चुनाव प्रचार के आखिरी दिन खूब हुआ मतदाता को उल्लू वनाइंग का खेल

Uncategorized

Salman Khursidफर्रुखाबाद: जिन गंभीर मुद्दो के लिए मतदाता को एक संसदीय प्रतिनिधि चुनना है उसकी चर्चा की जगह चुनाव प्रचार के अंतिम दिन मतदाता को फ़िल्मी सितारे दिखाए गए और हुल्लड़ व् हंगामे से भरपूर जलूस निकाले गए| क्या खूब लोकतंत्र के उत्सव की तैयारी है| लाखो रुपये लेकर रोड शो करने वाली फ़िल्मी तारिकाएं जनता को दिखाकर आखिर हमारे नेता जनता को क्या सन्देश देना चाहते है| क्या संसद में कोई नौटंकी करानी है या फिर कोई आइटम डांस| वैसे अब तक की विधानसभाओ में जिस प्रकार का हंगामा देखने को मिला है उससे आने वाली संसद की तस्वीर भी कुछ जुड़ा नहीं होने वाली| बदलाव बस इतना जरूर होगा कि इस बार संसद का कोतवाल कुछ कड़क जरूर होगा ऐसा अब तक के रुझान से लगता है|
Jaiveer
बसपा ने माहौल बनाने के लिए फ़िल्मी तारिकाएं बुलाई है| दो दिन तक पूरे जिले में सड़को पर हाथ हिलाकर उन्हें अपना मुखड़ा दिखाना था| और साथ बैठे नेता को हाथ जोड़कर ये साबित करना था कि वे भी इस चुनावी जंग में है| इसके लिए बाकायदा उन्हें भुगतान करना होता है| अब दो नंबर से आये या एक नंबर से ये इनकम टैक्स वाले जाने| मगर मुंबई से कोई भी पैसा खर्च करके इन्हे बुलवा सकता है| शत प्रतिशत व्यापारिक मामला है इनका प्रदर्शन| अब राजनीति से तो इनका लेना देना है नहीं कुछ| यहाँ की जनता की समस्या क्या है इससे भी इन्हे क्या लेना देना| ये तो अपना काम ईमानदारी से कर रही है| धूप में रहकर रोड शो करने के एक्स्ट्रा पैसे होते है वो इन्हे दिए जाते है| कम से कम इनके काम की ईमानदारी से ही कुछ सीख ले तो देश का भला हो जाए| मगर फिर भी सवाल ख़त्म नहीं होता कि संसद में पहुचने के लिए इनके प्रदर्शन की जरुरत है या फिर उन वादो और इरादो का ब्लू प्रिंट पेश करने की जरुरत है जिसके लिए इन्हे संसद जाना है| वैसे बहुतो को संसद में क्यों जाना है ये भी नहीं मालूम| हेरोइन साथ में बैठी भीड़ खीच रही थी और नेताजी खुद ऐसे नुमाइशी आइटम लग रहे थे जैसे किसी नौटंकी में कोई विदूषक|

Ravina Tondon
माहौल बनाने में सलमान खुर्शीद भी पीछे नहीं रहते| फ़िल्मी तारिकाओं को वे सबसे ज्यादा लाते रहे है मगर इस बार सबसे कम केवल एक अदद ही कांग्रेस के खेमे में तारिका दिखाई पड़ी| 23 साल पहले ये चलन सलमान खुर्शीद ने ही शुरू किया था| तब राजबब्बर राजनीति में नहीं थे उन्हें और अमजद खान (गब्बर सिंह) को लाया गया था| उसके बाद परम्परा चल पड़ी| रोड शो करते करते राजबब्बर फुल टाइमर राजनीति में आ गए| मगर ये शो बढ़ता गया| दरअसल जिस नेता को यह एहसास होता है कि अब जनता उसे देखने और सुनने के लिए नहीं निकल रही है उसे निकालने के लिए इन स्टारडम का इस्तेमाल किया जाता है| वैसे दोनों का कोई जोड़ नहीं| खया खूब उल्लू बनवाइंग का खेल है| इसे कहते है है- “ग्रेट इंडियन इलेक्शन तमाशा”|

गाव में तूफानी शुरू हो गया है- केवल ढक्कन ही तो हटाना था-
तमाशा फ़िल्मी हीरो हेरोइन तक ही सीमित नहीं है| गाव में दारू की बोतल खुल गयी है| एक प्रत्याशी ने इस काम के लिए अधिकतर वर्तमान प्रधान और कोटेदारों को इस काम का इंचार्ज बनाया गया है| अगले दो दिन तक जितनी चाहो उतनी पियो| वैसे ये खेल फर्रुखाबाद में कभी कभी उल्टा पड़ जाता है| एक अन्य प्रत्याशी ने इस काम के लिए हारे हुए प्रधान को चुना है| दारू खूब है गाव में| दारू का खेल कभी ख़त्म नहीं होगा| कुछ सैम्पल के लिए पकड़ी गयी थी| बाकी सब ठिकाने पर पहुंची| ये चुनाव है| यहाँ नेता के पास अपना कोई विजन नहीं है| कोई ब्लू प्रिंट नहीं है| आखिरी में अब बस दारू है और लफ्फाजी है|
[bannergarden id=”8″] [bannergarden id=”11″]