फर्रुखाबाद: खानदानी विरासत की राजनीति में तीसरी पीड़ी के पदार्पण में जिले में दो परिवारो का नाम अब तक लिखा जा चुका है| स्व अवधेश सिंह की तीसरी पीड़ी में सौरभ सिंह राठौर और स्व बाबू राजेंद्र सिंह के पौत्र सचिन यादव| ये दो नाम खानदानी राजनीति के लिए स्थापित हो गए है| हालत दोनों में लगभग एक जैसे ही है| मुन्नू बाबू ने अपने पुत्र को राजनीति में स्थापित करने के लिए एक पार्टी का त्याग कर दिया था तो नरेंद्र सिंह यादव ने पार्टी को त्यागने की जगह अपने पुत्र को अपने गांडीव सौप दिए और खुद पार्टी के खड़े हो गए| वस्तुतः न पार्टी छोड़ी और न पुत्र| बात आयी तो उदहारण दिया कि सिंधिया खानदान में माँ बेटे अलग अलग पार्टी से राजनीति कर सकते है तो वे क्यों नहीं| किन्तु भारतीय राजनीति में जागरूक होता मतदाता अब हर चीज के मायने समझने लगा है| हम एक तस्वीर के माध्यम से कुछ समझाने की कोशिश करते है-
इस तस्वीर में एक ही मौके पर ली गई चार अलग अलग तस्वीरो को एक साथ रखा गया है| न 1 और न 2 तस्वीर में पिता पुत्र दोनों अलग अलग बाबू राजेंद्र सिंह यादव की समाधी पर पुष्प अर्पित करने पहुचे| पुष्प अर्पित करते समय और भजन सभा में पिता के साथ मौजूद द्रगपाल बॉबी और सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष राजकुमार सिंह राठौर दोनों नरेंद्र सिंह यादव के रणनीतिकारों में से है| ये नरेंद्र सिंह यादव के वो गांडीव है जिन्हे वे राजनीति में अपने साथ रखते है| मगर इन तीन तस्वीरो में सचिन यादव कहीं नहीं है| यानि की कार्यक्रम में पिता पुत्र की मौजूदगी तो है मगर एक साथ नहीं है| चौथी तस्वीर तब की है जब पुष्पांजलि के बाद सचिन यादव को सभा करने मंच पर जाना था और अपनी पहली राजनैतिक यात्रा की घोषणा मंच से करनी थी| पिता से पुत्र ने आशीर्वाद लिया और मंच तक पहुचते पहुचते नरेंद्र सिंह यादव ने अपने गांडीव अपने पुत्र को सौप दिए और राजकुमार सिंह राठौर को बतौर संरक्षक भेज दिया| ये नीचे की तस्वीर बताती है-
तो कुल मिलाकर विरासत की राजनीति में सलमान, लुइस के बाद सौरभ राठौर और अब सचिन यादव के नाम लिखे गए है| सत्ता में समाजवाद नहीं चलेगा बाकी सब जगह विचारधारा समाजवादी होगी| मंच पर पहुच कर सचिन सिंह यादव ने खुद को असली समाजवादी बताया| भतीजे को आशीर्वाद देने पहुचे सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष राजकुमार सिंह राठौर ने नरेंद्र सिंह यादव और सचिन यादव को असली समाजवादी और रामेश्वर खेमे को नकली समाजवादी बताया| अब समाजवाद की परिभाषा बदलने की जरुरत है या फिर समझने की जरुरत है| जरा सोचिये…
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