खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

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manmohanविवादों से घिरे खाद्य सुरक्षा अध्यादेश को रद्द करने की मांग वाली यचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि यूपीए सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिए संविधान के अनुच्छेद 123 का दुरुपयोग किया है। इस अनुच्छेद के अनुसार सिर्फ आपात स्थितियों में ही संविधान ने अध्यादेश जारी करने की अनुमति दी है।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को खाद्य सुरक्षा अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए हैं। इस कानून के जरिए देश की दो-तिहाई आबादी को सस्ते दाम पर अनाज का हल मिल गया है। अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

याचिका में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति के उस अधिकार से संबंधित है, जिसमें संसद के अवकाश के दौरान अध्यादेश जारी किया जा सकता है। याचिका में कहा गया कि इस अधिकार का दुरुपयोग किया गया क्योंकि कोई आपात स्थिति नहीं है। चुनाव प्रचार के लिए सत्ताधारी दल अध्यादेश लाई है जबकि संसद ही इसके लिए उपयुक्त फोरम है। परिणामस्वरूप अधिसूचना असंवैधानिक है और इसे अमान्य घोषित कर दिया जाना चाहिए।

याचिका में कई सवाल उठाये गये, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या सरकार किसी आपात स्थिति के बिना अनुच्छेद 123 का प्रयोग कर सकती है। याचिका में यह भी कहा गया है कि भंडारण की व्यवस्था न होने के कारण लाखों टन अनाज हर साल सड़ जाता है। दूसरी तरफ सैकड़ों लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट जरूरतमंदों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए पर्याप्त मात्रा में अनाज की सप्लाई का आदेश दे चुका है। लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की अनदेखी करके अध्यादेश लाया गया है। अदालत से आग्रह किया गया है कि खाद्य सुरक्षा अध्यादेश में तय की गई दर पर अनाज बाजार में उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराया जाए। याचिका में प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रमुख सचिव और कृषि मंत्री को प्रतिवादी पक्ष बनाया गया है।