बीत गए 2 सप्ताह- ..न किताब, और न कापी, शुरू हो गई सत्र की पढ़ाई

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Free booksफर्रुखाबाद: डीएम साहब बड़े सख्त है| मास्टर स्कूल में टाइम से आने और जाने लगे है| हवा हवाई दावे और वादो का हाल ये है कि 2 सप्ताह बीत जाने के बाद भी सरकार के कंधो पर चल रहे सरकारी स्कूल के बच्चो का बस्ता अभी तक खाली है| मास्टर नेतागीरी में मशगूल है, शिक्षा मित्र प्राथमिक शिक्षक बनने की ख़ुशी में कॉउंसलिंग में जुटे हुए है और शिक्षा विभाग के जूनियर अफसर स्कूल चलो अभियान का बजट खर्च करने के तरीके जुगाड़ रहे है| जी हाँ खबर ये है कि इस बार न्याय पंचायत स्तर तक पर स्कूल चलो अभियान सम्पन्न कराने के लिए सरकार ने पैसा भेजा है| इसके मुकाबले प्राइवेट स्कूलों में बच्चे छुटियो का होम वर्क चेक करा चुके है और दो दो यूनिट टेस्ट भी दे चुके है| प्राइवेट स्कूलों के मास्टरों को अधिकतम वेतन 2000 से 5000 मिलता है और सरकारी स्कूल मे 31000 से शुरुआत होती है| डीएम साहब सोमवार को कमालगंज के श्रृंगीरामपुर के जिस जूनियर स्कूल में स्कूल में दौरा करने पहुंचे वहां 44 बच्चो के नामांकन के सापेक्ष केवल 11 बच्चे उपस्थित मिले फिर भी साहब स्कूल में मिड डे मील में बढ़िया पूरी सब्जी बनते देख संतुष्ट होकर वापस लौटे| क्या यही सख्ती है|

MDM DMसोमवार को जिलाधिकारी एन के एस चौहान कमालगंज के श्रृंगीरामपुर में दौरा करने पहुंचे| असल मकसद तो गंगा किनारे सावन में आने वाले भक्तो और मेले की व्यवस्था देखने का था मगर दो स्कूल में रस्ते में चेक हो गए| एक रजीपुर का प्राइमरी स्कूल और दूसरा श्रृंगीरामपुर में| श्रृंगीरामपुर में बच्चो के पास किताबे न देख डीएम साहब ने हेडमास्टर को हड़काया और फ़ौरन जो किताबे आ गयी थी उन्हें बटवाया| मिड डे मील में दलिया की जगह पूरी सब्जी बनते देखी तो सवाल खड़ा किया| जबाब में सावन के पहले सोमवार को बच्चो पूरी सब्जी खिलाने का पुण्य कमाने की वजह बताई गयी| दरअसल में सूत्रों से जो खबर मिली है उसके अनुसार इन स्कूलों में पहले से ही खबर हो गयी थी कि डीएम साहब आ रहे है| अब खबर लीक किसने की ये बात और है|

तो 2 सप्ताह बाद भी बच्चो का बस्ता किताबो से महरूम है| ये बात और है कि पूरे शिक्षा विभाग और सरकारी अफसरों के बच्चो के बस्ते में पूरी किताबे सत्र से पहले ही खरीद ली गयी थी| भारी भरकम वेतन पाने वाले मास्टरों के अपने बच्चो के बस्ते मास्टर साहब खुद लगाकर घर से निकलते है| ये भूल जाते है कि जिनके लिए उन्हें वेतन मिलता है अगर वे नहीं होते तो ये नौकरी भी न होती| किताबे अभी तक जिला मुख्यालय गोदाम पर ही पूरी नहीं आई है| इसके लिए अभी तक कोई रिमाइंडर नहीं लिखा गया है|
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