हैप्पी बसंत पंचमी: बाबा ने दिखायी चरखी और पोते पोतियो ने लड़ाए पेच

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फर्रुखाबाद: भारत में त्योहारो का एक मतलब होता है| बसंत पंचमी का त्यौहार मूलतः सरस्वती पूजन से शुरू होकर पतंगबाजी तक पहुचता है| पीले कपडे पहने जाते है| पीले पकवान बनते है| बच्चो को पहली बार स्कूल भेजने के लिए पुस्तक और कलम पूजन कराया जाता है| आर्य समाजी और गायत्री परिवार इस त्यौहार को रश्मो रिवाज से मानते है| गंगा तट पर स्थित फर्रुखाबाद में भी बसंत पंचमी के दिन ये सभी रंग देखने को मिले| हिन्दुयो के इस त्यौहार में पतंगसाज और सद्दल मांजा बनाने का काम सबसे ज्यादा मुस्लिम समाज के लोग करते है| उनकी बनी हुई पतंग हिन्दू उड़ाते है| इसे कहते है गंगा जमुनी तहजीब| आसमान में उड़ती पतंग हिन्दू की है या मुसलमान की इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता| शायद उस्ताद भी इसीलिए अपना चुनाव चिन्ह पतंग रखते रहे है और रंग भी पीला| ये संयोग भी हो सकता है|
Kite Flying Farrukhabad 1
पेच पर लगा 5 लाख का दाव-
रात्रि में आतिशबाजी और दिन में पतंगबाजी| युवाओ से लेकर बुढो तक में पतंगबाजी का जोश| बच्चे कई दिन से पतंगे जुगाड़ कर रहे थे| मगर इन सबके बीच लुटी हुई पतंग इक्क्ठी करने और उनसे पेच लड़ने का अलग ही लुफ्त होता है| फर्रुखाबाद में पतंगबाजी का शौक वैसे तो नवाबो के ज़माने का है| कई कई लाख के दाव लगाकर पेच लड़ाने की परम्परा भी कोई नई नहीं है| हवा साथ दे रही थी तो घटियाघाट पर पतंग के शौकीनों में लम्बे लम्बे दाव लगाकर एक दूसरे की खूब काटी| सबसे बड़ा 5 लाख का दाव सौरभ अग्रवाल ने सतीश की पतंग काट कर जीता|
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बाबा ने दिखायी चरखी और पोते पोतियो ने लड़ाए पेच
नगर में भी खूब पेच लड़े| गिलहरा, धारीदार, एकतारा, भौंएदार, तिरंगा, पट्टीदार, चांदतारा और जाने कौन कौन से नाम की पतंगे आकाश में लहरा रही थी| 75 साल के बाबा चरखी दिखा रहे थे और पोता पोती पेच लड़ा रहे थे| क्या औरते क्या बच्चे सब बसंत को यू मना रहे थे जैसे खुशहाली चल कर घरो में प्रवेश कर रही है| मगर दिन कमबख्त छोटा पड़ गया| साफ़ मौसम के बाबजूद सूरज कब डूब गया पता ही नहीं चला|