सत्ता की चौखट पर नतमस्तक ब्यूरोक्रेसी

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सम्पादक की कलम से- लोकतंत्र में लोकप्रशासन, सरकार और न्यायालय एक दूसरे के पूरक है या पुजारी? ये यक्ष प्रश्न है| सविधान की परिभाषा इन तीनो को एक दूसरे से नीचे होने का आभास नहीं कराता जाहिर है, तो ये एक दूसरे की चौखट पर नतमस्तक जैसी स्थिति में भी नहीं है| मगर पिछले कई दशक से उत्तर प्रदेश में जो देखने को मिल रहा है उससे तो आभास यही होता है कि कम से कम लोकप्रशासन सरकार के आगे न केवल नतमस्तक है बल्कि सरकार के एजेंट जैसी भूमिका में नजर आता है|
राजनाथ सरकार से लेकर मुलायम और मायावती तीनो की सरकार में देश की ब्यूरोक्रेसी खासकर उत्तर प्रदेश में तब टिक पायी है जब वो सरकार की चौखट पर नतमस्तक होकर चाकिरी करती दिखी| कभी (उस समय के) आईजी रिजवान अहमद को वावर्दी मुख्यमंत्री के आगे चाय की ट्रे लेकर फोटो खीचने का मौका हाथ लगा तो कभी वावर्दी आईपीएस राहुल अस्थाना मुलायम के विधायक समधी के पैर छूते कैमरे में कैद हो गए| ये अलग बात है कि प्रदेश में आई एशोसियेशन के पदाधिकारी अपनी वेबसाइट में नतमस्तक होने की बात नकार कर चुनी हुई सरकार के अजेंडो को लागू करना अपनी नौकरी का भाग बताते हैं| मगर सत्ता की कुर्सिओं पर बैठे मंत्री और नेता कैसे कैसे गैरकानूनी आदेश मौखिक रूप से इन ब्यूरोक्रेट्स को देते है और उसे पूरा करने के लिए ये (मन से या बेमन से) ब्यूरोक्रेट खुद कानून की या धज्जियाँ उड़ाते है, इस बात को आम आदमी भले ही न जानता हो मगर कुछ ब्यूरोक्रेट इस बात को भी इन्टरनेट पर सार्वजनिक करने लगे है| आज नहीं तो कल देश के गाँव तक ये बात पहुचेगी जरूर|
एक प्रकरण को बानगी के तौर पर पेश कर बात पूरी करूंगा-
१- मायावती के जन्मदिन पर प्रदेश मुख्यालय लखनऊ में जनता का बड़ा प्रदर्शन हुआ, लाखों की भीड़ जुटी| वो भीड़ आई नहीं थी लायी गयी थी| १५ जनवरी के उस कार्यक्रम के लिए फर्रुखाबाद जनपद में एक हफ्ते पहले जिले के सभी बसपा विधायक और स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्र भीड़ जुटाने के लिए लगे थे जो कि पार्टी के नाते इनका फर्ज और जिम्मेदारी थी| उसी दौरान एक वाकया जो देखने को मिला तो था सरकारी मशीनरी पर दबाब बनाकर भीड़ को लखनऊ लाने के लिए बस आदि का इंतजाम|

(विडियो मौजूद है) जिले के जिला विद्यालय निरीक्षक कई स्कूलों को फ़ोन कर बता रहे थे कि उन पर सरकार का दबाब है उन्हें बसे देनी ही देनी है लिहाजा स्कूल वाले मदद करे और बस भेजे और भले ही इसके लिए वो कैसी भी फ़ाइल (कानूनी या गैरकानूनी काम) पर अग्रिम उनके हस्ताक्षर करा लें| साथ ही साथ उन्हें हड़का भी रहे थे कि अगर बसे नहीं भेजी तो फिर देख लेंगे| उसी दौरान सरकार के मंत्री से मैंने पूछा कि क्या रेली के लिए सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया जा रहा है उन्होंने साफ़ इंकार किया|
माया की करोडो की माला वाली रेली में भीड़ में जिले से हजारो की भीड़ गयी और जिले में वही जिला विद्यालय निरीक्षक की नौकरी सुरक्षित रही| नक़ल माफियों पर कोई शिकंजा नहीं कस पाया| नैनिहालो के भविष्य को कुचलते हुए जमकर नक़ल करायी गयी, जिले की शैक्षिक गुणवत्ता कागजो पर सुधर गयी| अलबत्ता वास्तविक शिक्षा सुधारने का कोई काम उक्त महोदय द्वारा नजर नहीं आया| अगले सत्र की बोर्ड परीक्षा की फिर तैयारी हो रही है फिर वही होगा जमकर नक़ल और कागजो पर शिक्षा सुधार| इस पूरे प्रकरण को आप क्या कहेंगे लोकसेवको द्वारा जिम्मेदारियो का निर्वहन या सत्ता की चौखट पर दंडवत प्रणाम| हाँ ये वही भीड़ थी जिनके नौनिहालों को शिक्षा देने की जगह नक़लछाप वाले परीक्षा पास के प्रमाण पत्र मिले| क्या ये साजिश इसलिए तो नहीं हो रही ताकि ये नयी पौध भी आने वाले समय में भी मूढ़ बनकर इसी तरह राजनेताओ के बुलावे पर भीड़ बढाने लखनऊ पहुचती रहे और पौआ पीकर जिंदाबाद के नारे लगाती रहे|
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