शशांक शेखर की एक ‘हसरत’ जो पूरी नहीं हो पाई

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shasankउत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के सबसे करीबी और बसपा सरकार में सबसे ताकतवर माने जाने वाले शशांक शेखर सिंह की राज्यसभा जाने की हसरत पूरी नहीं हो सकी। हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें राज्यसभा भेजने का मन बना लिया था लेकिन पार्टी में बगावत की आशंका को देखते हुए उन्हें कदम पीछे खींचना पड़ गया।

पिछले मार्च में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के तुरंत बाद शशांक शेखर के वक्त से पहले रिटायरमेंट ले लेने को उनकी राज्यसभा की उम्मीदवारी से जोड़ा जा रहा था लेकिन पार्टी के भीतर विरोध के स्वर उभरने पर मायावती ने शशांक शेखर के बजाए मुनकाद अली को दुबारा राज्यसभा भेजना बेहतर समझा।

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बसपा शासनकाल में पूरे पांच साल तक जो विधायक-मंत्री शशांक शेखर सिंह की ‘कृ पादृष्टि’ के लिए उनके इर्द-गिर्द चक्कर काटा करते, विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही उनके तेवर बदल गए। मायावती के सत्ता से बेदखल होते ही शशांक शेखर का रुतबा भी जाता रहा।

13 मार्च 2012 को राज्यसभा चुनाव के सिलसिले में मायावती ने पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई तो कई विधायकों ने खुलकर शशांक शेखर को राज्यसभा भेजने का विरोध किया।

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और नवनिर्वाचित विधायकों का मन टटोलने के बाद मायावती ने यह तर्क दिया कि वह किसी नौकरशाह को पार्टी राज्यसभा प्रत्याशी नहीं बनाएगी।

शशांक शेखर प्रदेश के ऐसे पहले अधिकारी थे, जो आईएएस न होने के बावजूद राज्य के कैबिनेट सचिव बने। साथ ही वह ऐसे आखिरी अधिकारी भी थे, जो इस पद पर आसीन हुए क्योंकि 2012 में समाजवादी पार्टी ने सत्ता में आने के बाद इस पद को ही खत्म कर दिया और मुख्य सचिव की शक्तियों को बहाल कर दिया।

शशांक शेखर अपनी आक्रमक कार्य शैली के लिए जाने जाते थे। हांलाकि मायावती सरकार के अलावा वह समाजवादी पार्टी की सरकार में भी कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे लेकिन 2003 में मुलायम सिंह की सत्ता आने के बाद शशांक हाशिए पर डाल दिए गए थे।

2007 में मायावती के सत्ता में वापसी के साथ ही शंशाक शेखर का कद फिर से बढ़ने लगा और वह प्रदेश के सबसे ताकतवर नौकरशाह बन गए।

मायावती सरकार में उनकी तूती इस कदर बोलती थी कि वरिष्ठ मंत्रियों को भी अपना काम कराने के लिए उनका इंतजार करना पड़ता था।

शशांक शेखर को कैबिनेट सचिव बनाकर उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया थाए लेकिन बाद में जब उनकी नियुक्ति को अदालत में चुनौती दी गई तो सरकार ने उनसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा वापस ले लिया।