अवैध बालू खनन पर वसूली की चाट बनी पट्टों की राह में रोड़ा

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FARRUKHABAD : सरकारी आंकड़ों के अनुसार जनपद में बालू खनन विगत तीन वर्षों से बंद चल रहा है। परन्तु जनपद के लगभग एक सैकड़ा ईंट भट्टे संचालित हैं। जिनसे निकलने वाली ईंटों के बूते जनपद में विभिन्न प्रकार के भवन निर्माण निर्बाध गति से जारी हैं। नगर मजिस्ट्रेट कार्यालय से भवन निर्माण के मानचित्र धड़ाधड़ स्वीकृत हो रहे हैं। लोक निर्माण विभाग, आर ई एस और विभिन्न सरकारी कार्यदाही संस्थाएं भी निर्माण कार्यों के नाम पर बजट के बंदरबांट में व्यस्त हैं। पर सवाल यह है कि अगर जनपद में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में बालू खनन बंद है तो फिर इतने सारे निर्माण कार्यों के लिए आखिर बालू आती कहां से है। जाहिर है कि सरकारी दावे झूठे और कागजी हैं। जनपद में धड़ल्ले से अवैध बालू खनन का कारोबार जारी है। जिसमें खनन माफिया के गुर्गों के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी तक यदि सम्मलित नहीं तो कम से कम उनकी मौन स्वीकृति तो अवश्य हैं। पुलिस के लिए तो खैर ‘‘यकजाई’’ की मद में बालू खनन का स्थान सबसे ऊपर पहुंच गया है। बताते हैं कि नये अपर जिलाधिकारी आलोक सिंह ने अब पट्टा पत्रावली पर सहमति व्यक्त करते हुए फाइल डीएम कार्यालय को भेज दी है। परन्तु यह घटना लगभग दो सप्ताह पुरानी है और फाइल की वापसी का अभी भी इंतजार है।
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आज से लगभग 6 वर्ष पूर्व जनवरी 2007 में जनपद में बालू खनन के तीन पट्टे प्रशासन द्वारा आवंटित किये गये थे। जिनका 2010 तक नवीनीकरण होता रहा, परन्तु अचानक सितम्बर 2011 में मैनपुरी निवासी भगवान सिंह नाम के एक व्यक्ति के फर्जी हस्ताक्षरों से उच्च न्यायालय में एक याचिका कर दी गयी। जिसमें पर्यावरण विभाग की अनापत्ति न होने के तर्क के आधार पर हाईकोर्ट ने बालू खनन पर रोक लगा दी।
स्थगन आदेश के विरुद्व पुनर्विचार याचिका में पट्टा धारियों द्वारा यह तर्क दिया गया कि मूल रूप से पट्टा आवंटन के समय पर्यावरण अनापत्ति प्रमाणपत्र की बाध्यता नहीं थी एवं इसी आधार पर उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश निरस्त कर दिया, परन्तु इसके बावजूद तत्कालीन जिलाधिकारी ने बालू खनन की अनुमति प्रदान करने से इंकार कर दिया। जिसके विरुद्व सचिव भूतत्व एवं खनकर्म के यहां जिलाधिकारी के आदेश के विरुद्व अपील कर दी। अपील में सुनवाई के दौरान भगवान सिंह ने स्वयं उपस्थित होकर उसके द्वारा कोई रिट फाइल न किये जाने का हलफनामा दिया गया।
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मामला एक बार फिर जिलाधिकारी कार्यालय को संदर्भित हो गया। तत्कालीन जिलाधिकारी सच्चिदानंद दुबे को पट्टाधारकों द्वारा पर्यावरण विभाग का अनापत्ति प्रमाणपत्र भी उपलब्ध करा दिया गया। इसके बावजूद सच्चिदानंद दुबे से लेकर मुथुकुमार स्वामी और वर्तमान जिलाधिकारी पवन कुमार तक किसी ने भी बालू खनन की अनुमति प्रदान नहीं की।
सूत्रों की मानें तो नये अपर जिलाधिकारी आलोक सिंह ने बालू खनन की अनुमति दिये जाने सम्बंधी पत्रावली पर हस्ताक्षर कर उसे अनुमोदन हेतु जिलाधिकारी को भेज दिया है। परन्तु इस घटना को भी लगभग दो सप्ताह होने जा रहे हैं। अभी तक फाइल की वापसी का इंतजार किया जा रहा है।
सवाल यह है कि आखिर बालू खनन की अनुमति देने में बाधा क्या है। राजस्व अभिलेखों के अनुसार बालू खनन पर रोक के दौरान इस मद में जितनी सरकारी वसूली हुई उतनी तो नियमित पट्टों से भी नहीं होती थी। सवाल यह है कि जब पट्टे ही नहीं उठे तो यह आमदनी आई कहां से। इसका जबाब है कि यह राजस्व वसूली अवैध बालू खनन के नाम पर पकड़े जाने वाले आम लोगों के ट्रैक्टरों पर किये गये जुर्माने से वसूल ली जाती है। जाहिर है कि राजस्व का घाटा भी नहीं हो रहा है और बालू माफिया की भी बल्ले बल्ले है।