जनपद के तीन ईमानदार जिलाधिकारियों का भी राजनैतिक दबाव में हो चुका है तबादला

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फर्रुखाबादः खनन माफिया के दबाव में आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल के निलंबन और तबादले के बाद से जारी राजनैतिक द्वंद और मीडिया ट्रायल खूब चल रहा है। ईमानदार अफसरों को राजनेता किस तरह सबक सिखाते हैं, इसका इतिहास काफी पुराना है। इसी क्रम में जपनद में तैनात रहे तीन ईमानदार जिलाधिकारियों इफ्तिखारुद्दीन, वीना कुमारी मीना और शंकर लाल पांडेय के ट्रांसफर की यादे बरबस ताजा हो जाती हैं।
Netaताकतवर राजनेता ईमानदार अधिकारियों को किस प्रकार अपनी मनमर्जी न चलने पर उनको किस प्रकार अपमानित कर प्रताड़ित करते हैं, इसका इतिहास काफी पुराना है। परंतु राजनेतओं में यह प्रवृत्ति भी नौकरशाही की मलाईदार पोस्टिंग की ललक ने ही जगाई है। मनमाफिक पोस्टिंग के लिये समझौते करने वाले अधिकारियों की भीड़ में जब कोई ईमानदारी अधिकारी आ जाता है, तो हां-हुजूरी कराने के आदी राजनेताओं की त्योरी चढ़ जाती है। हद तो यह है कि ऐसा अधिकारी अपनी जमात में भी उपहास का पात्र बन जाता है और ‘मुख्य धारा से कटा हुआ’ माना जाता है।
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किस्सा ज्यादा पुराना नहीं है। मायावती की सरकार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री ब्रह्मदत्त द्विवेदी की तूती बोलती थी। उस समय जनपद में डीएम इफ्तिखारुद्दीन की ईमानदारी और कर्मठता के डंके बज रहे थे, किसी बात पर मंत्री और डीएम की खटक गयी, और रातों-रात डीए का तबादला लखनऊ कर दिया गया। इफ्तिखारुद्दीन का सामान लेकर जिस समय निकले तो बंगले के बाहर गरीबों की भीड़ आंखों में आंसू और होठों पर दुआएं लिये खड़ी थी। हालांकि ब्रहम्दत्त द्विवेदी का इससे पूर्व एक मुचैटा होटल हिंदुस्तान के सामने मंदिर के पास वाली जमीन पर बाउंड्री कराने को लेकर तत्कालीन डीएम राजू शर्मा से भी हो चुका था, परंतु चूंकि राजू शर्मा तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के करीबी रिश्तेदार थे सो तब वह खून का घूंट पीकर रह गये थे, और आखिर उनको वहां से अपनी ईंटे खुद भरवाकर ले जानी पड़ी थीं।
समय बदला तो श्री द्विवेदी की हत्या के बाद जनपद की राजनीति में उस्ताद विजय सिंह का बोलबाला हो गया। सरकार एक बार फिर मायावती की ही थी। परंतु इस बार उनके करीबी होने का सौभाग्य विजय सिंह को था। उनकी पत्नी दमयंती सिंह नगर पालिकाध्यक्ष थीं। जनपद में डीएम के तौर पर तैनात वीना कुमारी मीना की एक ईमानदार अधिकारी के रूप में ख्याति थी। सफाई कर्मचारियों के फंड भुगतान को लेकर वीना और दमयंती में खटक गयी। कागजी लड़ाई बढ़ते बढ़ते व्यक्तिगत हो गयी। फिर तो जनपद के अधिकारियों और मीडियाकर्मियों ने वह अभूतपूर्व नजारा देखा जो कम ही देखने को मिलेगा। दोनों के बीच वह वाकयुद्ध हुआ कि अखबारवालों के सामने लिखने के लिये शब्दों के चयन की समस्या खड़ी हो गयी। लोकल चैनलों ने जैसे तैसे कांटछांट कर यह नजारा दिखाया। वीना कुमारी मीना का भी तबादला हो गया, और विजय सिंह व दमयंती सिंह की जीत हो गयी। एक ईमानदार आईएएस अधिकारी हार गयी।
समय का चक्र फिर घूमा। मायावती तब भी मुख्यमंत्री थीं, परंतु विजय सिंह का उनके दरबार से पत्ता कट चुका था। न विधायकी बची और न ही चेयरमैनी। अनंत कुमार मिश्रा अंटू विधायक थे तो मनोज अग्रवाल अब नगरपालिका फर्रुखाबाद के चेयरमैन थे। यह जमाना था तेजतर्रार डीएम शंकरलाल पांडेय का। उनका तबादला अंटू मिश्रा से विवाद के चलते जनपद फतेहपुर से यहां के लिये किया गया था। उनकी भी तेजी और निष्पक्षता का डंका खूब बजता था। शंकरलाल पांडेय के जलजले का यह आलम था कि जितने दिन (लगभग छह माह) शंकरलाल पांडेय फर्रुखाबाद के डीएम रहे उतने दिन अंटू मिश्रा स्थानीय विधायक और कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद जनपद की सीमा में प्रवेश की हिम्मत नहीं जुटा पाये। बताते हैं कि नगरपालिका में पेवर ब्रिक के कथित फर्जीबाड़े की जांच को लेकर डीएम शंकरलाल पांडेय ने मनोज अग्रवाल के विरुद्ध एफआईआर की तैयारी कर ली थी। फिर क्या था, अंटू से लेकर मनोज अग्रवाल तक सारे दिग्गज लग गये और इससे पहले कि शंकर लाल पांडेय अपने मनसूबों में कामयाब हो पाते उनके ट्रांसफर का आदेश जिला मुख्यालय पर आ गया।