फर्रुखाबाद: गरीबो और कमजोर वर्ग की जनता को मुफ्त शिक्षा दिलाने के लिए बनाया गया शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 कम से कम फर्रुखाबाद के अफसरों ने तो कूड़े के ढेर में डाल दिया है| शासन से आई चिट्ठियो को एक दूसरे अधिनस्थो को मार्क करने के सिवाय इस अधिनियम का लाभ जनता को दिलाने के लिए कोई काम नहीं किया गया| अलबत्ता नतीजा ये है कि फर्रुखाबाद में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (अधिनियम में वर्णित जिला शिक्षा अधिकारी) और जिला शिक्षा समिति के अध्यक्ष (जिलाधिकारी) के पास अपनी सफलता बताने के लिए एक भी एडमिशन इस योजना में 1 अगस्त तक नहीं है|
ऐसा नहीं कि अफसर काम नहीं कर रहे| हर रोज दौड़ रहे है| मगर गरीब और कमजोर वर्ग की जनता के बच्चो के लिए जितना प्रयास होना चाहिए था, शायद नहीं हुआ| इतना ही नहीं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी तो ये आकड़े जुटाने तक में नाकामयाब रहे कि जिले में स्व वित्त पोषित विद्यालयों में कक्षावार कितनी सीटे है| इन्ही सीटो के आधार पर 25 प्रतिशत कमजोर और गरीब श्रेणी के बच्चो को स्कूल में प्रवेश दिलाना जिला शिक्षा समिति की जिम्मेदारी थी| मगर जिले में 1 अगस्त 2013 तक एक भी प्रवेश इस योजना में नहीं हो पाया|
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प्रचार प्रसार के नाम पर जीरो-
किसी भी नयी योजना का लाभ जनता तक पहुचाने के लिए शासन बार बार चिट्ठियां लिखता है और इसके लिए योजना बनता है| मगर जनपद में इस योजना के प्रचार प्रसार में कोई काम नहीं हुआ| जिला स्तर पर आई चिट्ठियो को बाबुयों और खंड शिक्षा अधिकारी को मार्क कर जिम्मेदारी पूरी हो गयी| हद से हद जिलास्तर की बैठको में इसकी चर्चा हो गयी और काम पूरा| हाँ जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के एक संविदा कर्मी ने अपने ब्लॉग पर इसके शासनादेश लोड कर दिए और मान लिया गया कि गरीब और कमजोर वर्ग की जनता को सब पता चल गया है| किसी भी सरकारी बोर्ड पर कोई प्रचार नहीं हुआ| न कोई नगर में बैनर पोस्टर लगा| प्रगति रिपोर्ट शासन को जिला स्तर से जाती रहती है उसमे क्या क्या होता है जगविदित है|
खंड शिक्षा अधिकारी का हाल-
सबसे ज्यादा आबादी वाले नगर फर्रुखाबाद के खंड शिक्षा अधिकारी प्रवीण शुक्ल से जे एन आई ने पूछा कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत कुल कितने आवेदन आये और कितने एडमिशन हुए तो कुछ भी नहीं बता सके| बिना पहचान बताये उनसे संवादाता ने अपने बच्चे का एडमिशन इस योजना के तहत कराने के लिए प्रक्रिया पूछी तो एक पाल बाबू का नाम लेकर बोले उनसे पूछ लो| पाल बाबू एक मीटिंग की भीड़ में पीछे गप्पे मारते रहे और कुछ भी बताने की जहमत उठाने से बचते रहे| ये तो रवैया है शिक्षा विभाग का| हो सकता है कि ये काम ऊपर की कमाई का न हो मगर गरीब और कमजोर वर्ग के लोगो के लिए प्रशासन कितना गंभीर है इस बात का अंदाजा तो लग ही जाता है|
शिक्षा का अधिकार का पटल देख रहे जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के लिपिक पंकज तिवारी से जब प्रवेश के लिए फॉर्म माँगा गया तो उन्होंने एक फोटोस्टेट की दूकान का पता बता दिया कि वहां से ले लो| जानकारी में उन्होंने बताया कि कुल दो आवेदन आये थे, दोनों वकील के बच्चो के थे, जिन्हें वीरेंदर स्वरुप एजुकेशन सेण्टर में प्रवेश के लिए भेज गया जहाँ से प्रवेश के लिए मना कर दिया गया| कारण वो भी शायद वायद में बताते रहे स्पष्ट नहीं कर सके| यंही इस योजना में कुल दो आवेदक और उन्हें भी लाभ नहीं मिल सका|
आगे पढ़िये- कुल मिलाकर हाल ये है कि जनपद में प्री प्राइमरी (प्ले ग्रुप, नर्सरी, केजी) सभी अवैध रूप से चल रहे है| इनकी संख्या नगर में लगभग दो सैकड़ा से ज्यादा है| किसी ने भी शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत मान्यता नहीं ली है| मगर ये चल रहे है? अधिनियम ये कहता है कि बिना मान्यता के कोई भी स्कूल स्म्चलित नहीं सकता है| और अगर चलता पाया जाता है तो उस पर 1 लाख रूपया जुर्माना लग सकता है|