लखनऊ : हाई कोर्ट ने नए राशन कार्ड बनाने के अभियान से नागरिक सुरक्षा संगठन के स्वयंसेवकों को अलग करने का आदेश दिया है। उप्र सस्ता गल्ला विक्रेता परिषद की ओर से दायर एक याचिका पर न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह व न्यायमूर्ति महेंद्र दयाल की खंड पीठ ने यह आदेश दिया है।
आदेश में कहा गया कि नागरिक सुरक्षा संगठन जिन करीब 80 फीसद आवेदन पत्रों को जमा करा चुका है, उनसे जुड़ी कोई आपत्ति यदि किसी के पास है तो वह चार हफ्तों के भीतर जिलाधिकारी के पास आपत्ति दर्ज करा सकता है। साथ ही यह भी कहा गया कि बाकी का 20 फीसद काम आपूर्ति विभाग अपने नियमित कर्मचारियों से ही कराएगा। इस काम के लिए विभाग को तीन महीने का समय दिया गया है। चार जुलाई को जारी इस आदेश के बाद आपूर्ति विभाग में हड़कंप मच गया है। पहले से विलंब के शिकार राशन कार्ड अभियान को अब तीन महीने के भीतर पूरा करने की चुनौती खड़ी हो गई है। दूसरी तरफ आपूर्ति अधिकारियों का कहना है कि हाई कोर्ट के आदेश का पालन कराया जाएगा और अब इसमें नियमित कर्मचारियों को ही लगा कर तय समय में काम पूरा कराने का प्रयास किया जाएगा।
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ताकि तय हो जिम्मेदारी
उप्र सस्ता गल्ला विक्रेता परिषद के महामंत्री ओमप्रकाश महाजन ने बताया कि फर्जी राशन कार्डों की जिम्मेदारी आपूर्ति विभाग पर ही तय करने के उद्देश्य से हाई कोर्ट की शरण ली गई थी। महाजन के मुताबिक फर्जी राशन कार्ड पकड़े जाने पर कोटेदारों को ही हमेशा दोषी बनाया जाता है, जबकि राशन कार्ड बनाने में कोटेदार की कोई भूमिका ही नहीं होती। आपूर्ति विभाग ने इस बार सत्यापन का जिम्मा नागरिक सुरक्षा संगठन को सौंप दिया, जबकि इस प्रक्रिया के तहत फर्जी कार्ड सामने आने पर किसी की जिम्मेदारी तय होना मुश्किल था। महाजन का कहना है कि न्यायालय के आदेश के बाद जब विभाग के लोग ही कार्ड बनाएंगे तो गलत कार्ड बनने की जिम्मेदारी भी उनकी तय हो सकेगी।