रोली और चावल से तिलक कर गोपाष्टमी पर की गयी गउमाता की पूजा

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KAIMGANJ (FARRUKHABAD) : गोपाष्टमी पर सर्वत्र की गयी गाय और गौवंश की पूजा। पूजा के लिए सुबह से ही गौभक्त गायों को तलाश कर उनकी पूजा के लिए पहुंचे, जहां उन्होंने विधि विधान के साथ गऊमाता की पूजा की। साथ में भक्तों द्वारा गौवंश को भी श्रद्धा के साथ पूजा गया। भक्तों द्वारा गउमाता को रोली और चावल से तिलक करके गले मंे पुष्प माला डालकर और आटे की लोई, चना और मिष्ठान आदि खिलाकर गाय का पूजन अर्चन किया गया।

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द्वापर युग से चली आ रही गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा की परम्परा चली आ रही है। इस सम्बन्ध में धार्मिक मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने गाय की पूजा की थी। आज उसकी परम्परा का अनुसरण करते हुये लोगों ने सभी तरफ ढूंढ ढूंढकर गायों की पूजा की। जिन घरों मंे गाय पली हुई थी आज वहां गउ पूजन करने वालांे की भारी भीड मौजूद देखी गयी। एक के बाद दूसरा गाय भोग लगाकर तथा पुष्प माला गाय के गले में डालकर उसका विधि विधान के साथ पूजन अर्चन करता रहा।cow

गोपाष्टमी के अवसर पर गउ पालकों द्वारा सुबह से ही अपनी अपनी गायों और बछडो को नहला धुलाकर और पुष्प मालाओं आदि से सजाकर तथा गायों और बछडो का तिलक करके उनका भोग लगाकर पूजन अर्चन किया। नगर के सधवाडा, पाठक, पृथ्वीदरवाजा, गंगदरवाजा, बजरिया, बगिया, चिलांका, चिलौली आदि मुहल्लों में जहां घरों में लोगों ने गाय पाल रखी हैं, गायों का पूजन हुआ, सबसे अधिक भीड गाय की पूजा करने वालों की घसिया चिलौली स्थित गमा देवी मन्दिर में बनी गउशाला में गउ पूजन करने वालों की देखने को मिली। जहां गउशाला में पली गायों का लोगांे ने विधि विधान के साथ पुजन अर्चन किया और साथ में गउ सेवा हेतु गउशाला को दान भी दिया।

गोपाष्टमी के इस अवसर पर गउ पूजन हेतु लोगों को गायों को तलाश करना पडा। क्योंकि आधुनिकता और नई तकनीक के वर्तमान युग में न तो गायें अब हमारे जीवन का अभिन्न अंग रह पाई हैं। जबकि भगवान कृष्ण और भगवान बलराम ने द्वापर युग में गउ पूजन और पालन करके समाज को संदेश दिया था कि भारत भूमि की सम्पन्नता का प्रतीक गाय और गंगा के रूप में जब तक समाज द्वारा मान्यता दिया जाता रहेगा, तब तक देश सम्पन्न और खुशहाल रहेगा। लेकिन आज वस्तु स्थिति ये है कि हम अपनी पहचान खो बैठे हैं। जब तक हम गंगा, गाय और गायत्री को स्वीकार करते और जीवन में धारण करते रहे तब तक हम जीवन के हर क्षेत्र में सफल रहें। लेकिन आज हमने जीवन दायिनी गंगा को प्रदूषित करके गंगा का महत्व ही समाप्त कर दिया।

आधुनिकता के दौड में दौडते हुये गायों को इतना पीछे छोडकर भूल गये कि अब उनका हमारे जीवन से जो जोड था वह ही खत्म हो गया और तीसरे प्रतीक गायत्री को भुलाकर हमने अपने घरों से धर्म, सदाचार और शान्ति को ही मिटा दिया। अपने इन्हीं कर्माें के परिणाम स्वरूप आज हम निर्मल काया के स्थान पर विभिन्न रोगों के शिकार हैं। प्रदूषणों के चलते पीने के लिए शुद्ध पानी की प्राप्ति हमारे लिए टेढी खीर बना हुआ है और धर्म बिहीनता के चलते देश, समाज और परिवारों का सुख, चैन और शान्ति समाप्त हो गयी है। जब हम अपने इन प्रतीकों की ओर वापस नहीं लौटते, सुख, सम्पन्नता और शान्ति की कल्पना करना भी बेमानी है।