बाढ़ राहत शिविरों में सहायता के नाम पर केवल छत

Uncategorized

कायमगंज (फर्रूखाबाद) : क्षेत्र में आई बाढ़ ने जो तबाही फैलाई, उसकी चपेट में आकर हजारों लोग घरों से बेघर हो गये। सैकड़ों बीघा खडी फसलें बाढ़ बहा ले गयी और मनुष्यों के साथ साथ बाढ़ का दंश पालतू जानवर भी अपने मालिकों के साथ भोग रहे हैं, जिन्हें समय से न तो चारा मिल पा रहा है और न ही पानी। इन सबसे हटकर इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि बाढ़ ने हजारों जंगली जानवर भी काल के गाल में समा चुके हैं। बाढ़ का प्रकोप अभी पूरी तरह से शान्त नहीं हुआ है, गांव के गांव अपने घर बार छोड़कर जगह जगह पर शरणार्थी जीवन जी रहे हैं। सहायता शिविरों के नाम पर इन बाढ़ पीड़ितों को कितनी सहायता मिल रही है और इनके दुःख और समस्याएं क्या है, जानने के लिए जेएन आई टीम ने मंडी समिति में पनाह लिये बाढ़ पीड़ितों के बीच जाकर उनका दर्द और समस्याएं जानने की कोशिश की।

[bannergarden id=”8″][bannergarden id=”18″]
floodमंडी समिति में क्षेत्र के ग्राम कुंवरपुर के बाढ़ पीड़ित पनाह लिये हुये हैं। जिनके साथ भैंसे, बकरी आदि पालतू जानवर भी मंडी समिति में हैं। जब इन बाढ़ पीड़ितों से पूछा गया कि शिविर में आपको जो सहायता मिल रही है वह पर्याप्त है तो सभी ने एक सुर में कहा कि रविवार को सहायता के नाम पर हम लोगों को एक एक पैकेट दिया गया है। इसके अलावा हमें आज तक कोई सहायता कहीं से नहीं मिली। बाढ़ पीड़ितों का यह भी कहना है कि हम लोग क्षेत्र में मेहनत मजदूरी करके जो कमाते हैं उसी से अपना खाना यहां खुद पकाकर अपना पेट भरते हैं। कैम्प में पुरूषों की अपेक्षा औरतों और बच्चों की भारी संख्या मौजूद थी। जब इसका कारण जानना चाहा तो कुषमा देवी ने बताया कि आदमी लोग मजदूरी करने आसपास के क्षेत्रों में गये हुये हैं और लडके जानवरों के लिए घास बीनने गये हुये हैं। बाढ़ पीड़ितों से जब यह जानना चाहा कि हर साल आने वाली बाढ़ से उनके गांवों को बचाने का उनकी नजर में कोई उपाय है तो बाढ़ पीड़ित प्यारेलाल ने बताया कि गंगा की ठोकर और बंदा बनाकर ही गंगा किनारे के गांवों को बाढ़ के विनाश से बचाया जा सकता है।

[bannergarden id=”17″][bannergarden id=”11″]

जब तक ऐसा नहीं किया जायेगा बाढ़ द्वारा होता चला आ रहा विनाश नहीं रूक सकेगा। जब प्यारेलाल से मिलने वाली सहायता के बारे में पूछा तो उसका भी यहीं कहना था कि साहब अपना कमाना, अपना खाना। सहायता के नाम पर केवल छत ही प्राप्त है। न तो हमारे पास ओढ़ने के कुछ है और न ही बिछाने के लिये। राज रानी ने बताया कि गांव के लगभग सभी चालीस परिवार यहां पर सर छुपाये पडे हैं। जिनमें लगभग २०० लोग बच्चों को मिलाकर हैं। मौके पर जल रहे चूल्हों में जलती हुई गीली लकडियां जिन्हें फूकफूककर आंखों से बहते आंसुओं के साथ महिलायें जला रही थी और उन पर रखी पतीलियों मंे शाम के लिए आलू उवाले जा रहे थे। बाढ़ पीड़ितों ने यह भी बताया कि हम लोग यहां पर ६ दिन से पनाह लिये हुये हैं। शिविर में कुषमा, राजरानी, रामसनेही, चन्दावती, लालाराम, प्यारेलाल, बिट्टन, ओमवती, सोमवती, चम्पा, गुडिया, ऊषा, दंतसरी, कौसा, महावीर, सुशील, शिवा, लिक्की, चैता, विद्यावती आदि ने अपनी पीड़ा भारी दर्द के साथ बताते हुये कहा कि हमारे साथ आये पालतू जानवर तक परेशान है। जिनके लिए चारा जुटाना भी यहां मुश्किल हो रहा है। इसी दौरान तहसील प्रशासन की तरफ से सोमवार को बंटने के लिए १०-१० किलों बजन के आटे के ३० पैकेट आधा बोरी नमक और ३ पैकेट माचिस आये हुये रखे हैं। जिन्हें सोमवार को ही उपजिलाधिकारी भगवानदीन वर्मा बाढ़ पीड़ितों मंे वितरित करके प्रशासन की तरफ से उनके आंसू पोछने का कार्य करेगे।

लेकिन यह भी कहना उचित नहीं होगा कि इन बाढ़ पीड़ितों को अभी और सहायता की आवश्यकता है। इनके ओढ़ने और बिछाने के लिए दरियां, चादर और खाने पकाने के लिए तेल, मिर्च मसाले और सब्जी भी अगर इनको दिलाने की व्यवस्था की जाये तो शायद इन दुःखियारों को कुछ राहत मिल सके। वहीं भावी बाढ़ से क्षेत्र के गांवों को बचाने के लिए अभी से मजबूत तटबंध और ठोकरें गंगा पर बांधी जायें। जो आने वाली उफनाती नदियों की विक्राल टक्कर को सहने में सक्षम हों अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर इन बेचारों को इसी तरह बाढ़ का दंश झेलकर बर्बादी के दिन भोगना होंगे।