फर्रुखाबाद: विद्युत शवदाह गृह के निर्माण की मांग को लेकर कई बार अनशन और सत्याग्रह कर चुके लक्ष्मण सिंह को जनहित के इस मुद्दे को पूरा कराने के लिए आखिर एक बार फिर से आमरण अनशन पर बैठना पड़ ही गया| इस बार लक्ष्मण सिंह ने अनशन के लिए मुर्दाघाट को ही चुन डाला| रात के सन्नाटे में जब मोक्ष के लिए सैकड़ो आत्माए इस मरघटे में भटक रही होगी उस वक़्त एक जिद्दी इंसान जनहित के मुद्दे को पार लगाने के लिए इंसानों से गुहार लगा रहा होगा| सवाल फिर वही आज सबकी जुवान पर है कि कम से कम 20 बार जिला प्रशासन और सरकार से झूठे आश्वासन की घुट्टी पी चुके लक्ष्मण सिंह सफल होंगे कि नहीं? क्योंकि अधिवक्ता लक्ष्मण सिंह इस बार यह कह कर बैठे है कि इस बार एक की तो नैया पार लगेगी ही- “विद्युत शवदाह गृह बनने की या फिर उनकी”|
नैया पार इरादे की लगेगी या फिर एक इंसान की जो कि खोखले होते जा रहे लोकतंत्र सिस्टम में स्वार्थ के लिए जी रहे प्रशासनिक तंत्र से जनहित के लिए लड़ने जा रहा है| वो क्या चाहता है यह महत्वपूर्ण बिंदु है उसके अनशन का| जो लोग लावारिस मौत को प्राप्त होते है उनकी लाश को अक्सर पुलिस के इशारे पर रिक्शे वाला या टैम्पो वाला गंगा में फेकता देखा जा सकता है| कुछ ऐसे बदनसीब होते है जिनके अपने होते तो है मगर वे पूरी चिता जलकर राख होने का इन्तजार तक नहीं करते और अधजली लाश छोड़ कर साइड में शराब का सेवन करने चले जाते है| उनके अधजले मुर्दो को अक्सर ही बुझाकर उसकी चिता की लकड़िया निकाल ली जाती है और मांस कुत्ते नोचते दिख जाते है| पर्यावरण को बचाने का बड़ा बड़ा खाका खीचने वाले भी इस ओर मुखातिब नहीं कि एक लाश जलाने में कितने हरे वृक्ष कट जाते है| और जब कभी बरसात होती है गीली लकडियो को जलना मुश्किल हो जाता है| इन सब से हटकर एक इंसान अगर विद्युत शवदाह गृह का निर्माण चाहता है तो क्या बुरा कर रहा है|
सलमान खुर्शीद का यह कहना कि वे फंड इसलिए नहीं दे सकते क्योंकि उसमे एक अपराधी का पैसा लगने जा रहा है तो वे ये भूल जाते है की विधायक निधि किसी के बाप की नहीं होती, ये जनता का पैसा होता है| जनता कहती है कि सांसद सलमान खुर्शीद को आज वो इंसान अपराधी नजर आ रहा है| उस वक़्त क्या था जब वोट के लिए बगलगीर हो गए थे? जनता में सलमान के उस व्यक्तव्य की कटु आलोचना हुई थी| पैसा नहीं देना था तो न देते| मगर बहाने तो ठीक से बना देते| किस किस का मुह पकड़ोगे| कुछ तो ये भी बोल बैठे की गर अल्पसंख्यक समुदाय के लिए मांग की होती तो इनकार न होता| अब जितने मुह उतनी बाते| मगर हठी लक्ष्मण सिंह तो मरघटे पर आमरण अनशन पर बैठ गए है|
लक्ष्मण सिंह के हाथ एक बड़ा मुद्दा है| जनहित में कोई यह नहीं कहता की विद्युत शवदाह गृह नहीं बनना चाहिए| अब देखना यह है की कोल्लेक्ट्रेट में अनशन पर बैठ फोटो खिचाने वाले कितने साथी जीवन के अंतिम प्लेटफार्म वाले अनशन स्थल पर बैठने कितने साथ आते है| फिलहाल उनके आमरण अनशन में हौसला अफजाई करने वालो में गोपाल बाबू पुरवार, गौरव गुप्ता, विष्णु नारायण अरोरा, मुन्ना लाल राजपूत और विजयवीर सिंह भी शामिल है| आयोजन स्थल की व्यवस्था रामकिशोर सारस्वत कर रहे है|