नई दिल्ली। समलैंगिकता पर हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को गैरकानूनी करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक संबंध जायज नहीं माने जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान नें धारा 377 पर संसद फैसला करे।
सुप्रीम कोर्ट ने दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक रिश्तों को गैरकानूनी करार दिया है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर चार साल से बहस चल रही थी। 4 साल पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। इस फैसले को धार्मिक संगठनों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
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क्या था पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक रिश्तों का मामला पिछले 4 साल से चल रहा था। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 जुलाई, 2009 को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से मुक्त कर दिया था। इसके मुताबिक एकांत में दो व्यस्कों के बीच सहमति से स्थापित यौन संबंध अपराध नहीं होगा। गौरतलब है कि धारा 377 यानी अप्राकृतिक अपराध के तहत समलैंगिक यौन संबंध दंडनीय हैं। जिसके लिए उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है।
2009 में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना हुई थी वहीं कई हिंदू और मुस्लिम संगठनों ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इन संगठनों की दलील है कि ये गैरकानूनी, अनैतिक और भारतीय संस्कृति के के खिलाफ है। कुछ संगठनों का यहां तक कहना है कि इससे भारतीय संस्कृति ही खतरे में पड़ जाएगी। इस मुद्दे पर सरकार का रुख भी पहले साफ नहीं था। 2012 में सुप्रीम कोर्ट के फटकार के बाद केंद्र सरकार को अब समलैंगिकता से कोई ऐतराज नहीं है। मार्च 2012 में अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार समलैंगिकों के मूल-भूत अधिकारों का सम्मान करती है।
इससे पहले गृह मंत्रालय समलैंगिकता के विरोध में था, जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय इसके हक में। लॉ कमीशन ने भी कई बार सरकार से समलैंगिकता पर कानून बनाने की सिफारिश की थी।