पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का साम्राज्य खत्म होने के बाद बिहार में नीतीश कुमार की ऐसी लहर चली कि जातिवाद को लगभग खत्म करके रख दिया। आज बिहार में हर जगह विकास की बात हो रही है। जनता भी जातिवाद के नारों को पीछे छोड़ चुकी है, ऐसे में बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती भी अपने हाथी को बिहार की सीटों पर सेंध मारने निकल चुकी हैं।
उत्तर प्रदेश में दलितों को आकर्षित करने के बाद सभी वर्ग का वोट बैंक मजबूत करने की सोशल इंजीनियरिंग मायावती अब बिहार में भी लागू करने जा रही हैं। “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” का नारा लेकर अपनी पार्टी का प्रचार कर रहीं मायावती यह जानती हैं कि अब किसी एक जाति पर दांव लगाकर जीत हांसिल नहीं की जा सकती है।
जिस प्रकार मायावती ने उत्तर प्रदेश में ठाकुर, ब्राह्मण व वैश्य वर्ग के लोगों को अपनी पार्टी के उच्च पदों पर बैठा कर उत्तर प्रदेश के सवर्णों के वोट हांसिल किए, उसी प्रकार बिहार में भी वो अपनी चाल चलने जा रही हैं। वो भी 125 उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर। 33 उच्च जाति, 38 पिछड़े वर्ग, 24 अनुसूचित जाति, 20 यादव जाति, 14 अत्यंत पिछड़े वर्ग, तीन कुर्मी जाति,15 मुसलिम समुदाय से और एक ईसाई समुदाय से शामिल हैं।
पहले चरण की वोटिंग शुरू हो चुकी है, अब देखना यह है कि बिहार की जनता मायावती की सोशल इंजीनियरिंग से कितनी सहमत होती है। यह बात तय है कि मायावती की छोटी से छोटी जीत लालू और नीतीश कुमार की नाक में दम करने के लिए काफी होगी। उनको हमेशा यह भय सताता रहेगा कि कहीं उनके गढ़ पर माया का कब्जा न हो जाए।