सिक्ख धर्म में केश और पगड़ी का महत्व

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गुरुनानक देवजी द्वारा स्थापित सिक्ख धर्म में बाल कटवाना मना किया गया है साथ ही सिर पर पगड़ी बांधना अनिवार्य माना है। पगड़ी बांधने की परंपरा के संबंध में ऐसा माना जाता है कि सिक्खों की पगड़ी गुरुगोविंद सिंह का उपहार स्वरूप है। इस प्रथा के धार्मिक कारण के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी हैं।

सिक्ख धर्म में माना जाता है कि हमारे शरीर ईश्वर का अमूल्य उपहार है, इस उपहार की रक्षा और आदर हमें हर हालत में करना चाहिए। अत: हमारे बाल (केश) भी परमात्मा का उपहार ही है, इन्हें कटवाना भगवान द्वारा दिए गए उपहार का अनादर करने के समान है। इसी मान्यता के चलते सिक्ख अपने बाल नहीं कटवाते हैं और उन्हें सिर पर लपेटा जाता है। बालों को हमेशा व्यवस्थित रखने के लिए पगड़ी बांधी जाती है।

योग शास्त्र के अनुसार हमारे सिर के मध्य भाग में सहस्रार चक्र सिक्ख धर्म के अनुसार यहां दशम द्वार होता है। दशम द्वार या सहस्रार चक्र बहुत ही संवेदनशील होता है, इस चक्र से हमारा मन सीधा जुड़ा हुआ है। हमारा सिर खुला रहने पर वातावरण में मौजूद दूषित तत्व हमारे मन को तुरंत ही प्रभावित कर लेते हैं। इसी प्रभाव से बचने के लिए प्राचीनकाल से ऋषिमुनियों द्वारा भी अपने सिर को हमेशा ढंककर रखा जाता था।

हमारे शरीर का पूरा संचालन सिर से ही होता है अत: इसे किसी प्रकार से कोई क्षति ना हो, इसे बचाए रखने में सिर के लंबे और पगड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। साथ ही पगड़ी बांधने से जो दबाव सिर पर आता है उससे मन या दिमाग इधर-उधर नहीं भटकता, जल्दी मानसिक थकान नहीं होती, दिनभर शरीर में ऊर्जा और स्फूर्ति बनी रहती है। सिक्ख पगड़ी काफी सम्मान के साथ सिर पर धारण करते हैं।