फर्रुखाबाद: भाजपा प्रत्याशी मुकेश राजपूत के नामांकन में कल्याण सिंह का आगमन और उससे बनने वाले माहौल पर पक्ष विपक्ष और चुनावी चौपालो में अलग लग राय बन रही है| भाजपा के टिकट के अन्य कई दावेदार टिकट न मिलने से मुह फुलाये हुए है ये सन्देश चुनाव शुरू होने से पहले ही जनता में जा चुका है| चुनाव प्रचार के लिए विधानसभावार बनाये संयोजक और सह संयोजको को किसी ने एक साथ प्रचार करते हुए न सुना और न देखा| हाँ बंद कमरो की बैठको, मुकेश की उपस्थिति वाली छोटी मोटी सभाओ और उदघाटनों को छोड़ दे तो अभी तक मुकेश के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने के लिए क्षेत्र में अलग से मन से कोई नहीं निकला है| ऐसे में मुकेश राजपूत का चुनाव प्रथम चरण में एक जात के समर्थन के आसपास सिमटता जा रहा है| भोजपुर विधानसभा में न सौरभ राठौर और शैलेन्द्र राठौर एक साथ देखे गए| जबकि दोनों एक ही विधानसभा के संयोजक है| सदर विधानसभा में संयोजक मेजर सुनील दत्त द्विवेदी और सह संयोजक प्रभात अवस्थी कभी साथ होते नहीं| युवा होती राजनीति और मतदाताओ के बदलते रुझान में भी खालिस जातीय आधार पर चुनाव की नैया पार लगाने की सोचने वाले मुकेश राजपूत को बिखरी पड़ी जातियो को इकठ्ठा करना सबसे बड़ी चुनौती है|
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हालाँकि अभी वोट पड़ने में पूरे तीन सप्ताह है और माहौल तो एक रात में बदल जाता है| ऐसे में भाजपा का माहौल बनाने के लिए मुकेश को टिकट दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका अदा करने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह सबसे पहले फर्रुखाबाद पधार रहे है| क्या इससे दूसरी जातियो के मतदाता करीब आयेंगे या फिर ये खाई और चौड़ी हो जायेगी| इस पर अलग अलग मत है| कल्याण सिंह 31 मार्च को ही फर्रुखाबाद में आ जायेंगे और 1 अप्रैल को नामांकन के साथ सभा करेंगे| उनकी सभा के लिए 5000 से 10000 की भीड़ का जुगाड़ किया जा रहा है| मधुर मिलन लान में इतनी ही क्षमता है| अब आने वाली भीड़ किस वर्ग विशेष की ज्यादा होगी इसका आंकलन ही यह तय करेगा कि पूरे लोकसभा क्षेत्र में कौन कौन सा वर्ग मोदी और मुकेश के साथ है| कार्यकर्ताओ में चर्चा हुई कि पहले सभाए अन्य वर्गों के नेताओ की लगनी चाहिए थे| कल्याण सिंह बाद में आते तो अच्छा होता| अब जितने मुह उतनी बाते|
फर्रुखाबाद में जनता किसी को हराने के लिए वोट करती है, जिताने के लिए नहीं-
चुनावी चौपालो पर विपक्षी बात कर रहे है कि कल्याण सिंह की सभा के बाद सवर्ण और शाक्य अलग अलग खेमो के लिए अपनी राह तय करने लगेंगे| वहीँ कट्टर मोदी समर्थक वो चाहे किसी वर्ग के हो इसे ख़ारिज करते हुए कहते है कि चुनाव में सवर्ण मुकेश राजपूत को वोट दे न दे मोदी को वोट करेगा| इसका मतलब यह है कि भाजपा के प्रत्याशी की लोकप्रियता सभी वर्गों में नहीं है| मगर उन्हें मोदी की लहर का सहारा है| अब मोदी के नाम पर कितना वोट पड़ेगा ये 24 अप्रैल तक बनी फिजा और माहौल तय करेगा| लेकिन बात सशंकित करने वाली ये है कि महादीपक शाक्य से लेकर अब तक फर्रुखाबाद में चुने गए सांसद देश में बनी पार्टी विशेष की लहर के विपरीत ही जीते है| ये संयोग भी हो सकता है और फर्रुखाबाद के मतदाता की जागरूकता और अहम् भी| क्योंकि इस जनपद में चुनाव में वोट हमेशा किसी को हारने के उद्देश्य से पड़ते है किसी को जिताने के लिए नहीं| सभी वर्गों में लोकप्रिय होने के बाबजूद सलमान खुर्शीद पिछला चुनाव इसलिए जीत गए थे क्योंकि जनता को लगा था कि वे ही नरेश अग्रवाल को हरा सकते है| लहर साक्षी के खिलाफ चली और नारे लगे थे- लाल किले पर कमल निशान, अबकी जीतेंगे सलमान| मगर सलमान हार गए| तो पन्द्रवी लोकसभा में एक बार किसी को हराने के लिए वोट पड़ने वाले है| जीतने के लिए माहौल बनाने की जरुरत होगी| जिसका माहौल होगा उसके साथ जनता होगी| यही फर्रुखाबाद की मानसिक स्थिति है|