FARRUKHABAD : धार्मिक ग्रन्थों का अगर अध्ययन करें तो उसमें बहुत से ऐसे प्रसंग मिल जाते हैं जो अधिकतर लोगों के जानकारी में नहीं हैं। इसमें ही तुलसी और सालिगराम का विवाह भी एक है। तुलसी और सालिगराम के विवाह को लेकर बहुत ही रोचक कहानी पुराणों में आती है।
भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेष नाग की शैय्या पर लेटे थे। उसी दौरान सरस्वती व लक्ष्मी भगवान से विवाह करने की इच्छा लेकर एक साथ वहां पहुंच गयीं। एक ही इच्छा दोनो देवियों की थी। भगवान से विवाह करना। भगवान उस समय शेष शैय्या पर योग निद्रा में लेटे हुए थे। दोनो देवियों ने आपस में जब एक दूसरे से भगवान के दरबार में पहुंचने का कारण पूछा तो दोनो का मकसद एक ही निकला। इस पर दोनो देवियों में विवाद की स्थिति बनी तो विवाद ज्यादा बढ़ा तो दोनो ने एक दूसरे को श्राप दे दिया।
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सरस्वती ने लक्ष्मी जी को श्राप दिया और कहा कि वह पृथ्वी पर जाकर तुलसी के रूप में स्थिर हो जाये तो वहीं लक्ष्मी ने सरस्वती को गंगा बनकर पृथ्वी पर प्रवाहित होकर लोक कल्याण की बात कही. भगवान योग निद्रा से उठे तो दोनो देवियों की शंका का समाधान किया। सरस्वती को वरदान किया कि पृथ्वी पर धार्मिक अनुष्ठानों के समय तुम्हारा पूजन किया जायेगा। तो वहीं लक्ष्मी जी को अपने सालिगराम अवतार लेकर विवाह रचाने का आश्वासन दिया। जिसके बाद भगवान विष्णु ने सालिगराम अवतार लिया और तुलसी ने घोर तप करके भगवान सालिगराम से विवाह रचाया। तब से सालिगराम और तुलसी के विवाह को एक समारोह के रूप में हिन्दू धर्म में मनाया जाता है।