मोदी ने अपने करीबी अमित शाह के जरिए यूपी की राजनीति में प्रवेश कर लिया है। संघ परिवार के रणनीतिकारों ने गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को अब उत्तर प्रदेश के जरिये केंद्रीय राजनीति में भेजने का फैसला किया है।
मोदी को यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ाने का फैसला हो गया है। सिर्फ इसकी घोषणा ही बाकी है। उनके लिए जिन स्थानों की चर्चा है उनमें लखनऊ पहले नंबर पर है। यूपी में भाजपा की जमीन को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी लेकर लखनऊ आए मोदी के करीबी अमित शाह ने प्रदेश में मोदी के लिए भी मजबूत जमीन की तलाश शुरू कर दी है।
उन्होंने प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत में इसका संकेत भी दिया। एक प्रमुख नेता के अनुसार, शाह ने बातचीत में यूपी में मोदी की संभावनाओं पर बातचीत की है।
कहां से लड़ेंगे मोदी
भाजपा में चल रही ‘मोदी महाभारत’ भले ही अभी पूरी तरह खत्म न हुई हो लेकिन संघ परिवार के रणनीतिकारों ने मिशन मोदी और मिशन-2014 की तरफ एक कदम और आगे बढ़ा दिया है। मोदी के लिए लखनऊ के अलावा जिन सीटों पर संभावना तलाशी जा रही है, उनमें वाराणसी, इलाहाबाद के साथ-साथ भाजपा के एजेंडे का प्रमुख हिस्सा अयोध्या भी शामिल है।
रणनीतिकार मोदी को लखनऊ सीट से लड़ाकर एक तो अटल बिहारी वाजपेयी के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें स्थापित करना व चर्चा दिलाना चाहते हैं तो यह संदेश देना चाहते हैं कि भाजपा वाजपेयी की विरासत को महत्वपूर्ण व पार्टी की प्रतिष्ठा का सवाल मानती है। पर, लखनऊ से पार्टी के वरिष्ठ नेता डा. मुरली मनोहर जोशी व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं।
रणनीतिकारों ने डा. जोशी को फिलहाल वाराणसी से ही संभावनाओं की तलाश करने की सलाह दी है। पर, राजनाथ सिंह को लेकर असमंजस में हैं। अगर राजनाथ लखनऊ से लड़ेगे तो मोदी को फैजाबाद से भी लड़ाया जा सकता है। भाजपा की भगवा राजनीति के लिए फैजाबाद का महत्व सभी को पता है। विशेष स्थिति में इलाहाबाद व वाराणसी का भी अध्ययन कराया जा रहा है।
क्या है संघ की रणनीति
मोदी के मुद्दे पर लालकृष्ण आडवाणी को मनाने वाला संघ मोदी के नाम पर पीछे हटने को तैयार नहीं है।
सूत्रों के अनुसार, संघ इन चुनावों को अभी नहीं तो कभी नहीं के रूप में ले रहा है। इसलिए उसकी तरकश में जो भी तीर हैं उनको उसने इस पर बार आजमा लेने का फैसला किया है।
यूपी में गणित में मोदी
संघ के रणनीतिकारों को पता है कि यूपी से सीटों की संख्या में इजाफा करके ही केंद्रीय सत्ता पर पार्टी को बैठाने का सपना देखा जा सकता है। इसके लिए उसके पास सबसे ज्यादा उपयुक्त हथियार हिंदुत्व का ही है।
चूंकि भाजपा के भगवा एजेंडे के प्राणतत्व अयोध्या, मथुरा व काशी यहीं है। इसलिए वह यहां से ऐसे किसी व्यक्ति को चुनाव मैदान में उतारना चाहता है जो भगवा एजेंडे को धार दे सके। स्वाभाविक रूप से मोदी इस कसौटी पर फिट बैठते हैं।
अटल अब भी फैक्टर
यही नहीं चूंकि अटल बिहारी अस्वस्थ हैं। इसलिए भी संघ यूपी से किसी ऐसे चेहरे को उतारना चाहता है जिसमें अटल की तरह न सही तो भी अपने व्यक्तित्व से वोटों को आकर्षित करने की क्षमता है।
साथ ही विकास के मुद्दे पर भी उसकी विश्वसनीयता हो। इस कसौटी पर भी संघ के पास फिलहाल मोदी का ही चेहरा है। मोदी न सिर्फ भगवा व विकासवादी चेहरा माने जा रहे हैं बल्कि वह भाजपा के राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी नए चेहरे हैं। जिनको लेकर भाजपा नेता व संघ परिवार के लोग ‘एक मौका मोदी को’ नारा देकर लोगों को पार्टी की तरफ आकर्षित कर सकते हैं।
साथ ही यह तर्क भी दे सकते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करने वाला पहले अटल के रूप में यूपी से होता था तो अब मोदी के रूप में होगा। चेहरा भले ही बदलना पड़ा हो लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में वह यूपी को महत्व दे रहा है।