फर्रुखाबाद: और फर्रुखाबाद के चुनावी अखाड़े में सलमान खुर्शीद का चुनावी कार्यालय खुल गया| काफी कुछ पुराना मगर थोडा बहुत नया भी| वही नेहरु रोड, वही यामीन भाई की खाली पड़ी बड़ी सी दूकान और उद्घाटन में वही पुराने चेहरे| मगर इस बार उदघाटन करने वाले से लेकर चुनावी प्रचार में एक और चीज शामिल रहेगी| “विकलांग” शब्द एक अधूरेपन को परिभाषित करता है| मगर पूरे चुनाव में यही विकलांग शब्द सलमान खुर्शीद के चुनाव के इर्द गिर्द घूमता रहेगा| सलमान खुर्शीद का उदघाटन एक विकलांग से कराया गया| प्रमोद जैन, पुन्नी शुक्ल, अनिल मिश्रा, यामीन भाई, वसीम जमा खान, अनिल तिवारी, कौशलेन्द्र सिंह यादव सब सुने सुनाये नाम मौजूद| बूंदी बाटी, चाय पी गई और छोटा सा सम्बोधन बस हो गया उदघाटन|
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इसके बाद नया शुरू हुआ| वर्षो से हाथ में स्मार्ट फोन रखने और चलाने वाले सलमान खुर्शीद के प्रचार के लिए भी टीवी युक्त प्रचार वाहन आया| सीडी चलाई गई और सड़क जाम हो गई| पत्रकारो से बात हुई| कुछ अंतराष्ट्रीय सवालो के बाद मोदी पर टीका टिप्पणिया ली गई| और फिर अंत में पूछा गया कि सभी दलो के नेता जातीय आंकड़ा लगाकर चुनाव लड़ रहे है| प्रत्याशी जाति का हिसाब किताब लगा रहे है| आपका जातीय गणित क्या है चुनाव जीतने का? साफ़ और स्पष्ट जबाब मिला- मैं जात की राजनीति नहीं करता| धर्म की राजनीति नहीं करता| मुद्दो की राजनीति हमेशा की है और करूंगा| राजनीति में धर्म और जात को घसीटना भी नहीं चाहिए|
मगर सलमान साहब शायद भूल गए कि पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने पसमांदा मुसलमानो के लिए अलग से आरक्षण की बात छेड़ कौन सा विकास का मुद्दा उठाया था| मामला चुनाव आयोग तक पंहुचा| टीवी पर खूब सुर्खिया बनी| शब्दो के जादूगर सलमान की कला खूब चली| उत्तर प्रदेश में उनके हिसाब से दो फ़ीसदी वोट भी कांग्रेस का बढ़ा| मगर सीटे कम हो गई थी| फिर भी वे कहते है कि वे जाति और धर्म की राजनीती नहीं करते| उनकी बेगम लुइस खुर्शीद उसी चुनाव में धड़ाम हो गई थी| उनके पास सिर्फ मुसलमान रह गया था| वो भी दो मुस्लिम प्रत्याशियो के बीच बट गया था| सही बात ये है है कि पिछला लोकसभा चुनाव वो सभी वर्गों के वोट से जीते थे मगर दो साल पहले उनका चला हुआ मुसलमान नेता बनने का ट्रम्प कार्ड इस चुनाव में उनके खिलाफ हो सकता है|