करवा चौथ आज: रात 8:12 बजे चांद का होगा दीदार

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करवा चौथ पर मंगलवार को सुहागिन महिलाएं अपने पति की आयुवृद्धि के लिए और कुंवारी कन्याएं अच्छे सुहाग की कामना के लिए व्रत रखेंगी। ज्योतिषियों के मतानुसार चंद्रदर्शन रात्रि 7.56 से 8.28 के बीच होगा। चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र युक्त व वृष राशि में उदय होगा, जो चंद्रमा की उच्च राशि रहती है। ज्योतिषविदों के मुताबिक उदियात में तृतीया तिथि रहेगी। सुबह 9:30 बजे चतुर्थी शुरू हो जाएगी। इस मौके पर जयपुर में चंद्रोदय रात्रि 8:08 बजे होगा। महिलाएं शाम को चंद्रोदय के उपरांत अघ्र्य देकर व्रत खोलेंगी। वहीं बड़ों को 13 करवे व 13 सुहाग की वस्तुएं सुहागिनों को भोजन खिलाकर कलपेंगी। इसी दिन नवविवाहित वधुओं के लिए पीहर पक्ष से करवा चौथ के निमित्त उपहार, मिठाई एवं नए वस्त्र भेजे जाएंगे।

शहर में बीते 60 साल में करवा चौथ मनाने का अंदाज पूरी तरह बदल चुका है। कहीं टाइम फैक्टर तो कहीं, सिमटते परिवार की वजह से यह सेलिब्रेशन का दायरा तेजी से सिमटता जा रहा है।

व्रत क्यों रखते हैं?

व्रत भगवान के नजदीक होने का एक माध्यम है। व्रत करने से आत्मा शुद्ध होती है और संयम व पवित्रता भक्ति का एक उत्तम मार्ग है। यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। हिंदू मान्यता के मुताबिक करवा चौथ का व्रत पत्नी अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है। व्रत करके वो कामना करती है कि उसका पति स्वस्थ और समृद्ध हो।

चौथ का करक

मिट्टी का कलशनुमा पात्र करवे के बिना यह व्रत अधूरा है। इस करवे को गणोश का एक स्वरूप माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि करक के दान में सुख, सौभाग्य सुख, समृद्धि और पुत्र की प्राप्ति होती है और इसको दान करने से मनोकामना पूरी होती है।

मेहंदी का रंग

भारतीयों में मेहंदी को शुभ और खुशहाली से जोड़कर देखा जाता है। चाहे शादी ब्याह हो या वार त्यौहार शुभ अवसरों पर भारतीय महिलाएं मेहंदी से अपने हाथ और पैर सजाती हैं। और यूं भी शगुन मेहंदी बिना अधूरा होता है।

करवा चौथ का उजमन

उजमन करने के लिए एक थाली में तेरह जगह चार-चार पूड़ी और थोड़ा सा शीरा रखा जाता है। उसके ऊपर एक साड़ी, ब्लाउज और रुपए रखकर थाली के चारों ओर रोली से हाथ फेरकर अपनी सास के पैर छूकर उन्हें भेंट किए जाते हैं। इसके बाद तेरह ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा देने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

चांद को अर्क देना

चन्द्र-देव भगवान शंकर के भाल पर सुशोभित हैं। यही वजह है कि चन्द्र की अराधना उनका पूजन और अर्क देकर ही सम्पन्न की जाती है। वस्तुत शंकरजी की प्रत्येक उपासना और गौरीजी के व्रत का पूजन चन्द्रदेव का अर्क देकर ही सम्पूर्ण होता है।

दिशा ज्ञान जरूरी

देवताओं की प्रतिमा या चित्र का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। और पूजन के लिए स्वयं का मुख पूर्व दिशा की ओर करके बैठना चाहिए क्योंकि ज्ञान, तेज और शक्ति का स्वामी पूर्व से ही उदित होता है।

पूजा थाली में क्या

करवा की कथा की किताब, सिंदूर और कुमकुम, मौली, करवा, पूजा थाली, चढ़ावा और उपला, चंदन, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्च दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मिठाई, गंगाजल, अक्षत, मेहंदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, बिछुआ, दीपक, रुई, कपूर, गेहूं, बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, चलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ।