72000 शिक्षको की भर्ती मामले में हाई कोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश सरकार सांसत में है| अदालत के आदेशो की प्रति प्राप्त होने का हवाला देकर सरकार कुछ बोलने से बच रही है| हालाँकि ये बहुत देर तक नहीं चलने वाला है| ई-युग में जब कोई कहता है कि उसे अभी चिट्ठी नहीं मिली है तो मसखरी मालूम होती है| मगर अखिलेश सरकार के फैसले को ख़ारिज कर मायावती सरकार के फैसले को लागू करने के आदेश को यू पी सरकार आसानी से हजम करने वाली नहीं| किसी भी नए निर्णय लेने से पहले बेरोजगारो से ज्यादा चिंता वोट बैंक की होगी| सरकार के हर फैसले की मीटिंग में चापलूस अफसर वोट बैंक की बात करके ही नेताओ के करीब होने का मौका पाते है| इस बार भी यही होगा कि सरकार टेट मेरिट पर भर्ती करे या फिर सुप्रीम कोर्ट जाए इसे पहले वोट बैंक के तराजू पर तौला जायेगा|
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वैसे सुप्रीम कोर्ट भी अकेले सरकार को ही जाना है| क्योंकि मुकदमा सरकार और टेट मेरिट चाहने वालो के बीच में जो चला उसी का अंतिम फैसला आया| बीच बीच में आये छिटपुट मामले तो बड़े मामले में ही विलीन हो गए और उनके खिलाफ कोई सुप्रीम कोर्ट गया नहीं| अब चूँकि टेट मेरिट चाहने वाले ही वादी थे और उन्ही के पक्ष में फैसला आया तो विपक्षी सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का मौका है| अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट जाती है और फिर मुह की कहानी पड़ी तो फिर आगे कुछ बचेगा नहीं और नौकरी देकर भी लाखो आवेदको की नाराजगी नहीं जाने वाली| क्योंकि तब यह बात नौकरी पाने वालो के जेहन में बैठ चुकी होगी कि सरकार तो नौकरी नहीं देना चाहती थी ये तो मजबूरी में अदालत के कारण देनी पड़ी|
दूसरा सुप्रीम कोर्ट में जाने से पहले सरकारी मशीनरी इस मामले को वोट बैंक की मीटिंग में रखकर लाभ हानि देखेगी| बहुत बदनामी हो चुकी है और हो रही है| लिहाजा क्या सही निर्णय होगा इसे समझना और समझाना दोनों आसान नहीं है| 2014 के चुनाव से पहले नियुक्ति नहीं दे पाये तो एक अभ्यर्थी 100 के बराबर पड़ेगा| किसी जाति का हो मोदी का झंडा थमेगा और 4 करोड़ वोटर को प्रभावित कर देगा| तो हाई कोर्ट के फैसले को दरकिनार कर नौकरी लटकाना अखिलेश यादव की सरकार के लिए वोटो के लिहाज से घाटे का सौदा होने वाला है|