क्या आपको दस रुपए में कोई दुनिया से जोड़ सकता है? ये करामात सिर्फ और सिर्फ इंटरनेट ही कर सकता है। किसी भी साइबर कैफ़े में बैठिए, दस रुपए खर्च कीजिए और जुड़ जाइए बिहार के किसी गांव से और होनोलूलू के किसी रेस्टोरेंट से। चाहे गूगल हो, फ़ेसबुक हो, या फ़िर विकिपीडिया, अब दुनिया इंटरनेट के बिना अधूरी सी लगती है।
इस डिजिटल युग में एक अच्छे इंटरनेट कनेक्शन का होना ज़रूरी होता है। फ़िनलैंड जैसे कई देशों में तो इंटरनेट कनेक्शन नागरिकों का कानूनी अधिकार हैं। भारत में इस तरह का कोई कानून तो नहीं है लेकिन सरकार की नीति देश के हर कोने तक इंटरनेट पहुंचाने की है, नेशनल ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क इसी दिशा में एक कदम है।
ट्राई (भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार भारत में डेढ़ करोड़ से ज़्यादा ब्रॉडबैंड इंटरनेट यूज़र्स हैं। पूरे देश में इंटरनेट सेवा मुहैया कराने के लिए सरकारी और ग़ैर सरकारी कंपनियां कोशिश में लगी हैं।
इंटरनेट चले ‘कछुए की चाल’
लेकिन इंटरनेट से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या जो इस समय लोगों के सामने आ रही है, वो है बेहद कम स्पीड, या फिर रूक-रूक कर चलना।
बीबीसी हिन्दी ने अपने फेसबुक पन्ने पर लोगों से इंटरनेट कनेक्शन से जुड़े उनके अनुभवों के बारे में पूछा जिसमें 400 से ज्यादा लोगों ने अपनी बात रखी।
राजस्थान के बीकानेर से राजेंद्र सेन ने फ़ेसबुक पर कहा, “सभी कंपनियां जो इंटरनेट की स्पीड कनेक्शन लेते समय बताती है वह स्पीड कभी नही मिलती है। जबकि शिकायत करने पर कंपनी के प्रतिनिधि कोई ठोस जवाब भी नही दे पाते। इसलिए ग्राहक अपने आपको ठगा सा महसूस करता है।”
दिल्ली में रहने वाले रवि प्रकाश पिछले सात साल से अलग-अलग इंटरनेट कंपनियों की सेवाएं ले रहे हैं, वो बताते हैं, “ब्रॉडबैंड में बताए गए स्पीड से आधा ही मिल पाता है, जबकि 2जी या 3जी डॉन्गल से मिल रही इंटरनेट की स्पीड नेटवर्क पर आधारित होती है।”
पुणे से जरनजीत सिंह भारीवाल बताते हैं, “जो स्पीड बताई गई वो कभी मिली ही नहीं चाहे कोई भी नेटवर्क परख लीजिए। लेकिन पैसे पूरे लिए जाते हैं।”
पटना से अखिलेश चौधरी कहते हैं, “इंटरनेट की स्पीड कभी मन मुताबिक नहीं मिली। उदाहरण के तौर पर 10 एमबीपीएस के कनेक्शन पर सिर्फ 512 केबीपीएस की स्पीड ही मिलती है यहां।”
फ़ेसबुक पर आए इन सवालों का जवाब देते हुए सेलुलर ऑपरेटर्स असोसिएशन ऑफ़ इंडिया के महानिदेशक राजन मैथ्यू ने कहा, “इंटरनेट स्पीड कई तकनीकी बातों पर निर्भर करती है। जैसे किसी समय नेटवर्क पर कितने लोग इंटरनेट प्रयोग कर रहे हैं। या किसी क्षेत्र में इंटरनेट कंपनी की तकनीक कितनी उत्कृष्ट है। इसके अलावा ब्रॉडबैंड इंटरनेट सर्विस से संबंधित ट्राई के कई गाइडलाइन्स मौजूद है जिन्हें इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियों को मानना अनिवार्य है। जैसे कि किसी प्लान पर औसत स्पीड कितनी होगी, वगैरह।”
भारत की इंटरनेट रणनीति ‘पिछड़ी’
गूगल के कार्यकारी अध्यक्ष एरिक श्मिट जब मार्च में भारत आए थे तो उन्होंने कहा था कि भारत अभी भी अपनी वेब रणनीति में दूसरे देशों से पीछे है।
सवा अरब की आबादी वाले भारत जैसे देश में सिर्फ 15 करोड़ इंटरनेट यूज़र्स हैं। दुनियाभर में हुए गैलप के एक सर्वे में भारत के सिर्फ तीन फ़ीसदी लोगों ने कहा उनके घर में इंटरनेट हैं जबकि चीन में 34 फ़ीसदी, रूस में 51 फ़ीसदी और ब्राज़ील में 40 फ़ीसदी लोगों ने घर में इंटरनेट के होने की पुष्टि की गई।
इंटरनेट उत्पाद कंपनी अकामाई की साल 2012 की आखिरी तिमाही में किए रिसर्च में इंटरनेट की स्थिति से जुड़े कई रोचक आकड़ें उजागर हुए गए हैं। अकामाई के अनुसार भारत में इंटरनेट की औसत स्पीड 1.2 एमबीपीएस है, जबकि सबसे अच्छी इंटरनेट औसत स्पीड दक्षिण कोरिया में है, जो कि 14 एमबीपीएस है।
दुनियाभर में औसत इंटरनेट स्पीड की रैंकिंग में भारत 116वें पायदान पर है और दक्षिण कोरिया नंबर एक पर।
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