FARRUKHABAD : जनपद फर्रुखाबाद स्थापत्य कला, वस्तु कला, चित्र कला, शिल्प कला की दृष्टि से बेजोड़ रहा है। किसी समय के सम्पन्न लेकिन आज के विपन्न और उद्योग रहित फर्रुखाबाद से कन्नौज को बिच्छेदित करने से ही इसकी रीड़ तोड़ दी गयी। ज्यादातर पुराने उद्योग बंदी की कगार पर पहुंच गये। इसी में वह उद्योग भी आता है जो कभी पांच हजार परिवारों को रोजी रोटी व रोजगार दे रहा था। लेकिन वर्तमान में यह पीतल, तांबा बर्तन निर्माण का उद्योग भी समाप्ति की ओर निरंतर अग्रसर हो रहा है।
फर्रुखाबाद में ताबां व पीतल की धातु की चादर से कारीगर सुन्दर बर्तनों का निर्माण करते आ रहे हैं। लेकिन जनपद में स्टील व एल्युमिनियम से निर्मित बर्तनों का चलन हो जाने के कारण हस्तकला निरंतर ह्रास की ओर अग्रसर है। एक समय इस कुटीर उद्योग में लगभग पांच हजार परिवार कार्यरत थे। इस हस्तकला से निर्मित बर्तनों की मांग ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी की जाती है। आज भी पड़ोसी जिलों के ग्रामीण अंचलों के लोग तांबा व पीतल के बर्तनों को खरीदने फर्रुखाबाद आते हैं। ग्रामीण लोगों का विश्वास है कि कठिन समय में इन बर्तनों को आभूषण की भांति ही बेचकर धन प्राप्त किया जा सकता है। यही कारण है कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह के अवसर पर यह बर्तन खरीदे जाते हैं।
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प्रदेश सरकार की कर नीति ने भी इस उद्योग को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। जिससे यह हस्तकला पंगु होती जा रही है। एक समय में बटुआ वाली गली में पीतल व तांबे के बड़े बड़े बटुए ग्रामीणों की खास पसंद हुआ करती थी। बाजार में स्टील की मांग बढ़ी और पीतल के बर्तनों की लगातार खरीददारी में कमी से वर्तमान में दुकानों पर भी पीतल के बर्तन मात्र सगुन के लिए ही खरीदे जाते हैं। जिससे हजारों घर बेरोजगार हुए हैं। जो रोजगार की तलाश में दिल्ली व कानपुर जैसे महानगरों में अपना डेरा जमा चुके हैं।
इस प्राचीन हस्तशिल्प उद्योग के लिए अगर शीघ्र कोई कदम नहीं उठाया गया तो धीरे धीरे यह उद्योग फर्रुखाबाद की अर्थव्यवस्था से लुप्त हो जायेगा।