फर्रुखाबाद: गरीब नौनिहालों की यूनीफार्म में गुरुओं की भी खूब चांदी रहती है। नामांकन का सौ फीसदी बजट उपभोग होता है जबकि पाठशालाओं में उपस्थिति का औसत आधा रहता है। खुद शासन इस सच्चाई से वाकिफ है। तभी तो मिड-डे मील की निर्माण लागत औसतन साठ-पैंसठ फसदी दी जा रही है।
जिले के करीब डेढ़ हजार से ज्यादा स्कूलों में नामांकित तकरीबन पौने दो लाख नौनिहालों की यूनीफार्म में लगभग 7 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। गरीब बच्चों की इस यूनीफार्म के धंधे में जहां ठेकेदार और अफसरों की चांदी रहती है। वहीं गुरुओं की भी बल्ले-बल्ले है। चूंकि स्कूलों को यूनीफार्म के लिए नामांकित बच्चों के सापेक्ष बजट आवंटित किया जाता है और परिषद की पाठशालाओं में आधे के करीब बच्चे आते हैं।
खुद शासन का यह मानना है कि स्कूलों में नामांकन के सापेक्ष कभी उपस्थिति नहीं रहती है। सो, मिड-डे मील योजना में शासन ने निर्माण लागत के लिए एक निर्धारित लक्ष्य तय कर रखा है। उच्च प्राथमिक स्कूलों के लिए यह नामांकन 65 फीसदी और प्राथमिक स्कूलों में औसतन 60 फीसदी है। इसी के आधार पर स्कूलों के लिए भोजन तैयार करने की निर्माण लागत का आवंटन होता है। यानी नामांकन के सापेक्ष करीब 40 फीसदी बच्चे इन स्कूलों में पढ़ने के लिए नहीं आते हैं।
जब स्कूलों में शतप्रतिशत बच्चों का ठहराव ही नहीं रहता। तब नामांकन के सापेक्ष यूनीफार्म के बजट का शतप्रतिशत उपभोग भी संभव नहीं। विभागीय सूत्र बताते हैं कि स्कूलों में उन्हीं बच्चों की यूनीफार्म खरीदी जाती है। जो बच्चे नियमित रूप से स्कूल आते हैं। जिन बच्चों के नाम सिर्फ कागजों में दर्ज हैं। उन बच्चों का बजट हजम हो जाता है। इस ओर किसी की नजर नहीं है कि आखिर जब मिड-डे मील खाने के लिए बच्चे स्कूल नहीं आते तो यूनीफार्म में शतप्रतिशत उपस्थिति कैसे हो जाती है? यानी दाल काली है और इस काली दाल में हर किसी का हिस्सा है।
जनप्रतिनिधि करेंगे यूनीफार्म का वितरण
शासन ने स्कूली बच्चों को यूनीफार्म बांटने के लिए जनप्रतिनिधियों को नामित किया है। मुख्य सचिव संजय सिन्हा ने स्कूलों में समारोह आयोजित कर क्षेत्रीय सांसद, मंत्री, विधायक, ब्लाक प्रमुख, जिपं सदस्य, ग्राम प्रधान आदि से बच्चों को यूनीफार्म बंटवाने के निर्देश दिए हैं। [bannergarden id=”8″] [bannergarden id=”11″]