फर्रुखाबाद: आपदा के समय में पीड़ित जनों की मदद के लिए बनी भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी को जिले में मदद की दरकार है| जिलाधिकारी की अध्यक्षता में चलने वाली जिला रेडक्रॉस सोसायटी का काम देखने वाला आज जिले में कोई नहीं है| रेडक्रॉस सोसायटी के नाम पर बस रस्म अदायगी भर बची है| अपर सीएमओ डॉ राजवीर सिंह इस रस्म का किसी तरह से निर्वाह कर रहे हैं| लेकिन सोसायटी के काम के नाम पर वह भी कोई सरदर्द नहीं लेना चाहते हैं| सोसायटी का हिसाब किताब रखने वाला भी कोई नहीं है| सीएमओ कार्यालय के एक लिपिक सुनील कुमार को इसका अतरिक्त चार्ज दिया गया है| लेकिन वह सोसायटी के दफ्तर में कभी नहीं बैठते|
पुराने जिला अस्पताल परिसर में बना रेडक्रॉस सोसायटी का दफ्तर अब गिरने की कगार पर है| दफ्तर की दीवारें दरक रही हैं और उसके चारो ओर बड़ी बड़ी झाड खड़ी हो गई है| कोई अजनबी यहाँ रेडक्रॉस सोसायटी के दफ्तर को आसानी से नहीं खोज सकता| उसको यह पता करने के लिए किसी पास पड़ोस के जानकार व्यक्ति की जरूरत होगी जो यह बता सके कि रेडक्रॉस सोसायटी का दफ्तर यह है| क्योंकि दफ्तर की दीवारों पर बने रेडक्रॉस के निशान पूरी तरह से मिट चुके हैं|
रेडक्रॉस का वह निशान जिसे बड़े बड़े डॉक्टर, अस्पताल संचालक, मेडिकल स्टोर मालिक अपने संस्थानों और वाहनों पर बड़े ही गर्व के साथ लगते हैं| लेकिन उस संस्था का क्या हाल है जिसकी उनको कोई परवाह नहीं है| देखा जाए तो जिले में एक भी व्यक्ति इस रेडक्रॉस के निशान को प्रयोग करने का हक़दार नहीं है| रेडक्रॉस का निशान लगाये घूम रहे इन लोगों के पास सोसायटी की सदस्यता तक नहीं है| कुछ लोग जो रेडक्रॉस के निशान लगाये घूम रहे हैं उनको यह तक पता नहीं है की आखिर यह रेडक्रॉस है क्या| वह इसे केवल चिकित्सा क्षेत्र की एक पहचान के रूप में मानते हैं, और वह सिर्फ इतना जानते हैं कि इस रेडक्रॉस को लगा लेने भर से लोग उनको सम्मान की नज़र से देखते हैं| पुलिस भी कई बार डॉक्टर समझ कर उनके वाहनों की जांच नहीं करती है|
रेडक्रॉस के निशान के इस दुरुपयोग के लिए आखिर दोषी कौन है? निश्चित तौर पर एक ही जबाब आएगा कि यह जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है| उसको ऐसे लोगों को रेडक्रॉस लगाने से रोकना चाहिए जो सोसायटी के सदस्य नहीं हैं| चलो इस बात को मान लेते हैं| लेकिन फिर एक सवाल उठता है की जिस रेडक्रॉस का निशान लगाकर लोग समाज में अपने को ऊंचा दिखाने की कोशिश करते हैं आखिर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है? क्या वह इसी सम्मान के साथ नियमानुरूप अपना शुल्क अदा नहीं कर सकते? अगर वह ऐसा नहीं कर सकते हैं तो वास्तव में वह रेडक्रॉस के सम्मान के योग्य नहीं हैं| उनसे अच्छे तो वह नन्हे मुन्ने बच्चे हैं जो प्रतिवर्ष स्कूल फीस के साथ रेडक्रॉस का शुल्क भी अदा करते हैं| माना यह सरकारी संस्था है लेकिन इसके माध्यम से हम उन लोगों तक अपनी मदद भेजते हैं जो सही माने में इसके हक़दार हैं| आज रेडक्रॉस की जिले में जो हालत हुई उसके लिए जिला प्रशासन के साथ ही वह लोग भी जम्मेदार हैं जो अपने वाहनों व संस्थानों पर रेडक्रॉस लगाकर घूमते हैं|
रेडक्रॉस की इस हालत को लेकर जब अपर सीएमओ व सचिव डॉ राजवीर सिंह से बात की तो वह पहले इस पर चर्चा के लिए राजी ही नहीं हुए| काफी कुरेदने पर उन्होंने बताया कि जब सोसायटी का काम देखने वाला ही कोई नहीं है तो क्या काम हो| सोसायटी का सदस्यता का काम देखने के लिए एक प्राइवेट सचिव की जरूरत होती है| जिसके लिए कोई आगे नहीं आ रहा है| लिपिक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का मानदेय इतना कम है की कोई काम करने को राजी ही नहीं है| कुछ दिनों पहले तक लिपिक का काम कलेक्ट्रेट के सेवानिवृत्त लिपिक देखते थे लेकिन अब ऐसा कोई नहीं है| रही बात रेडक्रॉस के निशान के दुरुपयोग को रोकने की तो यह बिना पुलिस की सहायता के संभव नहीं है| वह किस किस से झगडा मोल लेंगे| स्कूलों के छात्रों का शुल्क आता है जिसको खाते में डलवा दिया जाता है| इस शुल्क का 60 % प्रदेश रेडक्रॉस सोसायटी को चला जाता है और 40 % जिले के बैंक खाते में रहता है|