भारतीय संस्कृति में विवाह 16 संस्कारों में से एक है : नीलम शास्त्री

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FARRUKHABAD : मोहल्ला अढ़तियान स्थित मिर्चीलाल के फाटक में 25 वें रजत जयंती वर्ष में बनारस से पधारी मानस कोकिला श्रीमती नीलम शास्त्री नें राम विवाह प्रसंग पर अपने प्रवचन में कहा रामचरित मानस अतीत का इतिहास है भारतीय संस्कृति में विवाह 16 संस्कारों में से एक है। राजा जनक के दरवार में 100 से अधिक राजा सीता के स्वंयबर में विराजमान थे पर कोई भी राजा परशुराम के धनुष को तोडऩे में समर्थ नहीं था। अन्त में गुरू विश्वामित्र की आज्ञा से श्रीराम नें धनुष की प्रत्यंजा चढ़ाकर उसे तोड़ दिया। श्रीराम में भी भगबती सीता की शक्ति थी तभी बह भारी धनुष को तोड़ पाये।neelam1

श्रीराम सीता का विधिविधान से पाणिग्रहण संस्कार अगहन सुदी पंचमी की सांयकाल वेला में सम्पन्न होता है। मानस कोकिला श्रीमती शास्त्री नें कहा आज लोगों को विवाह में लेने और देने का सही तरीका नहीं मालूम है। जब तक दहेज रूपी धनुष को चरित नायक प्रभु राम जैसा नौजवान नहीं तोड़ेगा तब तक सीता जैसी कन्यायें कुंआरी ही वनी रहेंगी। उन्होने मंगल गीत गाया, सिय रघुवीर विवाह के सप्रेम गावंहि सुनहिं तिन कह सडा उछाह मंगला यतन राम जसु।

जालौन से पधारे मानस विद्वान ईश्वर दास बृह्मïचारी नें भक्ति स्वतंत्र सुख खानी प्रसंग की व्याख्या करते हुये कहा संत के सत्संग से ही भक्ति का प्रार्दुभाव होता है भगबती सीता साक्षात भक्ति हैं और जब तक मनुष्य के जीवन में भक्ति का प्रवेश नहीं होगा तब तक श्रीराम की कृपा भी नहीं होगी। केवट लीला प्रसंग पर बोलते हुये वृह्मïचारी नें कहा श्रीराम अयोध्या के मंत्री सुमंत को वापस जाने को कहते हैं पर बह वापस नहींं जाना चाहता जवकि केवट को श्रीराम अपने पास वुलाते हैं और बह उनके पास नहीं आता है बाद में भब सागर से पार लगाने बाले श्रीराम केवट से गंगा नदी पार कराने को कहते हैं केवट बिना चरण प्रच्छालन के गंगा नदी पार कराने से इंकार कर देता है। श्रीराम के तैयार होने पर केवट उनके चरणों का प्रच्छालन कर राम, लक्ष्मण, सीता को नदी पार कराता है। उन्होने गीत प्रस्तुत किया, हमारे हैं श्री रघुनाथ हमें किस बात की चिता है, चरण में रख दिया जब माथ हमें किस बात की चिंता है।

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बनारस से पधारे मानस मनोहर रामेश्वर उपाध्याय रामायणी नें रामचरित सर सुंदर स्वामी प्रसंग की व्याख्या करते हुये कहा देश को आजाद हुये 66 वर्ष हुये पर हमारा चरित्र इन दिनों में नष्टï हो गया हम रामचरित मानस का अध्ययन करें तभी हमारा चरित्र निर्मल होगा। उन्होने कहा जो शिव है बही शिवा और जो राम है बही सीता भी है। शिव नें शिवा को सवसे पहले राम कथा सुनाई इस कारण इसका नाम रामचरित मानस पड़ा। इस अबसर पर राधेश्याम गर्ग, दिवाकर लाल अग्निहोत्री, सुजीत पाठक वंटू, मनोरमा, मधु गौड़, शशि रस्तोगी, जगदीश अबस्थी, भारत सिंह, किशोर सिंह सहित सैकड़ों श्रोता मौजूद रहे। संयोजन डॉ० रामबाबू पाठक तथा संचालन पं० रामेन्द्र शास्त्री नें किया।