लोहिया अस्पताल में डाक्टरों से ज्यादा दलाल सक्रिय, मरीज ले जाने को हुआ विवाद

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FARRUKHABAD : राममनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में प्रशासन के अथक प्रयासों के बावजूद भी दलालों पर लगाम नहीं लग पा रही है। मरीज के पहुंचते ही चिकित्सक के देखने के पूर्व ही वह मरीज के परिजनों को गुमराह करने और सरकारी अस्पताल में इलाज की समुचित व्यवस्था न होने की बात कहकर प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती करा रहे हैं। जिससे तीमारदारों की जेबों पर डाका सा पड़ रहा है। बुधवार को लोहिया अस्पताल पहुंचे एक मरीज को अपने अपने अस्पताल में भर्ती करवाने को लेकर दो दलाल अस्पताल परिसर में ही भिड़ गये। बाद में मौके पर मौजूद एक पुलिसकर्मी ने मामला शांत कराया।lohiya vivad

लोहिया अस्पताल के इर्द गिर्द बने बहुमंजिला चिकित्सालयों से सम्पर्क कर दलाल प्रातः से ही लोहिया अस्पताल पहुंच जाते हैं और गिद्ध जैसी पैनी निगाह गड़ाकर बाहर से आने वाले मरीजों पर घात लगाकर बैठ जाते हैं। ऐसा नहीं है कि लोहिया अस्पताल प्रशासन इससे परिचित नहीं है। लेकिन इसके बावजूद भी वह अपनी आंखें ूमंदे है। या तो लोहिया अस्पताल के प्रशासन की जेब अच्छी खासी गरम करायी जा रही है और या फिर कोई और ही बात है।
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बुधवार को कायमगंज क्षेत्र से पहुंचे एक मरीज को अस्पताल में पहुंचने के बाद ही डाक्टर ने रिफर कर दिया। हालांकि मरीज इतना गंभीर नहीं था, जितना उसे बताया गया और उसे अस्पताल से चलता किया गया। पहले मरीज को स्टेचर पर लेकर तीमारदार इधर उधर घूमते रहे और जब कोई कहीं साथ देने वाला नहीं रहा तो मजबूरन प्राइवेट चिकित्सालय में भर्ती कराने की बात सामने रखी गयी। प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराने की बात सुनते ही घात लगाये बैठे दलाल मरीज के तीमारदारों पर टूट पड़े और अपने अपने अस्पताल की सुविधाओं और कम पैसे में इलाज की दुहाई देने लगे। मामला इतना बढ़ गया कि दो दलाल आपस में ही भिड़ गये। मरीज के तीमारदार भी मुसीबत में पड़ गये।

विवाद होता देख मौके पर मौजूद एक पुलिसकर्मी ने दलालों को शांत किया और मरीज के परिजनों को अस्पताल से बाहर भिजवाया। यह कोई नई बात नहीं। लोहिया अस्पताल में यह आये दिन का चलन बन गया है। रोगियों के तीमारदारों की जेब काटकर दलाल अपना मोटा कमीशन हथियाकर मौज कर रहे हैं और प्रशासन आंखों पर पट्टी बांधे बैठा है। हालांकि बात करें प्राइवेट चिकित्सालयों की तो लोहिया अस्पताल के इर्द गिर्द चल रहे 60 प्रतिशत अस्पताल बगैर मानक के चल रहे हैं।

मुख्य चिकित्साधिकारी ने इसकी जांच भी करायी। लेकिन जांच अभी तक ठंडे बस्ते में पड़ी है। अगर फर्जी अस्पतालों में शिकंजा कस दिया जाये तो काफी हद तक सुधार होने की संभावना बन सकती है। लेकिन जांच तो अभी चल रही है।