फर्रुखाबाद: “कौन कहता है कि आसमा में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो” इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राइमरी स्कूल के एक मास्टर ने| खस्ताहाल शिक्षा व्यवस्था से झूझ रहे उत्तर प्रदेश में आज भी हजारो ऐसे शिक्षक है जिनमे जज्बा है अपने कर्तव्यो को निभाने का| इन्ही शिक्षको की वजह से अभी तक यूपी में सरकारी स्कूल की झुकी हुई कमर टूटने से बची हुई है| ऐसे ही हजारो शिक्षको में एक है फर्रुखाबाद के बढ़पुर ब्लाक स्थित कन्या प्राइमरी पाठशाला के हेड मास्टर नानक चन्द्र|
90 फ़ीसदी बच्चो की उपस्थिति और कान्वेंट स्कूल की तस्वीर
44 वर्षीय नानकचन्द्र जिस स्कूल में तैनात है वो आज भी अपने तय समय से खुलता बंद होता है| नानक नियमित 7 बजे से पहले स्कूल पहुच जाते है| बाकायदा साल भर प्रार्थना से स्कूल की शुरुआत होती है| बच्चो के साथ कई बार नानकचन्द्र को स्कूल की साफ़ सफाई करते हुए तक देखा जा सकता है| विद्यालय में 90 फ़ीसदी से अधिक की उपस्थिति रहती है| बच्चो को साफ़ सफाई के साथ मिड डे मील मिलता है| दो क्लासरूम में 5 कक्षा के बच्चो को अकेले दम पर चला रहे नानकचन्द्र के स्कूल में क्लासरूम दी दीवारे किसी प्राइवेट महगे कान्वेंट स्कूल का एहसास कराती है| बच्चो की पढ़ाई लिखाई से लेकर समय से कोर्स पूरा कराना नानक की आदत में शुमार है| बच्चो को चित्रकला में प्रदेश स्तर तक का पुरस्कार दिला चुके है|
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज भी उठाते रहे-
नानक चन्द्र एक अध्यापक के साथ साथ अपने विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार और अनिमिताताओ के खिलाफ भी जंग छेड़े रहते है| बच्चो को समय से किताबे मिलने का मुद्दा हो या फिर ड्रेस का| अफसरों को नियमित चिट्ठी लिख देते है| शिक्षक संघ के जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक की नेतागिरी भी करते है| अपने साथियो के लिए जंग करते है मगर सबसे पहले बच्चो को पढ़ाते है| इस संघर्ष में उन्हें कई वार वेवजह विभागीय परेशानियो का भी सामना करना पड़ा|
नानक चन्द्र रोल माडल के रूप में
जो अध्यापक परिषदीय स्कूलों पर काम के बोझ का रोना रोते है उनके लिए नानकचन्द्र एक उदहारण है| वे पोलियो, जनगणना या अन्य कोई अतिरिक्त ड्यूटी कभी बच्चो की शिक्षा के घंटे में नहीं करते| जिस गाँव में नानकचन्द्र की तैनाती है उस गाँव में बच्चो के अभिवावकों से नानकचन्द्र एक रिश्ता कायम कर लेते है| स्कूल से गायब रहने वाले बच्चो को दो चार बच्चे भेज घर से बुला लेते है| यहाँ तक कि खुद भी बच्चो को कान पकड़ कर उनके घर से ले आते है पढ़ाने के लिए| न मार न पिटाई| फिर भी बच्चे आते है| पढ़ते है| इसीलिए तो कहते है कि ऐसा भी होता है|
एकल शिक्षक विद्यालय है नानक चन्द्र का स्कूल
कुछ वर्ष पहले नानकचन्द्र ने विभाग की अनिमिताताओ को लेकर मोर्चा खोल दिया तो मामला खूब गरमाया| बेसिक शिक्षा अधिकारी की मदद को अपर शिक्षा निदेशक ने नानकचन्द्र में ३ घंटे बैठ कर जाँच पड़ताल की मगर इतनी भी कमी नहीं पकड़ पाए कि चेतावनी भी दे पाते| एक पूरे स्कूल में अकेले शिक्षक है| कई बार मांगने के बाबजूद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने एक अन्य अध्यापक की व्यवस्था नहीं की| नानकचन्द्र का कहना है कि अगर उन्हें एक शिक्षक और मिल जाए तो दो साल में वे अपने स्कूल को किसी भी कान्वेंट स्कूल से बेहतर बना सकते है| संसधानो का अभाव कभी खलता| जब पूरे जिले के शिक्षक मिड डे मील की कन्वर्जन कास्ट का रोना रो मिड डे मील बंद करने के धमकी दे रहे है तब नानकचन्द्र कहते है उन्हें कन्वर्जन कास्ट की कमी नहीं है| ऐसा नहीं कि नानकचन्द्र के स्कूल में अलग से मिड डे मील का कन्वर्जन कास्ट आया हो| उन्हें भी उतने ही महीने से नहीं मिला जितने महीने से सबको| बस नानकचन्द्र ने खाते से उतना ही पैसा निकाला जितना असल में खर्च हुआ| लिहाजा उनके खाते में पैसा है| और बाकी शिक्षक अपना कर्जा विभाग पर दिखा रहे है|
बच्चो को बस्ता पेंसिल पेन अपने पास से मुहैया कराया-
गत 15 अगस्त पर नानकचन्द्र ने एक संस्था से बच्चो के बस्ते का इन्ताम करा दिया| और अपने पैसे से पेन पेंसिल और बसते वितरण का कार्यक्रम रखा| खंड शिक्षा अधिकारी को बुलाकर हर बच्चो को बस्ता बटवाया| ये कोई सरकारी पैसा नहीं था| मगर नानकचन्द्र ने बच्चो के लिए कर दिखाया| बहुत लिखने की जगह अगर कभी मौका मिले तो उनके विद्यालय में जाकर देखिये सरकारी स्कूल की तस्वीर पहचान में नहीं आएगी| मगर इन सबके साथ बड़े अफ़सोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि ऐसे शिक्षक का नाम कभी खंड शिक्षा अधिकारिओ ने आगे भी बढ़ाया तो जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी और उनके चमचे बाबू ने नाम ही प्रदेश तक जाने नहीं दिया| यह एक दलित, अनुशासित और इमानदार शिक्षक का इनाम है जो उन्हें इस भ्रष्ट तंत्र में मिल रहा है| फिर भी नानकचन्द्र को कोई अफ़सोस नहीं है| वे कहते है कि ये कमजोर वर्ग के बच्चे है इन्हें पढ़ाने का हमें वेतन सरकार देती है| ये पढ़ लिख जायेंगे तो इन्हें किसी सहारे की जरुरत नहीं पड़ेगी| विभाग को ऐसे शिक्षक पर नाज करना चाहिए|