फर्रुखाबाद: ढाई दिवसीय सरकारी दौरे पर फर्रुखाबाद आये पी डब्लू डी के सचिव संजीव कुमार रविवार दोपहर 2 बजे वापस चले गए| दौरा प्रशासनिक निरीक्षण और समीक्षा का था| रविवार को वो डाक बंगले से बाहर नहीं निकले| सुबह नाश्ते में पकोड़ी खायी| पेट ख़राब हुआ तो तहसीलदार साहब ने मूंग की दाल का इंतजाम किया| डेढ़ बजे मूंग की दाल की खिचड़ी जो डाक बंगले की किचन में ही खानसामे ने बनाकर परोसी, उसे खाकर, मीडिया को अपने दौरे को चकाचक बताकर अखिलेश यादव को रिपोर्ट सौपने वापस चले गए|
संजीव कुमार जिले में ढाई दिन रहे| जनता से मिलने का कोई कार्यक्रम नहीं रखा गया था| जो कोई जबरदस्ती निरीक्षण करते समय या डाक बंगले के गेट पर जाम लगाकर मिल सका उसका लिखित शिकायती कागज जमा कर लिया| जो प्रशासन ने दिखाया उसे देखा| मीडिया से संवाद में उसी को दोहरा दिया| ऐसे कैसे दुरुस्त होगा प्रशासन ये सवाल पीछे छोड़ गए| जिले स्तर पर उन्हें कोई कमी नहीं मिली| नौकरी के आखिरी पड़ाव में कौन बेमतलब में दिमाग का दही करे शायद यही सोच प्रशासनिक व्यवस्था में गिरावट की बड़ी वजह बनती जा रही है| अन्ना हजारे को शून्य से शिखर तक पहुचने में ये बड़ी वजह थी|
अंग्रेजो के जमाने से चला आ रहा पीडब्लूडी के हर काम में परम्परागत 14 से 20 प्रतिशत का कमीशन संजीव कुमार को गलत नहीं लगता| वर्ना वे नौकरी के आखिरी पड़ाव में कम से कम इसी को गलत बता देते| इसी विभाग के वे सचिव है| लोहिया अस्पताल के निर्माण कार्य में लग रही बरसात में भीगी पीली ईंट जो लाल दिखाई पड़ रही थी उनके चश्मे के बढ़ते नंबर ने नहीं देख पायी| शायद पीली ईंट के रोड़े का ढेर जिसका बड़ा भाग बनती ईमारत की नीव टेल दब चुका है, सामने देखने के बाद भी अंग्रेजो के ज़माने की परम्परागत व्यवस्था में लिप्तता संलिप्तता के चलते मीडिया को कोई कमी नहीं बता पाए| सैंपल ले जा रहे है| जिसका सैंपल भरा गया है उस विभाग और ठेकेदार को लखनऊ तक जाना पड़ेगा| इसका यही सन्देश है| प्रदेश में घटिया निर्माण कार्य करने में बदनाम और पिछले बीस सालों में कई बार ब्लैक लिस्टेड हो चुके विभाग पेक्सफेड के पास लोहिया अस्पताल जैसे संवेदनशील भवन का काम है और बना रहेगा इसके लिए सैंपल के पीछे पीछे तो जाना ही पड़ेगा| यही सिस्टम है|
वैसे सरकारी अफसरों के दौरे तो होते ही रहते है| सरकारी आंकड़े दुरुस्त है, ये बताने के लिए| इन्ही सचिवो की मुहर से प्रदेश के विकास की फ़ाइल तैयार होती है| जो सरकार विधानसभा में और नेता जी चुनाव में “तेरी कमीज से मेरी कमीज चमकीली” बताने के लिए इस्तेमाल करते है| मायावती सरकार में भी उनके ज़माने के अफसर हरी हरी घास वाले ही आंकड़े पेश करते रहे| आखिर में लुटिया डूब गयी| जनता ने फाइलों के आंकड़ो को दरकिनार कर अपना फैसला कर दिया| गद्दी चली गयी| बड़े अरमानो ने प्रदेश की जनता ने कोरी स्लेट लिए अखिलेश यादव को सत्ता सौपी है| मगर नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार में भी वैसा ही चल रहा है| सरकार का झंडा बदल गया है| हाथी की जगह साइकिल वाला लग गया है| प्रशासनिक कार्यप्रणाली वैसी ही है| लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार की नीतियों को लागू करना इसी प्रशासनिक तंत्र का काम होता है|
शिकायत की फ़ाइल पर गहरा अध्धयन होता है| इन फाइलों में भी जब तक कुछ हित खुद का होता दिखाई न पड़े तो पढ़ने की जहमत भी कोई नहीं उठाता| जिले पर हर रोज दो दर्जन ज्ञापन अखबारों में छपने के लिए डीएम को दिए जाते है| कुछ मुहाफिज खानों तक पहुचते है तो कुछ नीचे वाले साहब के हवाले कर दिए जाते है| सचिव साहब को दिए गए ज्ञापनो का भी यही होना है| मुख्यमंत्री को शिकायत भेजो तो जाँच डीएम के पास आती है| डीएम साहब किसी अधिनस्थ को मार्क कर आगे बढ़ा देते है| कुछ दिन बाद शिकायत अस्तित्व खो देती है| कई बार तो शिकायतकर्ता का ही अस्तित्व ख़त्म हो जाता है| यही लोकतंत्र है| बस चलते रहना चाहिए| साहब की सुविधा में कोई खलल नहीं पड़ना चाहिए| ढाई दिन सचिव साहब की विशेष सुविधा का ख्याल रखा गया| समय से जरनेटर भी चला और मनचाहा भोज्य पदार्थ भी| मगर चलते चलते हाजमा ख़राब हो गया|
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जिले में अगमानी के समय विभागीय अफसरों के स्वागत में दिए गुलदस्ते को नकार कर पहले ही अपना अंदाज दिखा दिया था| रविवार को डाक बंगले में तसल्ली से मिलने मिलाने और इन्तजार विदाई में आधा दिन बिताया| विदाई से पहले मिलने मिलाने के दस्तूर को अब जनता बखूबी समझती है| जनता अफसर न बन सकी तो क्या ससुराल तो सबकी होती ही है| ससुराल से दामाद की विदाई की रस्म और लखनऊ से जिलो में विभागीय दौरों पर आये अफसरों की विदाई कुछ कुछ एक जैसी ही होती है|
-जय हिन्द-