस्तों, दुनिया ऐसी नहीं है और इसलिए कभी भी इतना तनाव मत पालिए। हां, अच्छा परिणाम लाने का इरादा होना चाहिए। पक्का इरादा होना चाहिए, हौसला भी बुलंद होना चाहिए। लेकिन परीक्षा बोझ नहीं होनी चाहिए, और न ही परीक्षा कोई आपके जीवन की कसौटी कर रही है। ऐसा सोचने की जरूरत नहीं है।
कभी-कभार ऐसा नहीं लगता कि हम ही परीक्षा को एक बोझ बना देते हैं घर में और बोझ बनाने का एक कारण जो होता है, ये होता है कि हमारे जो रिश्तेदार हैं, हमारे जो यार-दोस्त हैं, उनका बेटा या बेटी हमारे बेटे की बराबरी में पढ़ते हैं। अगर आपका बेटा दसवीं में है, और आपके रिश्तेदारों का बेटा दसवीं में है तो आपका मन हमेशा इस बात को कंपेयर करता रहता है कि मेरा बेटा उनसे आगे जाना चाहिए, आपके दोस्त के बेटे से आगे होना चाहिए। बस यही आपके मन में जो कीड़ा है न, वो आपके बेटे पर प्रेशर पैदा करवा देता है। आपको लगता है कि मेरे अपनों के बीच में मेरे बेटे का नाम रोशन हो जाए और बेटे का नाम तो ठीक है, आप खुद का नाम रोशन करना चाहते हैं।
क्या आपको नहीं लगता है कि आपके बेटे को इस सामान्य स्पर्धा में लाकर के आपने खड़ा कर दिया है? जिंदगी की एक बहुत बड़ी ऊंचाई, जीवन की बहुत बड़ी व्यापकता, क्या उसके साथ नहीं जोड़ सकते हैं? अड़ोस – पड़ोस के यार दोस्तों के बच्चों की बराबरी वो कैसी करता है! और यही क्या आपका संतोष होगा क्या? आप सोचिये? एक बार दिमाग में से ये बराबरी के लोगों के साथ मुकाबला और उसी के कारण अपने ही बेटे की जिंदगी को छोटी बना देना, ये कितना उचित है? बच्चों से बातें करें तो भव्य सपनों की बातें करें। ऊंची उड़ान की बातें करें। आप देखिये, बदलाव शुरू हो जाएगा।
दोस्तों एक बात है जो हमें बहुत परेशान करती है। हम हमेशा अपनी प्रगति किसी और की तुलना में ही नापने के आदी होते हैं। हमारी पूरी शक्ति प्रतिस्पर्धा में खप जाती है। जीवन के बहुत क्षेत्र होंगे, जिनमें शायद प्रतिस्पर्धा जरूरी होगी, लेकिन स्वयं के विकास के लिए तो प्रतिस्पर्धा उतनी प्रेरणा नहीं देती है, जितनी कि खुद के साथ हर दिन स्पर्धा करते रहना।
खुद के साथ ही स्पर्धा कीजिए, अच्छा करने की स्पर्धा, तेज गति से करने की स्पर्धा, और ज्यादा करने की स्पर्धा, और नई ऊंचाईयों पर पहुंचने की स्पर्धा आप खुद से कीजिए, बीते हुए कल से आज ज्यादा अच्छा हो इस पर मन लगाइए। और आप देखिये ये स्पर्धा की ताकत आपको इतना संतोष देगी, इतना आनंद देगी जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते। हम लोग बड़े गर्व के साथ एथलीट सेरगेई बूबका का स्मरण करते हैं। इस एथलीट ने पैंतीस बार खुद का ही रिकॉर्ड तोड़ा था। वह खुद ही अपने एग्जाम लेता था। खुद ही अपने आप को कसौटी पर कसता था और नए संकल्पों को सिद्ध करता था। आप भी उसी लिहाज से आगे बढें तो आप देखिए आपको प्रगति के रास्ते पर कोई नहीं रोक सकता है।
युवा दोस्तों, विद्यार्थियों में भी कई प्रकार होते हैं। कुछ लोग कितनी ही परीक्षाएं क्यों न भाए बड़े ही बिंदास होते हैं। उनको कोई परवाह ही नहीं होती और कुछ होते हैं जो परीक्षा के बोझ में दब जाते हैं। और कुछ लोग मुह छुपा करके घर के कोने में किताबों में फंसे रहते हैं। इन सबके बावजूद भी परीक्षा परीक्षा है और परीक्षा में सफल होना भी बहुत आवश्यक है और में भी चाहता हूं कि आप भी सफल हों लेकिन कभी- कभी आपने देखा होगा कि हम बाहरी कारण बहुत ढूंढ़ते हैं। ये बाहरी कारण हम तब ढूंढ़ते हैं, जब खुद ही कन्फ्यूज्ड हों। खुद पर भरोसा न हो, जैसे जीवन में पहली बार परीक्षा दे रहे हों।
घर में कोई टीवी जोर से चालू कर देगा, आवाज आएगी, तो भी हम चिड़चिड़ापन करते होंगे, मां खाने पर बुलाती होगी तो भी चिड़चिड़ापन करते होंगे। दूसरी तरफ अपने किसी यार-दोस्त का फ़ोन आ गया तो घंटे भर बातें भी करते होंगें । आप को नहीं लगता है आप स्वयं ही अपने विषय में ही कन्फ्यूजन हैं।
दोस्तों खुद को पहचानना ही बहुत जरूरी होता है। आप एक काम किजीए बहुत दूर का देखने की जरूरत नहीं है। आपकी अगर कोई बहन हो, या आपके मित्र की बहन हो जिसने दसवीं या बारहवी के एग्जाम दे रही हो, या देने वाली हो। आपने देखा होगा, दसवीं के एग्जाम हों बारहवीं के एग्जाम हों तो भी घर में लड़कियां मां को मदद करती ही हैं। कभी सोचा है, उनके अंदर ये कौन सी ऐसी ताकत है कि वे मां के साथ घर काम में मदद भी करती हैं और परीक्षा में लड़कों से लड़कियां आजकल बहुत आगे निकल जाती हैं। थोड़ा आप ऑब्जर्व कीजिये अपने अगल-बगल में।
आपको ध्यान में आ जाएगा कि बाहरी कारणों से परेशान होने की जरुरत नहीं है। कभी-कभी कारण भीतर का होता है खुद पर अविश्वास होता है तो फिर आत्मविश्वास क्या काम करेगा? और इसलिए मैं हमेशा कहता हूं जैसे-जैसे आत्मविश्वास का अभाव होता है, वैसे वैसे अंधविश्वास का प्रभाव बढ़ जाता है। और फिर हम अंधविश्वास में बाहरी कारण ढूंढते रहते हैं। बाहरी कारणों के रास्ते खोजते रहते हैं कुछ तो विद्यार्थी ऐसे होते हैं जिनके लिए हम कहते हैं आरंभीशुरा। हर दिन एक नया विचार, हर दिन एक नई इच्छा, हर दिन एक नया संकल्प और फिर उस संकल्प की बाल मृत्यु हो जाता है, और हम वहीं के वहीं रह जाते हैं।
मेरा तो साफ मानना है दोस्तों, बदलती हुई इच्छाओं को लोग तरंग कहते हैं। हमारे साथी यार-दोस्त, अड़ोसी-पड़ोसी, माता-पिता मजाक उड़ाते हैं और इसलिए मैं कहूंगा, इच्छाएं स्थिर होनी चाहिए और जब इच्छाएं स्थिर होती हैं, तभी तो संकल्प बनती हैं और संकल्प बांझ नहीं हो सकते। संकल्प के साथ पुरुषार्थ जुड़ता है और जब पुरुषार्थ जुड़ता है तब संकल्प सिद्दी बन जाता है और इसीलिए तो मैं कहता हूं कि इच्छा + स्थिरता= संकल्प। संकल्प + पुरुषार्थ= सिद्धि।
मुझे विश्वास है कि आपके जीवन यात्रा में भी सिद्दी आपके चरण चूमने आ जाएगी। अपने आप को खपा दीजिए। अपने संकल्प के लिए खपा दीजिए और संकल्प सकारात्मक रखिए। किसी से आगे जाने की मत सोचिए। खुद जहां थे वहां से आगे जाने के लिए सोचिए और इसलिए रोज अपनी जिंदगी को कसौटी पर कसता रहता है उसके लिए कितनी ही बड़ी कसौटी क्यों न आ जाए कभी कोई संकट नहीं आता है। और दोस्तों कोई अपनी कसौटी क्यों करे? कोई हमारे exam क्यों ले? आदत डालो न। हम खुद ही हमारे exam लेंगें। हर दिन हमारी परीक्षा लेंगे। देखेंगे मैं कल था वहां से आज आगे गया कि नहीं गया। मैं कल था वहां से आज ऊपर गया कि नहीं। मैंने कल जो पाया था उससे ज्यादा आज पाया कि नहीं पाया। हर दिन हर पल अपने आपको कसौटी पर कसते रहिए। फिर कभी जिंदगी में कसौटी, कसौटी लगेगी ही नहीं। हर कसौटी आपको खुद को कसने का अवसर बन जाएगी और जो खुद को कसना जानता है वो कसौटियों को भी पार कर जाता है और इसलिए जो जिंदगी की परीक्षा से जुड़ता है उसके लिए क्लासरूम की परीक्षा बहुत मामूली होती है।
कभी आपने भी कल्पना नहीं की होगी और इतने अच्छे अच्छे काम कर दिए होंगे। जरा उसको याद करो, अपने आप विश्वास पैदा हो जाएगा। अरे वाह! आपने वो भी किया था, ये भी किया था? पिछले साल बीमार थी तब भी इतने अच्छे मार्क्स लाए थे। पिछली बार मामा के घर में शादी थी, वहां सप्ताह भर खराब हो गया था, तब भी इतने अच्छे मार्क्स लाए थे। अरे पहले तो आप छः घंटे सोते थे और पिछले साल आपने तय किया था कि नहीं नहीं अब की बार पांच घंटे सोऊंगा और आपने कर के दिखाया था। अरे यही तो है, मोदी आपको क्या उपदेश देगा आप अपने मार्गदर्शक बन जाइए। और भगवान् बुद्ध तो कहते थे अंतःदीपो भव:।
मैं मानता हूं, आपके भीतर जो प्रकाश है न उसको पहचानिए आपके भीतर जो सामर्थ्य है उसको पहचानिए और जो खुद को बार-बार कसौटी पर कसता है वो नई-नई ऊंचाइयों को पार करता ही जाता है। दूसरा कभी- कभी हम बहुत दूर का सोचते रहते हैं। कभी-कभी भूतकाल में सोए रहते हैं। दोस्तों परीक्षा के समय ऐसा मत कीजिए। परीक्षा समय तो आप वर्तमान में ही जीना अच्छा रहेगा।
क्या कोई बैट्समैन पिछली बार कितनी बार जीरो में आऊट हो गया, इसके गीत गुनगुनाता है क्या? या ये पूरी सीरीज जीतूंगा या नहीं जीतूंगा, यही सोचता है क्या? मैच में उतरने के बाद बैटिंग करते समय सेंचुरी करके ही बाहर आऊंगा कि नहीं आऊंगा, ये सोचता है क्या? जी नहीं, मेरा मत है, अच्छा बैट्समैन उस बॉल पर ही ध्यान केंद्रित करता है, जो बॉल उसके सामने आ रही है। वो न अगले बॉल की सोचता है, न पूरे मैच की सोचता है, न पूरी सीरीज की सोचता है। आप भी अपना मन वर्तमान से लगा दीजिए। जीतना है तो उसकी एक ही जड़ी-बूटी है। वर्तमान में जीएं, वर्तमान से जुड़ें, वर्तमान से जूझें। जीत आपके साथ साथ चलेगी।
मेरे युवा दोस्तों, क्या आप ये सोचते हैं कि परीक्षा आपकी क्षमता का प्रदर्शन करने के लिए होती हैं। अगर ये आपकी सोच है तो गलत है। आपको किसको अपनी क्षमता दिखानी है? ये प्रदर्शन किसके सामने करना है? अगर आप ये सोचें कि परीक्षा क्षमता प्रदर्शन के लिए नहीं, खुद की क्षमता पहचानने के लिए है। जिस पल आप अपने मंत्र मानने लग जाएंगे आप पकड़ लेंगे न, आपके भीतर का विश्वास बढ़ता चला जाएगा और एक बार आपने खुद को जाना, अपनी ताकत को जाना तो आप हमेशा अपनी ताकत को ही खाद पानी डालते रहेंगे और वो ताकत एक नए सामर्थ्य में परिवर्तित हो जाएगी और इसलिए परीक्षा को आप दुनिया को दिखाने के लिए एक चुनौती के रूप में मत लीजिए, उसे एक अवसर के रूप में लीजिए।
खुद को जानने का, खुद को पह्चानने का, खुद के साथ जीने का यह एक अवसर है। जी लीजिए न दोस्तो। दोस्तो मैंने देखा है कि बहुत विद्यार्थी ऐसे होते हैं जो परीक्षाओं के दिनों में नर्वस हो जाते हैं। कुछ लोगों का तो कथन इस बात का होता है कि देखो मेरा आज एग्जाम था और मामा ने मुझे विश नहीं किया, चाचा ने विश नहीं किया, बड़े भाई ने विश नहीं किया। और पता नहीं उसका घंटा दो घंटा परिवार में यही डिबेट होता है।
देखो उसने विश किया, उसका फोन आया क्या, उसने बताया क्या, उसने गुलदस्ता भेजा क्या? दोस्तो इससे परे हो जाइए, इन सारी चीजों में मत उलझिए। ये सारा परीक्षा के बाद सोचना किसने विश किया किसने नहीं किया।
अपने आप पर विश्वास होगा न तो ये सारी चीजें आएंगी ही नहीं। दोस्तों मैंने देखा है की ज्यादातर विद्यार्थी नर्वस हो जाते हैं। मैं मानता हूं की नर्वस होना कुछ लोगों के स्वभाव में होता है। कुछ परिवार का वातावरण ही ऐसा है। नर्वस होने का मूल कारण होता है अपने आप पर भरोसा नहीं है। ये अपने आप पर भरोसा कब होगा, एक अगर विषय पर आपकी अच्छी पकड़ होगी, हर प्रकार से मेहनत की होगी, बार-बार रिवीजन किया होगा। आपको पूरा विश्वास है हां हां इस विषय में तो मेरी मास्टरी है और आपने भी देखा होगा, पांच और सात सबजेक्ट्स में दो तीन तो एजेंडा तो ऐसे होंगे जिसमें आपको कभी चिंता नहीं रहती होगी।
नर्वसनेस कभी एक आध दो में आती होगी। अगर विषय में आपकी मास्टरी है तो नर्वसनेस कभी नहीं आएगी। आपने साल भर जो मेहनत की है ना, उन किताबों को वो रात-रात आपने पढ़ाई की है आप विश्वास कीजिए वो बेकार नहीं जाएगी। वो आपके दिल-दिमाग में कहीं न कहीं बैठी है, परीक्षा की टेबल पर पहुंचते ही वो आएगी। आप अपने ज्ञान पर भरोसा करो, अपनी जानकारियों पर भरोसा करो, आप विश्वास रखो कि आपने जो मेहनत की है वो रंग लाएगी और दूसरी बात है आप अपनी क्षमताओं के बारे में बड़े कॉन्फिडेंट होने चाहिए।
आपको पूरी क्षमता होनी चाहिए कि वो पेपर कितना ही कठिन क्यों न हो मैं तो अच्छा कर लूंगा। आपको कॉन्फिडेंस होना चाहिए कि पेपर कितना ही लंबा क्यों न हो मैं तो सफल रहूंगा या रहूंगी। कॉन्फिडेंस रहना चाहिए कि मैं तीन घंटे का समय है तो तीन घंटे में, दो घंटे का समय है तो दो घंटे में, समय से पहले मैं अपना काम कर लूंगा और हमें तो याद है शायद आपको भी बताते होंगे। हम तो छोटे थे तो हमारे टीचर्स बताते थे जो सरल सवाल है उसको सबसे पहले ले लीजिए, कठिन को आखिर में लीजिए। आपको भी किसी न किसी ने बताया होगा और मैं मानता हूं इसको तो आप जरुर पालन करते होंगे।
दोस्तो MyGov. पर मुझे कई सुझाव, कई अनुभव आए हैं। वो सारे तो मैं शिक्षा विभाग को दे दूंगा, लेकिन कुछ बातों का मैं उल्लेख करना चाहता हूं। मुंबई महाराष्ट्र के अर्णव मेहता ने लिखा है कि कुछ लोग परीक्षा को जीवन मरण का इशू बना देते हैं अगर परीक्षा में फेल हो गए तो जैसे दुनिया डूब गई हैं। तो वाराणसी से विनीता तिवारी जी, उन्होंने लिखा है कि जब परिणाम आते है और कुछ बच्चे आत्महत्या कर देते हैं, तो मुझे बहुत पीड़ा होती है, ये बातें तो सब दूर आपके कान में आती होंगी, लेकिन इसका एक अच्छा जवाब मुझे किसी और एक सज्जन ने लिखा है।
तमिलनाडु से मिस्टर आर. कामत, उन्होंने बहुत अच्छे दो शब्द दिए है, उन्होंने कहा है कि स्टूडेंट्स वरियर (worrier) मत बनिए, वॉरियर (warrior) बनिए, चिंता में डूबने वाले नहीं, समरांगन में जूझने वाले होने चाहिए, मैं समझता हूं कि सचमुच में हम चिंता में न डूबे, विजय का संकल्प ले करके आगे बढ़ना और ये बात सही है, जिंदगी बहुत लंबी होती है, उतार चढाव आते रहते हैं इससे कोई डूब नहीं जाता है। कभी-कभी अनेच्छिक परिणाम भी आगे बढ़ने का संकेत भी देते हैं, नई ताकत जगाने का अवसर भी देते हैं।
एक चीज मैंने देखी हैं कि कुछ विद्यार्थी परीक्षा खंड से बाहर निकलते ही हिसाब लगाना शुरू कर देते है कि पेपर कैसा गया, यार, दोस्त, मां बाप जो भी मिलते हैं वो भी पूछते है भाई आज का पेपर कैसा गया? मैं समझता हूं कि आज का पेपर कैसा गया! बीत गई सो बात गई, प्लीज उसे भूल जाइए, मैं उन मां बाप को भी प्रार्थना करता हूं प्लीज अपने बच्चे को पेपर कैसा गया ऐसा मत पूछिए, बाहर आते ही उसको कह दे वाह! तेरे चेहरे पर चमक दिख रही है, लगता है बहुत अच्छा पेपर गया? वाह शाबाश, चलो चलो कल के लिए तैयारी करते है! ये मूड बनाइए और दोस्तों मैं आपको भी कहता हूं।
मान लीजिए आपने हिसाब किताब लगाया, और फिर आपको लगा यार ये दो चीज़े तो मैंने गलत कर दी, छः नंबर कम आ जाएंगे, मुझे बताइए इसका विपरीत प्रभाव, आपके दूसरे दिन के पेपर पर पड़ेगा कि नहीं पड़ेगा? तो क्यों इसमें समय बर्बाद करते हो? क्यों दिमाग खपाते हो? सारे एग्जाम समाप्त होने के बाद, जो भी हिसाब लगाना है, लगा लीजिए। कितने मार्क्स आएंगे, कितने नहीं आएंगे, सब बाद में कीजिए, परीक्षा के समय पेपर समाप्त होने के बाद, अगले दिन पर ही मन केंद्रित कीजिए, उस बात को भूल जाइए, आप देखिए आपका बीस पच्चीस प्रतिशत भार यूं ही कम हो जाएगा।
मेरे मन में कुछ और भी विचार आते चले जाते हैं खैर मै नहीं जानता कि अब तो परीक्षा का समय आ गया तो अभी वो काम आएगा। लेकिन मैं शिक्षक मित्रों से कहना चाहता हूं, स्कूल मित्रों से कहना चाहता हूं कि क्या हम साल में दो बार हर टर्म में एक हफ्ते का परीक्षा उत्सव नहीं मना सकते हैं, जिसमें परीक्षा पर व्यंग्य काव्यों का कवि सम्मलेन हो। कभी एसा नहीं हो सकता परीक्षा पर कार्टून स्पर्धा हो परीक्षा के ऊपर निबंध स्पर्धा हो परीक्षा पर वक्तोतव प्रतिस्पर्धा हो, परीक्षा के मनोवैज्ञानिक परिणामों पर कोई आकर के हमें लेक्चर दे, डिबेट हो ये परीक्षा का हव्वा अपने आप खत्म हो जाएगा।
एक उत्सव का रूप बन जाएगा और फिर जब परीक्षा देने जाएगा विद्यार्थी तो उसको आखिरी मूमेंट से जैसे मुझे आज आपका समय लेना पड़ रहा है वो लेना नहीं पड़ता, वो अपने आप आ जाता और आप भी अपने आप में परीक्षा के विषय में बहुत ही और कभी कभी तो मुझे लगता है कि सिलेबस में ही परीक्षा विषय क्या होता हैं समझाने का क्लास होना चाहिए। क्योंकि ये तनावपूर्ण अवस्था ठीक नहीं है।
दोस्तों मैं जो कह रहा हूं, इससे भी ज्यादा आपको कईयों ने कहा होगा। मां बाप ने बहुत सुनाया होगा, मास्टर जी ने सुनाया होगा, अगर ट्यूशन क्लास में जाते होंगे तो उन्होंने सुनाया होगा, मैं भी अपनी बातें ज्यादा कह करके आपको फिर इसमें उलझने के लिए मजबूर नहीं करना चाहता, मैं इतना विश्वास दिलाता हूं, कि इस देश का हर बेटा, हर बेटी, जो परीक्षा के लिए जा रहे हैं, वे प्रसन्न रहे, आनंदमय रहे, हसंते खेलते परीक्षा के लिए जाएं।
आपकी खुशी के लिए मैंने आपसे बातें की हैं, आप अच्छा परिणाम लाने ही वाले हैं, आप सफल होने ही वाले हैं, परीक्षा को उत्सव बना दीजिए, ऐसी मौज मस्ती से परीक्षा दीजिए, और हर दिन अचीवमेंट का आनंद लीजिए, पूरा माहौल बदल दीजिए। मां बाप, शिक्षक, स्कूल, क्लासरूम सब मिल करके करिए, देखिए, कसौटी को भी कसने का कैसा आनंद आता है। चुनौती को चुनौती देने का कैसा आनंद आता है, हर पल को अवसर में पलटने का क्या मजा होता है, और देखिए दुनिया में हर कोई हर किसी को खुश नहीं कर सकता है।
मुझे पहले कविताएं लिखने का शौक था, गुजराती में मैंने एक कविता लिखी थी, पूरी कविता तो याद नहीं, लेकिन मैंने उसमे लिखा था, सफल हुए तो ईर्ष्या पात्र, विफल हुए तो टिका पात्र, तो ये तो दुनिया का चक्र है, चलता रहता है, सफल हो किसी को पराजित करने के लिए नहीं, सफल हो अपने संकल्पों को पार करने के लिए, सफल हो अपने खुद के आनंद के लिए, सफल हो अपने लिए जो लोग जी रहे है, उनके जीवन में खुशियां भरने के लिए, ये खुशी को ही केंद्र में रख करके आप आगे बढ़ेंगे, मुझे विश्वास है दोस्तो।
बहुत अच्छी सफलता मिलेगी और फिर कभी, होली का त्यौहार मनाया कि नहीं मनाया, मामा के घर शादी में जा पाया कि नहीं जा पाया, दोस्तों कि बर्थडे पार्टी में इस बार रह पाया कि नहीं रह पाया, क्रिकेट वर्ल्ड कप देख पाया कि नहीं देख पाया, सारी बातें बेकार हो जाएंगी, आप और एक नए आनंद को नई खुशियों में जुड़ जाएंगे, मेरी आपको बहुत शुभकामना हैं और आपका भविष्य जितना उज्जवल होगा, देश का भविष्य भी उतना ही उज्जवल होगा, भारत का भाग्य, भारत की युवा पीढ़ी बनाने वाली है, आप बनाने वाले हैं, बेटा हो या बेटी दोनों कंधे से कंधा मिला करके आगे बढ़ने वाले हैं।
आइए, परीक्षा के उत्सव को आनंद उत्सव में परिवर्तित कीजिए, बहुत बहुत शुभकामनाएं!