फर्रुखाबाद: जो तस्वीर जनपद के नगर में बेसिक शिक्षा पर हम पेश करने जा रहे है उसे पढ़ने से पहले ये जान लेना जरुरी है कि हकीकत और बयान में बहुत फर्क हो गया है| नगर के कई स्कूलों में गहन अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट पेश की जा रही है उस पर किसी सरकारी नौकर/अफसर या नेता से कोई बदलाव की उम्मीद भी मत करिए| क्योंकि अब सब मिलजुलकर होने लगा है| एक तरह से इसे गिरोह बंदी भी कह सकते है| क्योंकि बड़ी खबर ये मिली है कि शिक्षा विभाग के कई बड़े अफसर अब एक ही मकान में रहने लगे है| जो एक दूसरे की जाँच करते है|
नगर में कई स्कूल सिर्फ लूट के लिए खुले है| जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी महोदय मुख्यालय पर स्थित नगर के स्कूलों की स्थिति नहीं जानते, नगर शिक्षा अधिकारी के पास इस बात का कोई जबाब नहीं कि जब बच्चे नहीं आते तो स्कूल खत्म करने का प्रस्ताव क्यों नहीं भेजा| और यू ई आर सी के पास इस बात का कोई जबाब नहीं कि विकास का पैसा स्कूलों में जाने के बाद भी स्कूल में बोर्ड नहीं, टाट नहीं और मिड डे डे मील का मीनू क्यों नहीं लिखा गया? स्कूल में पहुचो तो स्कूल में मौजूद शिक्षक या शिक्षा मित्र “उनके स्कूल में कितने शिक्षक तैनात” नहीं बता पाते| और बच्चो की मौजूदगी के सापेक्ष मिड डे मील दो से तीन गुने बच्चे रोज खाना क्यों खाते इस बात पर शर्म से आँखे झुकाने के सिवाय कोई जबाब दे पाते|
जनता की गाढ़ी कमाई पर लगने वाले टैक्स और उस पर भी अतिरिक्त शिक्षा टैक्स को लूटने के लिए इस विभाग में बाकायदा एक बढ़िया मकडजाल है| और इस मकडजाल में फसे हुए कीड़ो पर झपट कर अपना हिस्सा नोचने के लिए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के ऊपर कई बड़े मकड़े तैनात है| जिसमे शिक्षा विभाग के बड़े अफसर मंत्री से लेकर प्रशासनिक अमला घात लगाये बैठा रहता है| इसका मतलब ये नहीं कि सब कुछ गड़बड़ है कुछ अभी बचे है|
तस्वीर एक-
प्राथमिक स्कूल हाथीखाना और कन्या प्राइमरी स्कूल तलैयालेन फतेहगढ़ के हाथीखाना मोहल्ले में किराये के एक 10×7 कमरे में संचालित होते है| एक छोटी सी कोठरी किराये की| दोनों स्कूलों में क्रमश 52 और 33 बच्चे नामांकित दिखाए गए है| दोनों स्कूलो में कुलमिलाकर औसतन 20 से 25 बच्चे आ जाए तो बड़ी बात समझो| मगर हाथीखाना के मास्टर साहब जो नेतािगिरी भी करते है मिड डे मील के रिकॉर्ड में 45 बच्चो से कम नहीं भरते| जनाब मर्जी आये तो स्कूल भी न आये तो कोई पूछने वाला नहीं| तस्वीर में देखिये भवन- न कोई स्कूल का बोर्ड है और न ही मिड डे मील का मीनू बोर्ड| बाकी सजावट का तो कहिये क्या? मगर इस एक कमरे के दो स्कूल में दोनों स्कूल का सालाना विकास अनुदान, रंगाई पुताई का खर्च और जो अन्य खर्चे जो अन्य स्कूलो को भी मिलते है इन दोनों को भी मिलते है| बच्चो की निशुल्क बाटने वाली किताबे, ड्रेस सब कुछ नामांकन के हिसाब से आएगी| मगर ये लगते कहाँ है? इसका जबाब न मास्टर साहब के पास है, न यू ई आर सी के पास, न नगर शिक्षा अधिकारी के पास और न ही जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के पास|
जब बच्चे नहीं तो दोनों मिलाकर एक स्कूल क्यों नहीं कर दिया जाता?
ये एक बड़ा सवाल है जिस पर जबाब मिला कि सरकार हर साल रिपोर्ट मांगती है कि कितने भवन ज़र्रर? तो हम हर साल भेज देते है| मगर इन दोनों में से एक स्कूल दूसरे में समायोजित किया जा सकता है इस पर कभी रिपोर्ट नहीं भेजते| ये काम है यू ई आर सी और नगर शिक्षा अधिकारी का| दोनों एक दूसरे के पूरक है| अगर एक स्कूल कम हो गया तो शिक्षको की माग घट जायेगी| विकास अनुदान से लेकर हर फर्जीवाड़े में कमीशन कम हो जायेगा| और इसका असर ऊपर वाले साहब तक पड़ेगा| इसलिए जैसी व्यवस्था बनी है, बनी रहने दो| बता दे कि वर्त्तमान में नगर शिक्षा अधिकारी का चार्ज बेसिक शिक्षा के अफसर के पास नहीं है| केंद्र सरकार पोषित सर्व शिक्षा अभियान से उधार का ले रखा है| सर्व शिक्षा अभियान में समन्वयक अनिल शर्मा के पास चार्ज है| और इनके नीचे नगर में शिक्षा गुणवत्ता की निगरानी करने वाले यू ई आर सी का आज तक नियमित चयन नहीं हुआ है| जो सहूलियत से वसूली कर के साहब को हिसाब दे सके ऐसी सुविधा के साथ ये कमान एक अध्यापक सुशील चन्द्र मिश्रा के पास है| बेसिक शिक्षा भगवान की कृपा से दोनों दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की भी कर रहे है| मगर जनता का धन यहाँ परोक्ष रूप से लुट रहा है|
तस्वीर संख्या दो-
गौर से देखिये नीचे की तस्वीर| एक किलेनुमा गुम्बद और किसी जमींदार का दरबार सा नहीं लग रहा है ये भवन| इस भवन में एक दो नहीं तीन तीन स्कूल चल रहे है| एक स्कूल दाए बरामदे में, दूसरा दाए बरामदे में और तीसरा सामने छेद वाले छत के हाल में| ये भवन भी अपने आपने में डौंडिया खेड़ा का खजाना है| जिले के आधे से ज्यादा अफसर हर रोज इस स्कूल के आगे से निकल जाते होंगे| मगर किसी को एहसास तक नहीं होगा कि एक भवनिया तीन स्कूल भी उनके रास्ते में पड़ता है| ये दरअसल में व्यवस्था का ही कमाल है| तीनो स्कूलो में से एक का भी बोर्ड नहीं, एक भी मिड डे मील का मीनू बोर्ड नहीं| पुताई तो जानो कब हुई थी इसकी कार्बन डेटिंग करनी पड़ेगी और अध्यापक और शिक्षा मित्र कौन कौन तैनात है इसका पूरा पता करने में अभी तक हम खुद नाकामयाब है क्योंकि एक ऐसी शिक्षका का नाम भी बताया गया जो गुलरी के फूल के माफिक उपस्थित होती है यहाँ|
फर्रुखाबाद नगर में बाजार के चौक से पश्चिम की ओर लगभग आधा किलोमीटर चलने पर किराना बाजार के दाहिने साइड पर एक चेनल के भीतर झांकिए आपको कुछ नजर आएगा| अन्दर एक धर्मशाला है जिसमे किराये के कई स्कूल चलते है| किस्मत अच्छी है तो कुछ बच्चे मिल जायेंगे और थोडा लेट गए तो फिर गुरु गोविन्द दोयु के दर्शन दुर्लभ होंगे| वुधवार 28 नवम्बर दोपहर 12 से 1 बजे – इस भवन में दाए ओर प्राइमरी पाठशाला रकाबगंज चल रही है, औसतन उपस्थिति लगभग 20 से 25 बच्चे| बरामदे में बाए तरफ कन्या प्राइमरी बजरिया और सामने हाल में प्राइमरी बजरिया, कन्या बजरिया और प्राइमरी रकाबगंज का मिक्स| कुल मिलाकर तीनो स्कूल में बच्चे उपस्थित मिले 71. | ये आंकड़े मैडम या सर के रजिस्टर के नहीं है| क्योंकि उनके आंकड़े हमारे (हकीकत) के आंकड़े से मेल नहीं खायेंगे ये पूर्वानुमानित है| खैर तीनो स्कूलो में कुल नामांकन प्राइमरी बजरिया में 59 बच्चे, कन्या प्राइमरी बजरिया में 108 बच्चे और प्राइमरी रकाबगंज में 75 बच्चे नामांकित है| तीनो स्कूलो में कुल बच्चे नामांकित किये गए है 242 | इसके सापेक्ष लगभग चौथाई बच्चे ( 70-90 ) स्कूल में औसतन आते है और कुल नामांकन के आधे के आसपास ( 110-130 ) मिड डे मील का खाना खाते है| यहाँ यैनात शिक्षको और इन पर निगरानी करने वालो की ईमानदारी का अंदाजा आप खुद लगाइये| नामांकन (फर्जी या असली ये जाँच का विषय है) बना रहेगा तो शिक्षको की जगह भी बनी रहेगी|
तीनो स्कूलो में न कोई बोर्ड, न मिड मील मीनू बोर्ड और न अध्यापको की सूची| तीनो स्कूलो का विकास अनुदान के साथ नामांकन के सापेक्ष निशुल्क पुस्तक और ड्रेस सब कुछ मिलेगा| फर्जी नामांकन में अपना हिस्सा भी ऊपर वाला नहीं छोड़ेगा| अगर तीनो स्कूल जो अलग अलग नाम से संचालित है एक कर दिए जाए तो न शिक्षको की कमी है और न ही संशाधनो की| तो इस तरह से फर्जी नामांकन और गैर जरूरी स्कूल के खुले होने से प्रदेश में कृत्रिम शिक्षको की कमी भी दर्शायी जा रही है|
तस्वीर संख्या तीन-
इस स्कूल की आसमानी तस्वीर से लगता है कि नगर का बड़ा स्कूल है| यहाँ निर्मित भवन सभी सरकारी है| जब जरुरत नहीं थी तब भी कमीशन के लालच में खूब जिला स्तरीय विभागीय लोगो ने यहाँ अतिरिक्त कक्षा कक्ष बनबाये| कुछ बने और कुछ बिना बने ही बन गए| वैसे सूत्र बताते ही कि यहाँ से एक कमरा ही चोरी चला गया| बेचारा कागजो में तो है मगर दीखता नहीं| खैर इस ईमारत में एक दो नहीं चार चार स्कूल अलग अलग नाम से चलते है| कमालगंज में फर्जी मदरसा प्रकरण में एक रिटायर मास्टर हट कर गया तो जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को अपनी नाक बचाने के लिए एक ही भवन में ली गयी तीन स्कूल की मान्यता में से दो को निरस्त करना पड़ा| मगर यहाँ तो सब कुछ अपनों का ही प्लान किया हुआ है उसे अनप्लान कैसे कर दे|
तो प्राइमरी और उच्च प्राथमिक विद्यालय नाला सिमत सिमाल में चार विद्यालय है| दो सिमत सिमाल के नाम से और दो बड़ा खेल के नाम से| यहाँ का खेल थोडा बड़ा है| वैसे चार के दो विद्यालय किये जा सकते है| क्योंकि विद्यालय के दो बोर्ड तो मिले| मगर बड़ा खेल में पूरा खेल ही है| चारो विद्यालयों में कुल बच्चे ऐसे दिखाए गए है- प्राइमरी बड़ा खेल – 61, कन्या प्राइमरी बड़ा खेल- 102, प्राइमरी नाला सिमत सिमाल- 72 और उच्च प्राथमिक नाला सिमत इमाल- 56 बच्चे| यानि चारो स्कूल में उच्च प्राथमिक में कुल 56 बच्चे और तीनो प्राइमरी में कुल 143 बच्चे पंजीकृत है| उपस्थिति तो तस्वीरे देख कर अंदाजा लगा लीजिये| हाँ यहाँ मिड डे मील का रिकॉर्ड बहुत गजब बनाया जा रहा है| यहाँ 70 से 80 फ़ीसदी बच्चे नामांकन के सापेक्ष रोज खाना खाते है ऐसा मास्टरों के रिकॉर्ड में दर्ज होता है|
चारो स्कूल में कुल मिलाकर 9 शिक्षक, सहायक शिक्षक और शिक्षा मित्र यहाँ के कैंपस में तैनात है| जबकि यदि सभी स्कूल इक्कठे हो जाये तो प्राइमरी में चार शिक्षको से काम चल जाता है| किन्तु अभी तो यहाँ शिक्षको की कमी है| चारो स्कूल में आने वाला अनुदान, विकास शुल्क, निशुल्क पुस्तके, निशुल्क ड्रेस सब प्लान में रहता है| स्कूल चेक करने वाले को मालूम है यहाँ क्या क्या घपला होता है| कितने बच्चे फर्जी नामांकित है| वो आता है अपना हिस्सा लेता है, रजिस्टर पर सीन करता है और अगले नए प्लाट के लिए चल रही आर डी में पैसा जमा कर देता है| मगर यहाँ कभी किसी अधिकारी ने स्कूलों को समायोजित कर एक करने की कोई कोशिश नहीं की| शिक्षक नेता परिषद् में शिक्षको की कमी का रोना तो रोते है मगर कभी फर्जी नामांकन बंद करने को नहीं कहते|
तस्वीर चार-
एक एक कर तस्वीरे बहुत हो चली है| नगर में 22 स्कूल बंद हो सकते है| इसका खर्च बचाया जा सकता है| सरकार के खाते में बचत हो सकती है| मगर कोई बंद नहीं करेगा| क्योंकि खुले रहने में ही भलाई है| बच्चे पढ़े न पढ़े इन्हें कोई मतलब नहीं| अब तो फर्रुखाबाद में मिलबाटकर खाने की निति का पालन सभी करने लगे है| कन्या प्रमोत्तर चीनीग्रान में भी तीन स्कूल चलते है| इसी के प्रांगन में प्राथमिक विद्यालय दिल्ली खयाली कूचा और प्राथमिक विद्यालय खैराती खा भी चलता है| अब तीन स्कूल है तो तीन हेड चाहिए| वर्ना तो एक से काम चल सकता है| तो ऐसे ऐसे करके शिक्षको की शार्टेज दिखाई जा रही है| ये वही चीनीग्रान है जहाँ एक शिक्षिका की रिश्तेदार फर्जी अनुदेशक नौकरी ज्वाइन करने में कामयाब हो गया|
तो अब सब कुछ एक साथ सहमती से होने लगा है| पहले भी होता था| सहमती से कुछ भी करने में कहीं बाहर बात भी नहीं जाती| ज़माने ने तरक्की बहुत कर ली है| कल एक रिपोर्ट कह रही थी कि विकास की दर भले ही कम हो रही हो मगर भ्रष्टाचार प्रति वर्ष 112 फ़ीसदी की रफ़्तार से आगे बढ़ रहा है|
बदला जमाना तो कैसे कैसे चलन चलने लगे है,
तीन चार स्कूल एक ही कमरे में चलने लगे है,
शिक्षा विभाग पर यू ही शक मत कर ‘पंकज’,
बड़े तीन अफसर अब एक ही छत के नीचे रहने लगे है|