नर्सिंग होम चला रहे डिप्टी सीएमओ ने बकीं पीड़ित बच्ची के पिता को गालियां

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फर्रुखाबादः मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय में मंगलवार को एक मंद बुद्धि बालिका के पिता को गालियां देकर भगा दिया गया। यह हरकत किसी वार्ड ब्वाय ने नहीं स्वयं उप-मुख्यचिकित्साधिकारी पीके मांगलिक ने की। इतना ही नहीं डा. मांगलिक ने एक अन्य मरीज को प्रमाणपत्र देने से केवल इस लिये मना कर दिया कि पहले मरीज को उनके निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराओ, तब ही साइन हो पायेंगे।

Dr. Manglikघटना मंगलवार दोपहर की है। एक 10 वर्षीय मानसिक रूप से विकलांग बच्ची आन्या का प्रमाण पत्र बनवाने उसके पिता ज्ञानेंद्र सिंह ने जब बच्ची का प्रमाणपत्र बनाने को कहा तो डा. मांगलिक हत्थे से उखड़ गये। बच्ची के पिता का कहना था कि डा. मांगलिक प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर के बदले पैसा मांग रहे थे। जब मैंने कहा कि मैं पैसा नहीं दूंगा जो भी सही हो आप वही लिख दीजिये। इस पर डाक्टर को तैश आ गया। वह बाकायदा पीड़ित बच्ची के पिता को गालियां देने लगे। हद तो यह हो गयी कि उन्होंने ज्ञानेंद्र सिंह को डी.एम. या किसी भी एम.पी या एम.एल.ए. के पास तक जाने की भी चुनौती दे डाली।

इतना ही नहीं एक 30 वर्षीय महिला अनीता पत्नी अनिल सिंह निवासी ग्राम राठौरा ताजपुर तो सुबह दस बजे से डाक्टर Mental Patientमांगलिक के कमरे के सामने बैठी थी। अनिल ने कई बार उसकी पत्नी का प्रमाणपत्र बनाने का अनुरोध किया, जिससे कम से कम वह अपनी पत्नी को मानसिक रोग अस्पताल आगरा तो दिखा सके। परंतु डाक्टर मांगलिक ने हर बार उसे टका सा जवाब दे दिया कि मरीज को मेरे नर्सिंग होम में भर्ती कराओ, मैं बाद में प्रमाणपत्र बना दूंगा। आगरा में इलाज करवा रहे एक अन्य मानसिक रोगी पुत्र का प्रमाणपत्र बनवाने के लिये बेचारा गरीब पिता यहां भटकता रहा। उसका भी आरोप यही था कि प्रमाणपत्र के बदले रुपयों की मांग की जा रही है।

मजे की बात है कि घटना के समय मुख्य चिकित्साधिकारी डा. राकेश कुमार भी वहां पहुंच गये, परंतु मामले को नजरअंदाज कर आगे बढ़ गये। बाद में इस संबंध में प्रतक्रिया पूछे जाने पर सीएमओ साहब घटना की जानकारी से ही मुकर गये। बोले घटना उनके संज्ञान में नहीं है। यदि कोई शिकायत मिलती है तो कार्रवाई की जायेगी!

Hospital Manglikउल्लेखनीय है कि डा. मांगलिक विगत कई दशकों से यहां कार्यरत हैं। उन्होंने शहर की सबसे पॉश कालोनी आवास विकास में ही अपना निजी नर्सिंग होम खोल रखा है। बीच एक दो बार स्थानांतरण भी हुआ तो भी उनका नर्सिंग होम उसी गति से चलता रहा। आजकल तो उप-मुख्यचिकित्साधिकारी हैं, इस लिये किसी विभागीय अधिकारी की उनके नर्सिंग होम की ओर नजर उठाने की भी हिम्मत नहीं है। वैसे भी लोहिया अस्पताल के तो अधिकांश डाक्टर तो परोक्ष-अपरोक्ष रूप से नर्सिंग होम संचालित कर ही रहे हैं। परंतु सीमएओ आंखे मूदे बैठे हैं। जाहिर है उनकी यह लापरवाही अकारण तो नहीं ही है!

डा. मांगलिक का कहना था कि बच्ची मानसिक विकलांग नहीं थी, उसका पिता जबरन दबाव में गलत प्रमाणपत्र बनवाना चाहता था। गालियां देने का आरोप गलत है!