फर्रुखाबाद: शिक्षा विभाग और राजनीति में चोली दामन का साथ है। शिक्षक के बिना राजनीति अधूरी सी नजर आती है। चाहे वह चुनाव प्रचार हो या फिर मतदान, शिक्षकों की भूमिका प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से प्रमुख रहती है। वे भले ही सरकारी कर्मचारी होने के नाते सीधे चुनाव प्रचार में न लगें लेकिन उनका इशारा मात्र ही चुनाव की दिशा और दशा बदलने के लिए काफी होता है। इन दिनों वे भी कुछ इसी उधेड़ बुन में नजर आ रहे हैं। उनका तो मंतव्य सिर्फ इतना है कि सरकारी योजनाओं का संचालन तो ठीक करायें ही, लेकिन मिड डे मील ठीक से बनवायें। ऐसे प्रधान को चुनने की बात कह कर ग्रामीणों को सहज ही इंगित कर देते हैं।
इन दिनों गांव-गांव प्रधानी के चुनाव को लेकर चौपालें सजी हुई हैं। चुनाव प्रचार शवाब पर है। गांव-गांव प्राथमिक विद्यालयों या उच्च प्राथमिक या फिर माध्यमिक संवर्ग के शिक्षक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इनमें अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। वे भले ही आचार संहिता का अनुपालन करते हुए किसी प्रत्याशी का नाम न ले रहे हों, लेकिन उनका आम जनमानस से बस यही कहना रहता है कि वे अपने गांव के विकास के लिए ऐसे प्रधान को चुनें, जो वास्तव में गांव का विकास करा सके।
सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन सही ढ़ंग से करा सके। यही नहीं कुछ अपनी पंचायत स्तर पर प्रस्ताव बनाकर शासन प्रशासन से धनराशि लाकर गांव के विकास के द्वार खोल सके। साथ ही खास जरूरत तो इस बात की है कि बच्चों का निवाला न खाएं, और विधिवत मिड डे मील बनवाये।