FARRUKHABAD : जैसे ही मैं फर्रुखाबाद के सफेद हाथी लोहिया अस्पताल के इमरजेंसी गेट के बाहर निकला, कानों में किसी की कराहने की आहट सुनाई दी। पहले तो आवाज हल्की-हल्की आ रही थी और मैं अपने साथियों के साथ बातों में मसगूल था, लेकिन देखते ही देखते आवाज की तरंगें कान में तेजी के साथ टकराईं तो पेशे के मुताबिक उत्सुकता जागी कि आखिर यह दर्द भरी कर्कस आवाज है किसकी और कहां से आ रही है। तभी अचानक नजर एक 60 साल के कपिल वृद्व पर जा टकरायी और मैं वहीं ठिठक गया। नजरों ने जो देखा उसने एक बार तो आत्मा ही झकझोर दी। वृद्व के सीधे पैर में एक गंदा सा कपड़ा बंधा था और मक्खियों ने उस जगह पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। मुझे समझते देर नहीं लगी कि इस लावारिश की कोई गुहार सुनने वाला नहीं है।
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पास खड़े कुछ लोगों ने बताया कि इस वृद्व के पास से सुबह से न जाने कितने चिकित्सक व कर्मचारी गुजर चुके हैं और उन्होंने मुंह फेर लिया। उसकी वेदना इतनी बढ़ गयी कि वह खड़े होने तक की स्थिति में नहीं था। गंदा सा नेकर व एक बनियान पहने वृद्व के शरीर पर भी काफी मात्रा में गंदा मैल जमा था। दिमाग से ठीक-ठाक लगा। लेकिन दोनो आंखों की रोशनी मोतियाबिन्दु ने छीन ली। इस नजारे को देखकर मैने अपनी स्टार्ट मोटरसाइकिल को आफ किया। क्योंकि मुझे मंदिर जाना था। और मेरे साथी भी मेरे साथ मंदिर जाने की तैयारी में थे.
मोटरसाइकिल आफ करने के बाद पास खड़े अपने साथियों की ओर मैने इशारा करते हुए कहा कि आम जनता क्या स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था का अचार डाले जब लावारिश का कोई सुनने वाला नहीं। हमने उन्हें सहायता के लिए आमंत्रित किया लेकिन वह मजाक बनाते हुए मंदिर के लिए चले गये। मजबूरन उसे अकेले ही लोहिया अस्पताल के बार्ड में पहुंचाया तो बार्ड में मौजूद कर्मचारी अपना अपना बचाव करने में जुट गये। नर्स बोली अरे यह तो पागल है। कोई कह रहा कि इसके साथ कोई नहीं है। कुल मिलाकर हर सख्स अपनी अपनी सफाई पेश करने में व्यस्त हो गये।
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मामले की जानकारी उच्चाधिकारियों के संज्ञान में आये इस डर से मौके पर मौजूद कर्मचारियों ने फर्जी सहानुभूति दिखाते हुए उसकी मरहम पट्टी करना शुरू कर दी। पट्टी खोलते ही जो नजारा आंखों ने देखा वह ह्रदय की गति बढ़ाने के लिए काफी था। उसके पैर में हजारों की संख्या में कीड़े पड़ चुके थे। जैसे तैसे कर्मचारियों ने अपना बचाव करने के लिए तत्काल उसकी मरहम पट्टी शुरू कर दी। मरहम पट्टी करवाने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती तो कर लिया। यह बात मानने वाली है कि ऊपर वाला सब पर नजर रखता है, कितनी समस्या अगर किसी सामान्य परिवार के व्यक्ति के सामने होती तो मरीज सीधा आईसीयू में ही दिखायी देता लेकिन ताकत ऊपर वाला उस वृद्व को जरूर दे रहा है, जिसे इतनी पीड़ा होने होने के बाद भी वह जिंदा था। अब नम्बर बढ़ाने वाले लोगों का मुहं खुला। कोई कह रहा कि पुण्य का काम है, कोई कह रहा वृद्व दुआ देगा। प्रश्न इस बात का उठता है कि क्या उन व्यक्तियों में से किसी ने भी उसकी संवेदना और दर्द को महसूस नहीं किया, जो सुबह से अस्पताल के इर्दगिर्द मडरा रहे थे और वृद्व दर्द से कराह रहा था। वृद्व का वह दर्द स्वास्थ्य विभाग के मुहं पर तमाचा ही था कि शासन की तरफ से दिशा निर्देश होने के बावजूद भी वर्तमान में स्थिति नहीं सुधरी, फिलहाल वृद्व को उचित उपचार दिलाने के बाद मैंने आज मंदिर जाने का विचार त्याग दिया………………*दीपक शुक्ला*