यूपी का मास्टर है “मास्टर माइंड”

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फर्रुखाबाद: शायद पूरे भारत में ऐसे “मास्टर माइंड” मास्टर नहीं मिलेंगे जैसे उत्तर प्रदेश में हैं| इनसे निबटने के लिए दुनिया की सारी टेक्नोलोजी फेल हो चली है| कहते है चोर चोरी से जाये हेराफेरी से न जाये| इसी बात को सच साबित कर दिखाया प्रदेश में जनता के टैक्स से मोटा वेतन पाने वाले हजारो प्राइमरी शिक्षको ने|
नहले पर दहला-
उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कागजो में बन रहे मिड-डे-मील के हालात सुधारने के लिए प्रदेश ने लगभग डेढ़ करोड़ की आईवीआरएस तकनीक का प्रयोग किया| आईआईटी  कानपुर के सहयोग से विकसित इस तकनीक में इन्टरनेट के माध्यम से दोपहर को प्रदेश के हर स्कूल में तैनात मास्टर के मोबाइल पर एक घंटी बजती है जिसमे उन्हें बटन दबा कर उनके स्कूल में मिड डे मील का हाल बताना होता है कि कितने बच्चो ने खाना खाया या खाना नहीं बना| धूम धड़ाके से योजना शुरू हुई, योजना को चलाने के लिए महीनो ट्रेनिंग चली, लाखो बह गए| योजना का प्लान बहुत ही अच्छा था क्यूंकि प्रदेश के साढ़े तीन लाख स्कूल से हर रोज दोपहर में ये रिपोर्ट मिल जाये तो बड़ी बात थी| मगर स्कूल से गायब रहने वाले मास्टरों और चोर प्रधानो के माफिया जाल ने इस योजना की धज्जिया उड़ा दी|
जब बटन ही नहीं दबायेंगे तो क्या कर लोगे?
जनपद फर्रुखाबाद का ही उदहारण लें- नवम्बर 2010 के प्रथम 15 दिनों में 1752 स्कूलों में से 421 स्कूलों के मास्टरों ने घंटी बजने के बाबजूद जबाब ही दिया| इनके फ़ोन पर घंटी बजती रही और मास्टर या तो खुद स्कूल में नहीं थे या फिर खाना नहीं बना होगा शायद इसीलिए मोबाइल का बटन दबाना भी मुनासिब नहीं समझा| दूसरी तरफ इसी माह में 15 से 20 तारीख के बीच 545 स्कूलों में मिड डे मील शून्य रहा| यानि रिपोर्ट का आधार माने तो प्राप्त रिकॉर्ड के मुताबिक केवल 1752 स्कूलों में से 782 स्कूलों में खाना बना|
कभी चुनाव के नाम पर स्कूल गोल किया तो कभी जनगणना के नाम पर और इन सबसे निबटे तो मतदाता सूची पुनरीक्षण के नाम पर स्कूल से हो लिए गोल| आजकल मास्टर साहब मतदाता सूची दुरुस्त कराने में लगे है| भले ही इन कामो का मास्टर साहब को विभिन्न विभाग अतिरिक्त मानदेय देते हो मगर मास्टर साहब इसे शिक्षण समय में करना ही मुनासिब समझते है| फर्रुखाबाद को ही ले लो कुल जमा परिषदीय शिक्षको में  से 114 तो कभी स्कूल में इसलिए नहीं पढ़ाते क्यूंकि ये न्याय पंचायत या ब्लाक समन्वयक हैं| एक सैकड़ा परमानेंट गायब रहते है |
रही बात इनके मुखिया यानि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की तो उनका जबाब है राजस्व वाले ड्यूटी गलत लगा दिए है मास्टर को दूर दूर बीएलओ ड्यूटी पर जाना पढ़ता है क्या करें जान ले लें क्या| शायद ये भूल गए कि सरकार इन्हें इसी बात का वेतन देती है कि जहाँ कमी हो वहां सुधार करें!