यौन-कर्म का व्यापार

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edit28o_29_10_2014फर्रुखाबाद:राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम की इस राय पर अवश्य सवाल उठाए जाएंगे कि वेश्यावृत्ति को वैधानिक बना दिया जाना चाहिए। कुमारमंगलम के तर्कों का आधार व्यावहारिकता है और ये कमोबेश वही हैं, जो ऐसी मांग करने वाले लोग लंबे समय से पेश करते रहे हैं। लेकिन अब ये बहस अधिक प्रासंगिक हो गई है, क्योंकि कुमारमंगलम ने अपना प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रिमंडल की अधिकार-प्राप्त समिति के सामने रखने का एलान किया है। उनका दावा है कि वेश्यावृत्ति को कानूनी बना देने से महिलाओं की तस्करी रुकेगी। साथ ही ग्राहकों के लिए सुरक्षित तरीके से संबंध बनाना अनिवार्य हो जाएगा, जिससे इस कारोबार में लगी स्त्रियां एचआईवी तथा अन्य संक्रामक यौन रोगों से बच सकेंगी। कुमारमंगलम ऐसा कानून चाहती हैं, जिससे वेश्याओं के कामकाज के घंटे और पारिश्रमिक तय हों तथा उनके स्वास्थ्य की उचित देखभाल हो सके।

इन उद्देश्यों से शायद ही कोई असहमत होगा। मगर मुद्दा इससे कहीं गंभीर है, जिससे कुछ व्यावहारिक प्रति-प्रश्न के साथ समाज और मनुष्य को देखने के नजरिए से संबंधित सवाल भी जुड़े हुए हैं। ये सारा धंधा महिलाओं के घोर अमानवीय शोषण पर टिका है। कोठों के मालिक/मालकिन, बिचौलिये/दलाल और गरीब/अशिक्षित तबकों की लड़कियों की तस्करी करने वाले गिरोहों की मिलीभगत से इसमें महिलाओं को धकेला जाता है। वे लाचार स्त्रियां एक पल के लिए भी अपने बारे में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नहीं रहतीं।

मुद्दा यह है कि कानूनी दर्जा देने से क्या ऐसे नेटवर्क टूट जाएंगे? या इससे उपरोक्त गिरोहों को खुलकर देह व्यापार चलाने का मौका नहीं मिल जाएगा? कोलकाता के सोनागाछी (जिसे भारत में सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया कहा जाता है) में कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं का अनुभव यह रहा कि जब वहां सुरक्षित यौन संबंध का कायदा लागू किया गया, तो गर्भनिरोधक अपनाने को अनिच्छुक ग्राहकों से कोठों के मालिक और दलाल ज्यादा पैसा वसूलने लगे।

फिर प्रश्न है कि क्या किसी सभ्य समाज में यौन-क्रिया के व्यापार की इजाजत होनी चाहिए? इसे आज तक रोका नहीं जा सका, यह तो इसे वैधानिक रूप देने का कोई तर्क नहीं हो सकता। दरअसल ये धंधा इसलिए चल रहा है, क्योंकि महिलाओं को पुरुष प्रधान समाजों ने इंसानी दर्जा नहीं दिया है। उन्हें भोग की वस्तु समझा गया है। चूंकि इस मानसिकता से संचालित यौन के खरीदार मौजूद हैं, अत: सिरे से अस्वीकार्य इस बुराई को पेशा कहना आम प्रचलन में है।

बहरहाल, वेश्यावृत्ति संबंधी वर्तमान कानून में ऐसे संशोधनों की जरूरत अवश्य है, जिससे पीड़िताएं ही मुजरिम न ठहराई जाएं। कानून के निशाने पर वो लोग होने चाहिए, जो ये धंधा चलाते हैं और पैसे के जोर से यौन-सुख खरीदते हैं। लक्ष्य अंतत: इस बुराई का खात्मा होना चाहिए।