जो बंदरों को भगाएगा वही वोट पायेगा

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पटना: बिहार के जिन इलाक़ों में आज मतदान हो रहा है, वहां के कुछ ज़िलों में बंदरो के उत्पात से राहत पाना वोटरों के लिए अनोखी प्राथमिकता है। बिहार देश के सबसे ग़रीब राज्यों में से एक है, और पिछले कई वर्षों से क़ानून व्यवस्था, जाती आधारित हिंसा और भ्रष्टाचार की वजह से बिहार की छवि ख़राब रही है। लेकिन सहरसा ज़िले में चैनपुर गांव के दस हज़ार मतदाताओं के लिए बंदरो का आतंक प्रमुख चुनावी मुद्दा है।

लोगों का कहना है कि कई झुंड में रहने वाले क़रीब 500 बंदरों ने उनकी ज़िंदगी को नर्क बना दिया है। बंदर उनकी फ़सलों को बरबाद कर देते है, मिट्टी की छत को नुक़सान पहुंचाते हैं, घर से अनाज और रसोई से खाना चुरा लेते हैं। समस्या इतनी बढ़ गई है कि लोगों को बारी-बारी से दिन रात अपनी फ़सल की निगरानी करनी पड़ती है।

मदन मोहन झा चैनपुर के 60 वर्षीय किसान है। अपनी समस्या बताते हुए मदन कहते है,पिछले तीन साल में हम कंगाल हो गए है। हमें अपने अस्तित्व के लिए बंदरो से लड़ना पड़ता है। वन्य जीव ऐक्ट की वजह से गांववालें बंदरो को मार नहीं सकते और राज्य सरकार के अधिकारी उन्हे गांव से दूर भगा नहीं सकते या कहें कि भगाना नहीं चाहते। ऐसे में गांववाले हताश हैं।

गांववाले कहते है कि उन्हे बंदरों की लूट से बचने के लिए हमेशा हाथ में पत्थर और डंडे लेकर चलना पड़ता है। चैनपुर के निवासी इस समस्या से सबसे ज़्यादा पीड़ित हैं लेकिन आसपास के तेघरा, पारी, बनगांव और मोहनपुर गांव भी बंदरों का आतंक झेल रहे हैं।

जो बंदरो को डराएगा.. वोट वही पाए

अनुमान लगाया जा रहा है कि सहरसा की दो विधानसभा सीटों में कुल 50,000 लोग इस समस्या से प्रभावित हैं। गांववालों का कहना है कि वो पिछले तीन वर्षों से इस समस्या के समाधान के लिए संघर्ष कर रहे है। जिसके तहत उन्होने सड़क जाम करने से लेकर विरोध मार्च तक सब किया। अपने विरोध को दिशा देने के लिए गांववालों ने बंदर मुक्ति अभियान समिति का गठन किया है।