ऐसा भी होता है- लालू यादव मैनेजमेंट गुरु से बन गए सजायाफ्ता कैदी

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Lalu Yadavराजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पटना के बेऊर जेल के बाद अब रांची के बिरसा मुंडा जेल में हैं। वर्ष 1997 में चारा घोटाले में बतौर आरोपी जेल में रहे तो अब बतौर दोषी। दोषी करार दिए जाने के साथ ही भारतीय राजनीति की इस अनोखी और करिश्माई शख्सियत की राजनीतिक पारी का अंत माना जा रहा है।

एक ऐसी करिश्माई शख्सियत जिसने राजनीति में गंवई राजनेता से मैनेजमेंट गुरु बनने तक का सफर तय किया। सामाजिक न्याय के नाम पर जयप्रकाश नारायण और लोहिया के इस समाजवादी शिष्य के अनोखे, लेकिन सफल प्रयोगों ने देश की राजनीति को कई बार हतप्रभ और सन्न करके रख दिया।
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लालू ने धुर कांग्रेस विरोध से अपनी राजनीति की जड़ें जमाई। लेकिन बदलती राजनीतिक परिस्थिति में धर्म निरपेक्षता के नाम पर उसी कांग्रेस का दामन थामने में भी देरी नहीं की। कभी दबे कुचले की बात कर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे तो कभी बतौर रेल मंत्री मैनेजमेंट गुरु बन कारपोरेट राजनीति में भी जबरदस्त घुसपैठ की।

बहरहाल अब चारा घोटाले में अदालत में दोषी ठहराए जाने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इन विपरीत परिस्थितियों में भी करिश्माई लालू के पास राजनीति का कोई मास्टर स्ट्रोक बाकी है? वर्ष 1970 से छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक कैरियर का आगाज करने वाले लालू के लिए जेल जाना कोई नई बात नहीं है।

वह तब भी बतौर छात्र नेता जेल गए थे, जब जयप्रकाश ने देश भर में आपातकाल के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा था। तब जेल जा कर लालू जनता के हीरो बने और साल 1977 में महज 29 साल की उम्र में संसद पहुंचने में सफलता हासिल की। राजनीति के माहिर खिलाड़ी साबित हुए लालू ने राम मंदिर के कमंडल के मुकाबले मंडल कमीशन की रिपोर्ट को बिहार में खूब कामयाबी से भुनाया।

इसके बाद देश और दुनिया लालू की अनोखी राजनीतिक शैली से परिचित हुई। एक ऐसी अनोखी शैली जिसकी जम कर आलोचना भी हुई। मगर इसका कोई असर लालू के समर्थकों पर नहीं पड़ा। उन्होंने कभी सत्ता की चाबी अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप कर पूरे देश को हतप्रभ किया तो कभी चरवाहा विद्यालय जैसे असफल प्रयोग के सहारे।

लालू के शासनकाल में बिहार में कानून व्यवस्था चरमरा गई, विकास कार्य ठप हो गए। शिक्षा सहित तमाम क्षेत्र बुरी तरह तबाह हो गए, मगर इसके बावजूद उनकी पार्टी पिछड़ी जातियों और मुस्लिम मतों के जबरदस्त ध्रुवीकरण के सहारे लगातार तीन बार सत्ता में रही।

वर्ष 1990 में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लालू ने अपने पक्ष में ‘माय’ (मुस्लिम और यादव) का नया राजनीतिक समीकरण तैयार किया, जो आज भी उनकी बड़ी ताकत है।