समीक्षा: भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में एकजुट नहीं हो पाता लोधी समाज

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FARRUKHABAD : ख्याली पुलाव चाहें कोई भी पका ले, मीडिया और अखबारों में चाहें जितने बड़े और असरदार भाषण प्रकाशित कराकर जनता को गुमराह करने का प्रयास करे लेकिन हकीकत के पायेदान पर खड़े होकर लोधी समाज के भाजपा प्रत्याशियों पर अगर नजर डालें तो नजारा शीशे की तरह साफ नजर आता है। महाभारत में दुर्योधन और अर्जुन की तरह एक दूसरे के सामने खड़े होकर एक दूसरे को मात देना लोधी समाज का पुराना इतिहास है। इस सह और मात के खेल के चक्कर में भाजपा लोधी समाज के प्रत्याशी कई बार मुहं की खा चुके हैं और वर्तमान में भी यही स्थिति बनती नजर आ रही है। लेकिन इस बार प्रदेश नेतृत्व की खास नजर लोधी समाज के प्रत्याशी की घोषणा को लेकर बनी हुई है।

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भाजपा के लोधी नेताओं का यह कोई एक दूसरे के प्रति नया विरोध नहीं है। किसी न किसी तरीके से एक दूसरे की टांग खींचना यहां शौक सा बन गया है। वर्तमान में भाजपा में लोकसभा टिकट की दावेदारी को लेकर लोधी समाज से सच्चिदानंद साक्षी, रामबख्श वर्मा, मुकेश राजपूत ने चुनावी अखाड़े में कूदकर टिकट पाने को लेकर हर जुगत लगाना शुरू कर दिया है तो अब एक दूसरे की टांग खींचने की पुरानी आदत से बाज भी कैसे आयें।

इन दिनों मुकेश व रामबख्श वर्मा के बीच जुबानी जंग तलवार से भी ज्यादा तेज चल रही है। फिलहाल बात करते हैं लोधी समाज के पुराने प्रत्याशियों के इतिहास पर। सन 1999 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने रामबख्श वर्मा को फर्रुखाबाद से चुनाव लड़ने की इजाजत क्या दे दी। तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबू कल्याण सिंह व फर्रुखाबाद में उनके सहगिर्द मुकेश राजपूत की हवाइयां ही उड़ गयीं। रामबख्श वर्मा को टिकट मिलने के बाद मुकेश राजपूत, कल्याण सिंह व उर्मिला राजपूत ने जमकर भितरघात किया था और रामबख्श वर्मा एक लाख 60 हजार 400 मतों में ही संतुष्ट होकर घर बैठ गये और अंदर ही अंदर द्वेष की भावना को हवा देते रहे। फिर 2004 में कल्याण सिंह की कृपा से आखिर मुकेश राजपूत को टिकट मिला तो रामबख्श व उनके समर्थकों को उनका विरोध करना लाजमी था। लोधी समाज की इस मानसिकता ने एक बार फिर भाजपा की झोली में पराजय डाल दी और सांसद की कुर्सी चन्द्रभूषण सिंह मुन्नूबाबू के हाथ में चली गयी। दोनो ही तरफ से अब वर्तमान में भी पुरानी खुन्नस को लेकर गहमागहमी के साथ ही एक दूसरे को मात देने की हर कोशिश की जा रही है।

प्रदेश नेतृत्व के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक कल्याण सिंह को फर्रुखाबाद से चुनाव लड़ाने पर विचार हो सकता है, क्योंकि कल्याण सिंह के फर्रुखाबाद से चुनाव लड़ने में लोधी समाज का काफी हद तक वोट उनकी झोली में जायेगा। जिससे पुरानी हार को जीत में बदला जा सकता है। यदि कल्याण सिंह फर्रुखाबाद से चुनाव नहीं लड़ते हैं तो फिर भाजपा लोधी समाज को टिकट न देकर किसी अन्य वर्ग के नेता को टिकट से नवाज सकती है।

बढ़पुर में आयोजित की गयी लोधी समाज की बैठक जिसमें रामबख्श वर्मा को टिकट दिये जाने की बात कही गयी थी तो इस पर मुकेश ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि जो लोग इस बैठक का नेतृत्व कर रहे हैं वह यह बतायें कि बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा से कई गुना वोट उनकी पार्टी के लोगों और उनको मिले थे।

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उनके इस वक्तव्य पर पूर्व सांसद रामबख्श वर्मा ने जेएनआई को फोन द्वारा बताया कि मुकेश राजपूत के लिए यह चुनाव प्रायश्चित करने हेतु है। क्योंकि पिछला चुनाव वह मुकेश के विरोध के चक्कर में ही हारे थे। इस चुनाव में मुकेश अगर उनकी मदद करते हैं तो यह उनका प्रायश्चित हो जायेगा और आने वाले चुनावों में वह मुकेश की मदद भी करेंगे। फिलहाल जुवानी जंग और लोधी समाज के एकजुट न हो पाने का कहीं भारी भरकम खामियाजा न भुगतना पड़े……………..