फर्रुखाबाद: बेसिक शिक्षा परिषद् में अध्यापको के स्कूल न जाने और उन्हें न पढ़ाने जैसे नैतिक भ्रष्टाचार के आरोप तो जग जाहिर है| निचली पायदान पर बैठा वेतनभोगी इसलिए स्वतंत्र रूप से भ्रष्ट हो जाता है क्योंकि उनके ऊपर निगरानी करने वाले अंकुश नहीं लगा पाते| ऊपर के अफसर और निगरानी कर्मचारी भी विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचार में लिप्त रहते है लिहाजा वे अंकुश लगाने की हैसियत में नहीं रहते| शिक्षको का मूल काम बच्चो को पढ़ाना है और ऊपर के अफसरो पर जिम्मेदारी इन अध्यापको से अपने दायित्वो को पूरा कराने की जिम्मेदारी है| मगर जिम्मेदारी ये दूसरी निभाते है| इसका नायब नमूना बेसिक शिक्षा में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा शिक्षको को प्रशिक्षण देकर गुणवत्ता सुधारने के लिए आने वाले बजट में लूटमार का होता है| साल भर में ब्लाक स्तर से लेकर जिलास्तर तक लगभग 1 दर्जन विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कराने के लिए बजट भेजा जाता है| इस बजट को किस प्रकार शिक्षा विभाग के अफसर लूटते है उसका नमूना आजकल मुख्यालय पर चल रहे नरेंद्र सरीन मांटेसरी स्कूल में चल रहे समेकित शिक्षा अंतर्गत एक प्रशिक्षण कार्यक्रम है|
प्रशिक्षण कार्यक्रम अध्यापन सत्र के लगभग अंतिम माह फरवरी में शुरू हुआ है| इस प्रशिक्षण का लाभ बच्चो को कब मिलेगा इसका भगवान् ही मालिक, अलबत्ता चल रहा है| शिक्षा विभाग ने इसका बजट और इसकी चिट्ठी कब भेजी है इसके बारे में प्रशिक्षण कराने वाले जिम्मेदार तीन अधिकारी कुछ नहीं बता पा रहे या बताना चाह रहे| इनमे से सर्व प्रथम है समेकित शिक्षा के समन्वयक राजेश वर्मा, नगर शिक्षा अधिकारी अनिल शर्मा और यू आर सी सुशील मिश्रा| पहले इन तीनो की भूमिका के बारे में जानिये फिर कमिया पढ़िए| राजेश वर्मा का काम इस प्रशिक्षण को सफलता पूर्वक पूर्ण कराना है| अनिल शर्मा बतौर नगर शिक्षा अधिकारी इस प्रशिक्षण की व्यवस्था करना जैसे प्रशिक्षण के लिए पुस्तक, साहित्य, चार्ट और अन्य सामग्री तैयार कराना और उपलब्ध कराना, प्रशिक्षण के दौरान चाय, नास्ता और भोजन उपलब्ध कराना और प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आने वाले अध्यापको को किराया आदि का भुगतान कराना है| ये सारी व्यवस्था प्रशिक्षण से पूर्व हो जानी चाहिए| यानि पढ़ाई से पहले बस्ते में किताबे और बच्चो का लांच बॉक्स नहीं होगा तो बच्चा स्कूल करने क्या जायेगा|
मगर जिला मुख्यालय पर जिला सत्र के प्रशासनिक और शिक्षक अधिकारियो की नाक के नीचे ये प्रशिक्षण 19 फरवरी से शुरू हो चुका है और 25 फरवरी को समापन हो जायेगा| मगर प्रशिक्षण के लिए साहित्य आज तक छपा नहीं है| चार्ट खरीदे नहीं गए है| और चाय नास्ता और लंच के नाम पर प्रशिक्षको में उबाल आ गया है| बजट की कोई कमी नहीं है| प्रशिक्षणों से पहले इन विभागो में पैसा पहले भेजा जाता है| पैसा सुशील मिश्रा के खाते में गया है| कुल 55 अध्यापको को प्रशिक्षण देने के लिए 55 हजार का बजट आया है|
प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले अध्यापक जितेन्द्र सिंह, आसिफ खान, गौरीशंकर, राममनोहर यादव और शकील अहमद के अनुसार छोटी छोटी 6 पूड़ी का एक लांच पैकेट खाने को दिया गया| इतने में पेट नहीं भरता| सुशील मिश्रा ने बताया कि बजट कैसे खर्च होगा इसका हिसाब नगर शिक्षा अधिकारी अनिल शर्मा करेंगे| कितना खाने पर कितना साहित्य पर और कितना नगद अध्यापको को दिया जाए ये अभी तय नहीं| अलबत्ता प्रशिक्षण शुरू है| राजेश वर्मा समन्वयक समेकित शिक्षा कहते है कि उनकी जिम्मेदारी केवल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए अध्यापको को उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी है| मगर प्रशिक्षण प्राप्त करने वालो को साहित्य (किट) उपलब्ध कराये बिना प्रशिक्षण कैसा चल रहा है इस पर वे खामोश है| वैसे ख़ामोशी बहुत अच्छी होती है| मनमोहन सिंह भी ख़ामोशी पर बहुत अच्छा बोल गए है| भ्रष्टाचार के शब्दकोष में ख़ामोशी नया शब्द है जिसको तबज्जो ज्यादा मिलने लगी है|
ये तो मामूली प्रशिक्षण था जिसका बजट केवल 55000 हजार आया है| सबसे बड़े बजट का प्रशिक्षण इस साल 20 लाख का भी आया था| इसके बीच के लगभग 1 दर्जन प्रशिक्षण और भी आये और चले गए| यानि सब खर्च हो गए| बच्चो की शिक्षा वहीँ की वहीँ रहती है सिर्फ प्रशिक्षण कराने वालो के पेट मोटे हो जाते है| भ्रष्टाचार की बेशर्मी वाली चादर ओड कुछ कारे खरीद लेते है कुछ मकान में नया मकान बना लेते है| जनता के टैक्स का पैसा कुछ यू खर्च हो जाता है और लगता है कि प्रदेश में समाजवाद आ गया है|