यूनिफॉर्म को लेकर दौड़ रहे कागजी घोड़े

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फर्रुखाबाद: परिषदीय स्कूलों में बच्चों की यूनिफॉर्म के लिए शासन से अभी तक जिले को बजट प्राप्त नहीं हुआ है| इस शिक्षा सत्र को शुरू हुए तीन महीने पूरे होने को हैं और बच्चे बिना यूनिफॉर्म के ही स्कूल आने के लिए मजबूर हैं| कुछ बच्चे पिछले साल की फटी पुरानी ड्रेस ही पहनकर स्कूल आ रहे हैं तो कुछ जो घर में मिल जाता है वाही पहन कर आ जाते हैं| बच्चों को इस साल कब तक यूनिफॉर्म मिल सकेगी अभी कुछ नहीं कहा जा सकता| बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों का कहना है, जब तक ग्रांट नहीं मिलती है बच्चों को युनिफॉर्म दे पाना संभव नहीं है| बच्चों को यूनिफॉर्म मिले, मिले न मिले लेकिन अफसर कागजी घोड़े दौड़ाने में पीछे नहीं है| बिना सूत कपास के ही कागजों पर तैयारी चल रही है| जिससे न तो बच्चों को यूनिफॉर्म ही मिल पा रही है और न ही स्कूलों में पढ़ाई हो रही है|

स्कूलों के शिक्षक यूनिफॉर्म वितरण की तैयारी में ही अपना ज्यादातर वक़्त जाया कर रहे हैं| बीएसए कार्यालय से अभी एक नया फरमान जारी कर शिक्षकों को निर्देश दिया गया है कि सभी स्कूलों में क्रय समितियों का गठन कर लिया जाए| साथ ही दर्जी से बच्चों की नाप जोख का काम करवा लिया जाए| जबकि यह बात अफसर भी जानते हैं कि जिले भर में शायद ही किसी स्कूल में कपडा खरीद कर दर्जी से यूनिफॉर्म सिलवाई जाती हो| अन्यथा अधिकांश स्कूलों में घटिया रेडीमेड यूनिफॉर्म खरीद कर उसका वितरण कर दिया जाता है, और शासन के आदेश को ताख पर रख दिया जाता है| जिससे शिक्षक, ठेकेदार और अफसरों सभी का अच्छा खासा भला हो जाता है| बात भी ठीक है, घोडा अगर घास से यारी कर लेगा तो खायेगा क्या और मालिक को क्या खिलायेगा? इसमें एक लाभ यह भी होता है की बच्चे भी यह नहीं कह सकते कि उनको ड्रेस नहीं दी गई| फिर चाहे वह अगले दिन फट ही क्यों जाये| ड्रेस फट जाने के लिए भी बच्चा ही दोषी होता है| शासन के निर्देशों को दरकिनार कर यही सब किया जाना है तो काहे लिए कागजी घोड़े दौड़ना| बजट का इन्तजार करो, जब आ जाए तो खरीद कर वितरण करवा देना| नहीं आता है तब तक कम से कम स्कूलों में जो थोड़ी बहुत होती है पढाई होने दी जाए| क्रय समितियां का हाल भी छुपा नहीं है| जयादातर शिक्षक अपने पसंद के लोगों को इसमें शामिल कर जमकर अपनी मनमर्जी चलाते हैं| माता अभिभावक संघ भी कहीं दिखाई नहीं पड़ता है|